Sunday 10 December 2017

कविता-शादी

"सुना है दिलो से घरों को जोड़ती है शादी
सुना है एक गैर को अपनों से जोड़ती है शादी

फिर क्यों टूट रहा रिश्तों का विश्वाश यहाँ
अब केवल दो दिलो को ही जोड़ती है शादी

मनाते है जश्न टूटते रिश्तों का उस दिन खूब
जब दो अजनबियों को एक कराती है शादी

मात-पित, भाई-बहन, सखा-सहोदर होते खुश
गैर से रिश्ता जोड़ जब अपने की करते है शादी

नही जुड़ता कोई जब इस टूटे हुए नए रिश्ते से
ये जीवन अभिशाप बता कर दी जाती है शादी

नए नाते ऐसे मिले पुराने हुये यहाँ अब माटी
नए से नाता जोड़ पुरानो से मिली आज़ादी


खून के रिश्तों की खूब करते आज बर्बादी
अकेले नही अब हम दो है सदा करके शादी

अब बढेगा संसार मेरा आँगन गाये गीत
प्रिय-प्रीतम संग रहेंगे बढेगी फिर आबादी

टूट कर बिखर जाये चाहे खून के आँसु रोये
छोड़ कर खून के रिश्ते हमने तो की है शादी

पूछे मीठी -ख़ुशी से क्या है मोल अपनों का
दिलो को जोड़ क्यों अपनों को तोड़ती है शादी

ज़िन्दगी का हसीं पल लगने लगता है कड़वा यूँ
आखिर इन रिश्तों को किस और मोड़ती है शादी
सुना है दिलो से घरों को जोड़ती है शादी
सुना है एक गैर को अपनो से जोड़ती है शादी-२"

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