Sunday 3 November 2019

हिंदू क्या है, सचमुच क्या हिंदू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है-लेख

आज कल जब देखें लोग ‘हिंदू हिंदू’ का राग अलापते रहते हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदू धर्म बस इन्होंने ही बचा रखा, ऐसे लोगो को हिंदू का मतलब बस चंद मन्दिर व मूर्ति पूजा के अतिरिक्त कुछ नज़र नही आता। इन लोगो को नही पता वाकई में हिंदू है क्या??

‘हिन्दू’ शब्द मुस्लिम शाशकों से भारतीयों को मिला, उन्होंने ही यहाँ के लोगों को हिंदु बोलना शुरू किया और आज के समय मे ये इतना प्रचलित हो चुका है कि हर गैर मुस्लिम व गैर मूर्ति पूजक खुद को हिन्दू कहता है।

हिन्दू शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ये हमने अपने आद्यातमिक लेख विस्तार से लिखा है लेकिन आज इसकी जगह हम बताना चाहेंगे और लोगों गुज़ारिश करेंगे कि थोड़ा अतीत में जाये और इतिहास पर भी गौर फरमाएं।

प्राचीन भारत मे सभी लोग एक ही धर्म के अनुयायी थे वो था मानव धर्म, कुछ लोग कहते हैं ये सनातन धर्म था जो अति प्राचीन है, लेकिन ये सत्य नही है, यदि आप युग व्यवस्था में यकीन करते हैं तब आपको सतयुग में यकीन करना होगा क्योंकि उस समय न कोई मन्दिर होते थे न कोई पुजारी, समाज की व्यवस्था पूरी तरह परमात्मा के अनुसार चल रही थी, उस समय कोई सनातन धर्मी नही थाहाँ मानव धर्म अवश्य था जो प्रेम, सदाचार, दया, शांति, संतुष्टि, सदभाव के साथ ही उस निराकार परमात्मा पर यकीन करती थी साथ ही अपने परिवार पड़ोस आदि को भी ईश्वर तुल्य समझ सभी एक दूसरे के लिए पूजनीय थे तभी वो युग सतयुग था, सतयुग अर्थात सत्य का युग, एक ऐसा युग जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक नवजात शिशु के समान निश्छल था साथ ही उस समय पुरी पृथ्वी अर्थात भूमि यू अलग अलग दीप व महादीप में बटी नही थी, इसलिए ये भी कहना गलत होगा कि ये सब भारत मे था क्योंकि उस समय न कोई देश था न ही कोई राज्य और जीवो को एक दूसरे की भावना और ज़ज़्बातों को पहचानने के लिए भाषा की जरूरत भी नही होती थी, लोग स्वतः ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे, इसलिये वो युग सतयुग था और कहते ईश्वर उस समय यहाँ रहते थे, उस समय के व्यक्तियों में उनके सात्विक तत्व जाग्रत रहते थे और उनमें शैतानी तत्व नही थे।

लेकिन समय के साथ व जलवायु परिवर्तन के साथ जैसे जैसे दीप और महदीपो का निर्माण होने लगा उसमे कई मनुष्य व जीव जंतु मारे जाने लगे, और लोग दीपो व महदीपो के निर्मान के अनुसार पूरी दुनिया मे बिखर कर फैल गए, समय के साथ लोगो ने अपने अनुसार अपनी शक्ति के माध्यम से देवी देवताओं की कल्पना कर उनकी उपासना शुरू कर दी, और उनकी जो पीढ़ी तैयार होती गयी वो अपने अंदर ईश्वरीय तत्व को भूल अपने परिजनों द्वारा बताए निम्न देवी देवताओं किहि उपासना करने लगी, लोगों ने कुछ बाते अपने पुस्तको में लिख दी जो दैवीय शक्ति द्वारा कुछ उन्हें बताई गई तो कुछ उनकी कल्पना मात्र थी, हालांकि उनकी भक्ति व शक्ति के आधार पर उस निराकार ईश्वर को मनुष्य की कल्पना हेतु देश, काल और परिस्तिथि के अनुसार जन्म भी लेना हुआ और इस तरह विश्व के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई।

अब हिन्दू वादी ये कहे कि संसार का पहला धर्म हिंदू या सनातन था गलत है, हिन्दू धर्म नही बल्कि संस्कृति है, धर्म एक मत पर और एक किताब पर चलता है, संसार मे जितने उसके मानने वाले है सबका एक ही त्योहार होता है, भाषा भी मुख्य वही होती है जिसके वो अनुयायी है, लेकिन यहाँ हिन्दुओ की बात की जाए तो हर एक क्षेत्र में लोगो के रीति रिवाज यहाँ तक कि धार्मिक ग्रंथों में भी अंतर मिल जाता है, आज भी प्राचीन काल की तरह ही उत्तर भारत के लोग खुद को श्रेष्ठ समझते हैं वही दक्षिण भारत के खुद को, भाषा, खानपान, रीति रिवाज आदि के अनुसार पूरा हिंदू समुदाय बिखरा पड़ा है, ऐसा इसलिए क्योंकि हिन्दू धर्म नही संस्क्रति है, इतना भेद सिर्फ संस्कृतियों में ही हो सकता है, पर यहाँ ये बात जरूर महत्वपूर्ण है कि विश्व की लगभग लुप्त हो चुकी संस्कृतियो में ये आज भी अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं,  जैसे प्राचीन रोमन सभ्यता व संस्कृति जो अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है वही आज भी सनातन संस्कृति अपना वजूद कायम करे हुए हैं, इसका कारण ये भी एक है कि इतनी भिन्नता के बाद भी ये समय के साथ खुद को परिवर्तित करती रही साथ ही प्राचीन तत्वों को भी साथ ले कर चलती रही और आखिर मुस्लिम व विदेशी शाशको ने इसको एक कर एक धर्म बना दिया जिसे आज हम और आप हिंदू कहते हैं।

हम अपने वेदों पर बहुत नाज़ करते हैं और धर्म ग्रंथो पर बहुत नाज़ करते हैं और करना भी चाहिए क्योंकि इसलिए नही की ये ही सत्य है इसकी बात ही सत्य है, इसके अनुसार जो ईश्वर के जन्म व लीलाये हुई वोही सत्य है बल्कि इसलिए नाज़ करना चाहिए क्योंकि विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में ये आज भी जीवित है, संसार के परिवर्तन के बाद भी ये अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं इसलिए ये कीमती है, अन्यथा ईश्वर ने मानव कल्पना अनुसार हर उस स्थान पर लीलाये की व धर्म ग्रंथ लिखे गए जहाँ-जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण मनुष्य दीपो और महदीपो की सुनामी में बह कर दुनिया के कोने कोने में फैल गया था।
यहाँ ये भी जानने योग्य बात है कि आदि सतयुग व सतयुग में कोई भी धर्म ग्रंथ वेद पुराण नही लिखे गए थे, इनकी जरूरत तब पड़ी जब सतयुग समाप्ति पर था, जलवायु परिवर्तन जोरो पर हो रहा था, एक ही धरती जब टूट कर अनेक दीपो व महदीपो में बदल रही थी, मनुष्य व जीव मर रहे थे, तब समस्त जीवों की इच्छा शक्ति से उस निराकार ईश्वर द्वारा मार्ग पूछने पर इनकी रचना हुई, और और उस दैवीय निराकार शक्ति को साकार रूप ले कर जीव जाती की रक्षा हेतु आना पड़ा किंतु ये भारत की भूमि में ही हुआ ये गलत धारणा है ये हर उस भूमि में हुआ जहाँ मनुष्य व जीव जीवित बचे और उन्होंने उस परमात्मा से अपनी रक्षा हेतु पुकार लगाई, तभी आप देखना प्राचीन यूरोपीयन ईतिहास वहाँ भी सूर्य पूजा, अग्नि पूजा, पशु पूजा, इंद्रा पूजा आदि होती थी, कई देवी देवताओं की पूजा होती थी, ऐसा संसार के हर दीप समूहों में रहने वाले मनुष्य करते थे, मूर्ति पूजा का विधान पूरी दुनिया मे प्रचलित था, यहां तक कि मुस्लिम देश जो आजके है वहाँ भी मूर्ति पूजा होती थी।
विश्व के कोने कोने में देश, काल और परिस्तिथि अनुसार परमात्मा ने लीलाये की व धर्म ग्रंथो की रचनाएं हुई और सभी सत्य है, इसलिए हिन्दू खुद को सबसे पहली संस्क्रति व प्राचीन व प्रथम धर्म कहना बन्द करे हाँ गर्व जरूर करे क्योंकी वो उस संस्कृति का हिस्सा है जो सदियों से कायम है और हम सबके नेक प्रयासों से कायम रहेगी किंतु साथ ही जो नवीन मतानुयायी है उनका भी सम्मान करें क्योंकि सबका सम्मान करना है यही सनातन सभ्यता व संस्क्रति का एक हिस्सा है।।

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