Sunday 17 June 2018

ईश्वर वाणी-258, अनन्त जीवन, मोक्ष,

 ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने स्वर्ग और नर्क की कई बातें सुनी होंगी, मोक्ष और अनन्त जीवन की बाते सुनी होंगी किंतु आज तुम्हे बताता हूँ यद्धपि पहले भी तुम्हे बता चुका हूँ आज फिर तुमसे कहता हूँ तुम्हारे कर्म के अनुसार मिलने वाला सुख और दुख ही वास्तविक स्वर्ग और नरक है।

व्यक्ति जो भी कार्य करता है जैसे कर्म व व्यवहार व आचरण करता है वैसा ही जन्म उसे अगला मिलता है, उदाहरण-यदि कोई व्यक्ति अपने शक्ति धन जन आदि के अभिमान में किसी निरीह, बेबस को सताता है, दूसरो की निंदा करता है,
आलोचना व तिरस्कार करता है तो निश्चित ही भले वो इस जीवन मे अपने पिछले जन्म के फलस्वरूप सुखो को प्राप्त करे किंतु अपने अगले जन्म के सुखों में कमी कर खुद ही अपने द्वारा नरक के दरवाजे खोलता है, वही दूसरी और अनेक कष्ट झेलने के बाद भी जो मनुष्य धैर्य पूर्वक सत्कर्म करता है वो अपने लिए स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित करता है।

साथ ही जो व्यक्ति सत्कर्म करता है, मेरे बताये नियम पर चलता है, मेरे द्वारा ली गयी अनेक परीक्षा को भी सफलता पूर्वक उतीर्ण करता है, उसे मोक्ष रूपी अनन्त जीवन की प्राप्ति होती है।

हे मनुष्यों प्रत्येक जीव आत्मा के लिए ये भौतिक देह एक कैद के समान है, प्रत्येक जीव आत्मा इस कैद से आज़ाद होना चाहती है, मुक्ति पाना चाहती है, किंतु उसके कर्म ही निश्चित करते हैं उसे मुक्ति मिलेगी या नही, यद्धपि किसी की मृत्यु को मोक्ष कहना अनुचित है क्योंकि मृत्यु उस भैतिक देह की होती है जिसमे वो आत्मा कैद थी, किँतु इस कैदखाने के बाद उसे दूसरा कैदखाना मिलता है, और ये चक्र चलता रहता है जब तक आत्मा को मोक्ष रूपी अनन्त जीवन नही मिल जाता, और तब तक आत्मा अपनी मुक्ति के लिए तड़पती रहती है किंतु जीव खुद अपने स्वार्थ में इतना खोया रहता है कि आत्मा की तड़प उसे नही सुनाई देती और अपने स्वार्थ की पूर्ति मैं अपने अनेक जीवन व्यर्थ कर देता है।

हे मनुष्यों यु तो मैं एक अनन्त सागर हूँ, और तुम सब मुझ सागर से निकली एक बूँद हो, तुम्हारे भौतिक रूप उस मिट्टी के बर्तन के समान है जिसमे जल रूपी बूँद को रखा जाता है, और आत्मा का वही रूप तुम देखते हो जो जल रखे बर्तन में जल का होता है, किंतु जब जल को उस बर्तन से निकाल कर वापस सागर में डाल दिया जाता है फिर उस जल का कोई रूप न हो कर वो एक विशाल सागर बन जाता है, यद्धपि कुछ समय पश्चात बदल भाप बना फिर उसे ले जायँगे व वो फिर बूँद बन कर किसी न किसी स्थान पर गिरेगा व वही रूप उसका होगा। ठीक वैसे ही मोक्ष प्राप्त जीव आत्मा है जो मुझ विशाल सागर में अवश्य मिल जाती है किंतु फिर से नया किंतु श्रेष्ट जीवन को पाती है।

किंतु स्वर्ग धारण की आत्मा शीघ्र ही जन्म लेती है और अनेक भौतिक सुख पाती हैं वही नरक प्राप्त आत्माएं जीवन भर हर तरह कष्ट प्राप्त करती है।

हे मनुष्यों ये मत भूलो स्वर्ग और नर्क कहि और नही यही धरती पर है और तुम खुद अपने कर्मो के माध्यम से वहाँ पहुँचने का मार्ग बनाते हो, किंतु तुम मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बनाओ, क्योंकि ये मत भूलो आत्मा को भी जन्म मरण के कार्य कुछ समय का अवकाश चाहिए होता है जिसे मोक्ष कहते हैं किंतु मनुष्य स्वार्थ में डूबे होने कारण आत्मा की वो इच्छा नही समझता और सिर्फ भौतिक संसाधन एकत्रित करने में लगा रहता है और खुद की ही आत्मा को कष्ट पहुचाता रहता है। मनुष्य नही जानता कि ये आत्मा कितने ही जन्म ले चुकी है, अब इसे भी अवकाश चाहिए, ये भी थक चुकी है, यद्धपि अनेक रूपो में इसने जन्म लिया है किंतु जन्म मरण के चक्र में कई वर्षों से फसी आत्मा अब मोक्ष चाहती है, मुक्ति चाहती है, जिसे केवल तुम दे सकते हो।

हे मनुष्यों इसलिए नेक कर्म करो, मेरे बताये मार्ग पर चलो ताकि तुम मोक्ष रूपी अनन्त जीवन पा सको।

कल्याण हो

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