Saturday 30 November 2019

फिर से अजनबी बन जाये हम-कविता

"ए काश फिर से अजनबी बन, जाये हम
वो वादे इरादे भी अब भूल ,जाये हम
आ मिटा दे तेरी हर याद , दिलसे अब
मोहब्बत की राहों को भूल जाये हम

न तुम याद आओ न तुम्हे याद, आये हम
न तुम रुलाओ और न तुम्हे ,सताये हम
भुला दे वो हसीं राते जो गुज़ारी, संग तेरे
न हमे तुम दिखो न तुम्हे नज़र आये हम

बन अजनबी राहो से यू गुज़र ,जाय हम
आ फिर ऐसे यू बेफिक्र से बन, जाये हम
न रोको तुम मुझे इन राहो में, कभी फिर
ए काश फिर से अजनबी बन जाये हम"

                   🍸मीठी-खुशी🍸

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