Tuesday 12 November 2019

Something different...Horror poetry ..

क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है


शायद वो है आस पास मेरे  कहि

चुड़ैलों की आवाज़ फिर आने लगी है


होने लगी सुगबुगाहट नये शिकार की

चुड़ैलों के घर ये बात होने लगी है


फिर बिछाये बिसात शिकार के लिए

इंसानी खून की प्यास बढ़ने लगी है


बनाती नित्य नई कहानी फाँसने शिकार

लोगों से नई कहानी ये गढ़ने लगी है


करती शिकार किसी के 'बेटे-भाई' का

मारकर निर्दोषो को ये खुश होने लगी है


यारों बढ़ने लगी आबादी अब इनकी भी

क्योंकि अब ये हमारे बीच रहने लगी है


क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है-२"



So dedicate to all chudail/bhootni, dayan, pishachan.....


Kyonki suna hai fir se delhi me hi ek naya shikaar wo khojne lagi hai...

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