Monday 21 May 2018

ईश्वर वाणी-255, ईश्वर के द्वारपाल

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे तुम किसी बड़े ओहदे वाले व्यक्ति से मिलने जाते हो और सबसे पहले तुम उसके सेवक व दरबान से मिलते हो, जब उसकी इच्छा व उसके मालिक की आज्ञा होती है तब तुम उक्त व्यक्ति से मिलते हो।

वैसे ही मुझ निराकार ईश्वर से मिलने से पहले तुम्हें मेरे द्वारा नियुक्त निम्न दरवानो से मिलना होगा, यद्धपि ये मेरा ही एक अंश है, इन्हें मैंने ही बनाया और अपना दरबान नियुक्त किया ताकि सही व्यक्ति ही मुझ तक पहुँच सके न कि हर व्यक्ति।
देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप तुम मेरे जिन अंशो को मानते व पूजते हो वो तो मुझ तक तुम्हे लाने मात्र का मार्ग प्रशस्त करते हैं, मेरी ही आज्ञा यदि होती है तब तुम्हे मेरे पास लाते है, मेरी ही आज्ञा से तुम्हारे जीवन का दुःख-सुख वो तय करते हैं, यद्धपि मेरे द्वारपाल है वो किंतु पूजनीय प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतने ही है जितना मैं हूँ।
 जैसे माता पार्वती से उतपन्न गणेश भगवान को माता ने अपने स्नान ग्रह के बाहर उन्हें द्वारपाल नियुक्त कर ये आदेश दिया कि कोई भी उनकी इच्छा के बिना भीतर प्रवेश न करे, जिसका पालन श्री गणेश ने अपने पिता द्वारा अपना सर कटवा कर भी पूरा किया, ठीक वैसे ही इस संसार के समस्त देवी-देवता देश काल परिस्थिति के अनुरूप मेरी ही आज्ञासे जन्मे व जीव और प्राणी जाती का कल्याण कर मनुष्य को उसके कर्म, उसके जीवन के उद्देश्य, संसार मे उसका पद, उसके कार्य याद दिला कर मुझमे लीन हो गए, किन्तु उनके उस भौतिक स्वरूप और उनके उस भौतिक स्वरूप में दिए वचनों पर चलने व मानने वाले व्यक्ति के लिए उनका वही रूप मेरे द्वारपाल के रूप में उपस्थित हो कर मुझसे मिलने और न मिलने का निर्णय मेरी ही आज्ञा से ले आत्मा को उसके लोक व जन्म का निर्धारण करते हैं।
हे मनुष्यों ये न भूलों मैं ही समस्त जीवों का, समस्त ब्रह्मांड का,कण कण का स्वामी परमेश्वर हूँ, परम*ऐश्वर्य=परमेश्वर। जिसका शाब्दिक अर्थ है
प=प्रथम
र=राजा
म=मैं, महान
ए=एक
श=शक्तिशाली
व=वीर, विशाल अनन्त
र=राज्य
अर्थात संसार का सृष्टि का प्रथम राजा एक इकलौता महानों में महान मैं हूँ, मेरे अतिरिक्त कोई नही, में ही सर्वशक्तिमान शक्तिशाली वीरों में वीर इस सृष्टि रूपी राज्य का स्वामी में ही हूँ।
किंतु अपने समान ही समस्त अधिकार दे कर मैं अपने अंशो को धरती पर देश काल परिस्तिथि के अनुरूप भेजता हूँ, धरती व धरती के समस्त जीवों के कल्याण हेतु, उनके मार्गदर्शन हेतु व सही उद्देश बताने व उनकी ओर अग्रसर करने हेतु। 
तत्पश्चात समस्त जीवों के कल्याण व प्रकति की देखरेख हेतु मनुष्य का जन्म हुआ, मनुष्य को मेरे अंशो द्वारा धरती पर केवल प्राणी व जीव जाती का सेवक अर्थात एक ऐसा राजा नियुक्त किया जो इन पर शाशन नही अपितु इनकी सेवा कर सके, निम्न कार्यो को कर जो मेरे अंशों ने बतलाये उन्हें पूर्ण कर अनन्त जीवन को पाये।

किंतु मनुष्य अपनी शक्ति के मद में सब कुछ भूल बैठा है, और खुद को ईश्वर समझ बैठा है किंतु समय समय पर उसको में याद दिलाता रहता हूँ तुम एक इंसान हो सिर्फ इस धरती व जीवो के सेवक न कि मालिक क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ।

कल्याण हो








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