Friday 13 July 2018

ईश्वर वाणी-263, प्रेत, भूत मोक्ष व अनन्त जीवन

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं अनेक जन्म व योनियो के विषय मे बता चुका हूँ, किँतु आज तुम्हें मैं भूत व प्रेत योनि के विषय में बताता हूँ, आखिर देह त्यागने के बाद कौन सी आत्मा प्रेत योनि में प्रवेश करती है और कौन सी भूत योनि में और कौन सी आत्मा मोक्ष को पाती है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारे जन्म के समय से पूर्व ही तुम्हारी मृत्यु तेय हो जाती है साथ ही ये निश्चित हो जाता है कि तुम्हे इस जन्म के बाद मोक्ष मिलेगा या प्रेत या भूत योनि में रह कर समय व्यतीत करना होगा।

जिस व्यक्ति की मृत्यु अचानक किसी हादसे में हो जाती है, या कोई व्यक्ति किसी कारण आत्म हत्या कर लेता है, यदि किसी की अचानक हत्या कर दी जाती है,  ऐसे व्यक्ति खुद को सांसारिक बंधनो में बंधा ही समझते हैं, और वही ध्यान और आकर्षण अपने प्रियजनों से चाहते हैं जैसे जब वो जीवित थे, दूसरे शब्दों में ऐसी आत्माये अपने को मृत नही समझ पाते अपनी मृत्यु को स्वीकार नही कर पाती, ऐसी ही आत्माये प्रेत कहलाती है, ये वो अवस्था है जिसमे जीवन और मृत्यु के बीच सूक्ष्म देह फसी रहती है, और खुद को भौतिक देह के समान ही महत्व प्रदान करवाना चाहती है, और यदि इन आत्माओं की इच्छा पूर्ण नही होती या थोड़ी भी ये नाराज़ होती है तब अपने ही परिवार को हानि पहुंचाने में भी समय नही लगती, तभी इनकी शांति की प्रार्थना व पूजा अनिवार्य होती है अन्यथा ये कई युगों तक यूँही भटकती रहती हैं।

वही भूत ये वो अवस्था होती है जब प्राणी को ये पता होता है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है, उसे अब भौतिक रिश्तों और भौतिक वस्तुओं से कोई मतलब नही, वो एकांत में रह कर केवल अपनी मुक्ति की कामना करती है, औरजब निश्चित समय आता है उसे मुक्ति मिल जाती है और आत्मा नए जीवन मे प्रवेश करती है, आमतौर ये आत्माये शांत होती है और मुक्ति की अभिलाषी होती है।

वही मोक्ष प्राप्त आत्मा देह त्यागने के बाद बहुत जल्दी ही दूसरा जन्म ले लेती है, इससे उन्हें प्रेत व भूत योनि में नही भटकना पड़ता, ये सब उसके कर्म पर निर्भर होता है, औरकर्म इसके जन्म के पूर्व ही निश्चित हो जाते हैं।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारे लिये ये निम्न रूप व योनियां हो किंतु मेरे लिए तुम सब एक आत्मा हो, जो मुझसे ही निकल कर मुझमे ही जब समा जाती है तब अनन्त जीवन और मोक्ष को प्राप्त होति है और मैं ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो

1 comment:

  1. देवी जी मै आपकी सारी बातों से सहमत हूॅ,
    परन्तु "कर्मों के पूर्व से" निर्धारित होने से मै कदाचित सहमत नही हूं। यदि कर्मों का पूर्व से ही निर्धारण होगा तो पृकृति द्वारा मनुष्य को बुद्धी देने का कोई अर्थ शेष नही रहेगा, अर्थात मनुष्य समस्त बुरे कर्म और पाप करके भी स्वयं मे सन्तुष्ट रहेगा, कि समस्त कर्म पूर्व निर्धारित हैं।

    ReplyDelete