Saturday 5 May 2018

ईश्वर वाणी-251, शून्य का महत्व

https://www.youtube.com/watch?v=g0rFiqlOA7Q&t=1s

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे आकाश में अनेक खगोलीय घटना होती हैं, कई तारे, ग्रह नक्षत्र टूट कर बिखर जाते है किंतु पुनः कई वर्षों के बाद उनका पुनः निर्माण होता है। अर्थात वो टूट कर एक शून्य में परिवर्तित हो जाते हैं और फिर उसी शून्य से उनका पुनः निर्माण होता है।

हे मनुष्यो इसी प्रकार जब तुम्हारी आत्मा मोक्ष रूपी अनन्त जीवन पाती है तब वोभी इसी प्रकार शून्य में मिलकर मुझसे मिल जाती है, और मुझसे मिलकर मोक्ष रूपी अनन्त जीवन को प्राप्त करती है क्योंकि मैं ईश्वर हूँ।

हे मनुष्यों ये न भूलो कि संसार की उत्पत्ति समस्त जीवों की उत्पत्ति का आधार एक शून्य ही है और एक दिन समस्त ब्रह्मांड व समस्त जीव मात्र उसी शून्य में ही समा जाएंगे। शून्य अर्थात कुछ नही किन्तु इस कुछ नही में ही सबकुछ है, जिसने समस्त जीवों की उत्पत्ति समस्त ब्रमांड की उत्पत्ति की।

जैसे तुम्हारी देह का क्या अस्तित्व था तुम्हारे जन्म से पूर्व अथवा क्या तुम अपनी आत्मा पूर्व अस्तित्व को जानते हो, क्या जानते हो देह त्यागने के बाद तुम्हारी आत्मा कहाँ जाएगी, तुम्हारी देह को जलाते अथवा दफनाने के बाद क्या होगा। तो इसका उत्तर ये है जैसा तुम्हारा जन्म तुम्हारी आत्मा का जन्म शून्य अर्थात कुछ नही से हुआ उसी प्रकार तुम्हारा अंत भी उसी शून्य अर्थात कुछ नही में होता है तभी तुम्हारे अंतिम संसार के बाद तुम्हारा अस्तित्व पूरी तरह मिट जाता है, केवल व्यक्ति तुम्हारे कर्म ही याद रख पाते हैं।

हे मनुष्यों तुम जानना चाहोगे की शून्य है क्या?? शून्य अर्थात वो प्रकिया जो जहाँ से शुरू होती है अंत मे वही मिल जाती है, इसका कोई छोर या शिरा नही होता, जैसे तुम एक कागज पर शून्य लिखते हो अब इस लिखे हुए शून्य का तुम कोई छोर या शिरा ढूंढो,क्या मिला कोई शिरा या छोर तुम्हें, यदि तुम इस लिखे शून्य पर पेंसिल फिर चलाते हो तो जिस स्थान से घुमाना शुरू करोगे वही पर आ कर रुकोगे तब जा कर ये शब्द पूरा होगा। इसी प्रकार शून्य ‘कुछ नही’ हो कर भी सब कुछ है खुद में पूर्ण है।

जैसे 1 के पीछे 0 लगाने पर 10 बनता है, 2 के पीछे लगाने पर 20 बनता है, किंतु वही इसे यदि 1 से पहले लगा दे 01 तो ये एक ही कहलाता है, भाव ये है शून्य अर्थात कुछ नही से 1 का जन्म तो हुआ किन्तु उसका अंत नही हुआ और इस प्रकार 09 तक की संख्या उस एक कि पीढ़ी हुई लेकिन इसके आगे उसे शून्य की सहायता लेनी होगी, ताकि आगे की पीढ़ी बड़ सके इसके लिए उस 1 को शून्य में मिल कर 10 बनना होगा।

भाव ये है यहाँ जीव वो ‘1’ है, जो उस शून्य से बने हैं, इस प्रकार वो बिना शून्य में अर्थात बिना मिटे 9 अंक अर्थात पीढ़ी का सुख तो प्राप्त कर सकता है किन्तु आगे अपनी पीढ़ी बढ़ाने हेतु उस एक को 0 का सहारा ले कर 10 बनना ही होगा तभी वो 11 बन सकता है अर्थात पहली पीढ़ी को शून्य में मिलना ही होता है तभी आगे की पीढ़ी पड़ती जाती है जैसे तुम्हारे माता-पिता, दादा-दादी, उनके माता-पिता, उनके दादा-दादी, उनके माता-पिता व उनके दादा दादी। इस प्रकार तुम्हारी पीढ़ी युही चलती आ रही है और चलती रहेगी, ये इस शून्य के साथ युही चलता रहता है और रहेगा।

जैसे समस्त ग्रह नक्षत्रों का आकार अंडाकार है, और अंडे का सही आकार शून्य है, दिए कि लौ का आकार भी शून्य जैसा है, एक योगी की योग मुद्रा भी शून्य के समान है, उसी प्रकार आत्मा का स्वरूप भी शून्य के समान है, और मैं परमेश्वर एक विशाल शून्य हूँ जिसमे समस्त जीव आत्मा, समस्त ब्रमांड समाया रहता है व मेरी ही इच्छा से निरन्तर चलता है, मेरा कोई रूप नही रंग नही आकर नही प्रकार नही, मैं तो शून्य के समान ही पारदर्शी हूँ हवा के समान हर स्थान पर हू किँतु जैसे हवा को तुम केवल मेहसूस करते हो किंतु देख नही सकते वैसे ही मुझे आध्यात्म की शक्ति से महसूस तो करते हो पर देख नही सकते। लेकिन जैसे पुष्प के हिलने, पेड़ पौधों के हिलने, आँधी तूफान आदि के माध्यम से तुम हवा का अनुमान लगाते हो औऱ सोचते हो यही हवा का रूप व रंग है, वैसे ही मैं अपने अंश को देश काल परिस्थिति के अनुरूप धरती पर भेजता हूँ जिन्हें तुम भगवान कहते हो, वो मुझसे निकल कर मेरा ही एक रूप है और अंत मे मुझमे ही समा जाते है, में एक अनन्त विशाल सागर हूँ और मेरे अंश व मोक्ष प्राप्त समस्त जीव आत्मा मुझमे ही समा जाती  है, मैं वो विशाल शून्य हूँ, जो कुछ नही ही कर भी सब कुछ है,  मेरे बिना कुछ भी सम्भव नही, मैं ही आदि और अनन्त हूँ, में ईश्वर हूँ।“


कल्याण हो

https://www.youtube.com/watch?v=g0rFiqlOA7Q&t=1s

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