Monday 18 August 2014

अकेलापन मुझे लगता है

भीड़ में चलते हुए भी कभी कभी क्यों अकेलापन मुझे लगता है 

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 


बैठ अकेले   मैं सोचती हूँ मैं आखिर मेरी वफाओ के बाद भी 


 क्यों हर शख्स   मुझे अपनी ज़िन्दगी से निकलता है,


ये माना सौ कमिया है मुझमे पर क्या वो पूर्ण है 

जो हर बात पे मेरी कमिया ही हर बार निकलता है,


जो बुला के अपने पास मुझे बीच मझधार में छोड़ जाता है 

अपना कह जो किसी और को दिल में बसाता है 


शायद ये ही दुनिया की रीत है, शायद ये ही कलियुग की प्रीत है 

भुला के प्यार और वफ़ा किसी और को अपना बनाते हैं,


प्यार में खुद को भुला देने वाले उमर भर बस तनहा और अकेले रह जाते हैं,

ये ही वज़ह है शायद  क्यों अकेलापन मुझे लगता है

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 

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