Saturday 16 June 2018

ईश्वर वाणी-257, ईश्वर के निम्न रूपों पर श्रद्धा



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि में एक निराकार आदि व अनन्त ईश्वर हूँ, यद्धपि मैं ही  अपने अंश को देश काल परिस्थिति के अनुरूप धरती पर भेजता हूँ अपने समान ही समस्त अधिकार दे कर,  जिन्हें तुम निम्न नाम व रूपों में मानते व पूजते हो किन्तु आज तुम्हें बताता हूँ यद्धपि बहुत से मनुष्य मेरे जिस रूप को पूजते हैं उसे ही श्रेष्ठ समझ मेरे अन्य रूपों की आलोचना करते है, ऐसा करके वे केवल अपनी अज्ञानता व मूर्खता का ही परिचय देते हैं।
किंतु कई ज्ञानी व्यक्ति भी मेरे उसी रूप में मुझे देखना पसंद करते हैं जिसमें उनकी श्रद्धा है, कारण-जैसे तुम्हारा कोई प्रियजन जिस वस्त्र में अधिक सुंदर व आकर्षक तुम्हे लगता है, उसी रूप में तुम उसको देखना अधिक पसंद करोगे, ये जानते हुए भी की चाहे वो व्यक्ति कोई भी वस्त्र पहने रहेगा वही जो तुम्हारा अपना है किंतु फिर भी तुम उसे उसी रूप में देखना पसंद करते हो जिसमें वो तुम्हे अच्छा लगता है, वैसे ही ज्ञानी मनुष्य भले जानता है आत्माओ में प्रथम आत्मा परमात्मा में ही हूँ किंतु व्यक्ति मुझे उसी रूप में देखना अधिक पसंद करता है जिसमे उसकी असीम आस्था होती है।

हे मनुष्यों जैसे एक मिट्टी से कुम्हार अनेक बर्तन बना देता है, उन बर्तनों की गुडवत्ता उसी मिट्टी की गुडवत्ता पर निर्भर करती है जिससे उन बर्तनों का निर्माण हुआ था, और बर्तन टूटने के बाद वो बर्तन फिर उस मिट्टी में जाते हैं जिससे उन बर्तनों का निर्माण हुआ था, फिर पुनः कुम्हार उस मिट्टी से बर्तन बनाता है। भाव ये है मैं वो मिट्टी हूँ जिससे मेरे अंशो का निर्माण मेरे ही कुम्भार रूपी अंश द्वारा होता है, इसी प्रकार वो मेरे समान ही सम्मानीय और श्रेष्ठ है क्योंकि जैसे मिट्टी बर्तन का रूप धारण करने उपरांत भी मिट्टी होती है वैसे मेरे द्वारा संसार की भलाई हेतु जन्मे मेरे अंश मुझसे निकल कर परमेश्वर का ही रूप होते हैं, यद्धपि किस आत्मा को मोक्ष देना  है किसे नही देना वही तय करते हैं और मोक्ष वाली आत्मा को मुझ परमात्मा रूपी मिट्टी में मिला अनन्त जीवन देते हैं।“

कल्याण हो

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