Saturday 26 August 2017

चार लाइन्स

"पूछता है दिल ये कैसा गम कैसा अवसाद है
मार रहा इंसा ही इंसा को कैसा ये  फसाद  है
नहीं देती सुनाई उस बेगुनाह  की चीख  उन्हें
खुद को इंसा कहने वाले ये कैसा मानववाद है"





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