Tuesday 29 October 2019

ईश्वर वाणी-279,जीवन मे आध्यात्म की आवश्यकता

ईश्वर वाणी
हर जीव के अंदर ईश्वर विद्यमान है, किंतु मनुष्य ऐसा एक मात्र जीव है इसमें ईश्वर के साथ शैतान भी विधमान है, मनुष्य को अपने भीतर के राक्षश अथवा शैतान को जाग्रत करने की आवश्यकता नही होती क्योंकि ये तो उसके जन्म के साथ उमर बढ़ने पर खुद ब खुद जाग्रत होने लगता है जबकि उसके अंदर का ईश्वर जो केवल शेशवस्था तक रहता है किंतु शैतानी अथवा राक्षशी तत्व उम्र के साथ और भी अधिक बढ़ता जाता है।

आखिर क्या है इंसानी शैतानी तत्व अथवा राक्षश?? झूठ, फरेब, धोखा, निंदा, व्यभिचार, खून, रक्तपात, धूम्रपान, मदिरापान, मांसाहार, अपनी मर्यादा का उल्लंघन, ईश्वरीय व्यवस्था का उलंघन, भौतिक सुखों में लिप्त रहना, दुसरो को दुखी देख कर खुश होना, सदा अपनी बड़ाई करना, दुसरो को नीचा दिखाना, सदा भौतिक वादी बने रहना, धर्मिक व्यक्ति अथवा धार्मिक स्थान को नुकसान पहुचना, किसी भी धार्मिक ग्रंथ अथवा पुस्तक को नुकसान पहुचाना, इंसान का इंसान से भेदभाव का व्यवहार करना, किसी को बेवजह दुख देना इत्यादि लक्षण है जो इंसान में समय के साथ विकसित खुद ब खुद होते जाते हैं और इस तरह उनके अंदर का ईश्वर उनके शैतानी स्वरूप के समक्ष दब कर रह जाता है।

किंतु आद्यात्म एक एक रास्ता है जिस पर चल कर मनुष्य अपने अंदर के शैतान को मारता है और अपने अंदर के ईश्वर को जगाता जो समय के साथ व्यक्ति की बुराई के आगे मन की गहराई में कही दब कर रह जाते है।

एक योग्य गुरु जो खुद आध्यात्म में पारंगत हो वोही किसी व्यक्ति को उस ओर ले सकता है जो उसका न सिर्फ ये जीवन अपितु अनन्त जीवन सवारने की काबिलियत रखता है, आध्यात्म एक लड़ाई है खुद की खुद से, अर्थात अपनी ही बुराइयों की अपनी ही अच्छाइयों से और इसमें जीत एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही मिल सकती है।

लेकिन केवल सत्संग करने वाला, एक धर्म अथवा मत को सर्वश्रेष्ठ कहने वाला, एकेश्वरवाद का अनुशरण कर केवल अपने ही ईस्ट को श्रेष्ठ बता अन्य को नीचा बताने वाला, निंदा करने वाला, केवल रटे रटाये कुछ धार्मिक पुस्तकों के पाठ कहने वाला कभी आध्यात्म से जुड़ा नही हो सकता अपितु भ्रमित करने वाला जरूर हो सकता है।

 इसलिए योग्य श्रेष्ठ गुरु को ही ढूंढो और अपने अंदर के राक्षस को मार कर अपने अंदर के ईश्वर को जगाओ ताकि कलियुग भी उत्तम सतयुग के समान बन सके।

कल्याण हो

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