Wednesday 9 October 2019

ईश्वर वाणी-278 वास्तविक पूँजी



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम इन भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते हो, इस भौतिक काया को ही सत्य मानते हो, और इसलिए तुम उस वस्तु को ठुकरा देते हो जो बहुमूल्य है और वो है नेकी।

यद्धपि तुम में से बहुत से व्यक्ति कहेंगे कि हम इतना दान पुण्य करते हैं तो यही तो नेकी है, लेकिन हे मनुष्यों मेरी दृष्टि में ये ही सिर्फ नेकी नही है, सबसे बड़ी नेकी तो वो है जब तुम अपने अहंकार का त्याग कर सबको समान समझो, इन भौतिक वस्तुओं का मोह न कर केवल अपने व्यवहार और वाणी पर संयम रख कोई ऐसी बात न करो जिससे किसी निरीह, दुःखी, , गरीब, बेसहारा अथवा पिछड़ा व्यक्ति और दुःखी हो, 
  हे मनुष्यों तुम तो कह कर बहुत कुछ चले जाते हो, तुम अपने भौतिक संसाधनों व भौतिक वस्तुओं के घमंड में आ कर और उक्त व्यक्ति भी दुःखी हो कर आगे की ज़िंदगी जी ही लेता है लेकिन तुम जो बहुमूल्य वस्तु को अपने व्यवहार और वाणी के माध्यम से खोते हो वो तुम नही जानते।
  श्मशान अथवा कब्रिस्तान ऐसी जगह है जो इस भौतिक देह की एक मात्र मंज़िल है, भले तुमने जीते जी बहुत पैसा कमाया और अपनी स्तिथि वाले लोगों को ही मित्र व संबंधी बनाया, लेकिन जब इस भौतिक शरीर की वास्तविक मंज़िल आयी तो तो कौन तुम्हारे साथ आया,  आये तो तुम उसी मरघट पर जहाँ एक भिखारी भी आया जब उसकी भौतिक देह की मंज़िल आयी, एक संत भी आया जो उम्र भर मेरी आराधना करता रहा, राजा और ज़मीदार भी आया जो उमर भर भौतिक संसाधनों का सुख भोगते रहे, और यहाँ तुम भी आये जब तुम्हारे भैतिक देह अपनी वास्तविक मंज़िल की तलाश में चली।

  ऐसे में तुम्हारी आत्मा पूछेगी की आखिर मैं उमर भर किसका घमंड करता रहा जो मेरा था ही नहीं, ये भौतिक संसाधन जिनके लिए ये ज़िन्दगी गुज़र दी आज मेरे घर वाले और सम्बन्धी इसका उपभोग कर रहे हैं, ये भौतिक देह इसका घमंड था ये आज बेबस इस भूमि में पड़ी हुई है, और मेरे साथ क्या है??  मैंने जो अपनी वाणी और कर्मो से दूसरों का दिल दुखाया उनके आँसू और बददुआ है, मेरे जाने अनजाने में किये मेरे कर्म मेरे साथ है, अगली यात्रा मेरी कैसी होगी अब मुझे नही पता लेकिन अच्छा व्यवहार रखा होता मैंने और भौतिकता का घमंड नही किया होता तो आज मैं उस सुख से वंचित न होता जो इस भौतिक देह को त्याग कर प्राप्त होता है, साथ ही श्रेष्ठ जीवन व परम् सुख से वंचित न होता।
हे मनुष्यों ये न भूलो ये भौतिक जीवन बहुत ही छोटा है, ये तुम्हारे विद्यालय की उस परीक्षा के समान है जिसको उत्तीर्ण करने पर तुम अगली कक्षा में प्रवेश करते हो, और यदि एक ही कक्षा में बार बार अनुतीर्ण होते हो तो परीक्षा से व कक्षा से बाहर निकाल दिए जाते हो, और यदि उत्तीर्ण भी होते हैं परीक्षा में तो तुम्हारे नंबर निश्चय करते हैं कि अगली कक्षा में क्या स्थान होगा।

  यही जीवन-मृत्यु की यात्रा है, इसलिए जैसे विद्यालय की परीक्षा की तैयारी तुम करते हो वैसे ही अपने भौतिक स्वरूप,भौतिक संसाधन,भौतिक संबंधों का मोह न कर केवल मेरा मोह करो,घमंड करना है तो मेरे स्वरूप का करो,ताकि तुम अपनी अगली यात्रा को बेहतर कर उस सुख को प्राप्त कर सको जो परम है और यही आत्मा की वास्तविक पूँजी है न कि ये भौतिकता।“

कल्याण हो

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