Wednesday 4 July 2018

ईश्वर वाणी-261, भूकम्प की असली वजह👌👌👍👍






ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यू तो तुम्हें अनेक विषयों का ज्ञान दे चुका हूँ, ब्रह्माण्ड व अनेक ग्रह नक्षत्रों के विषय में बता चुका हूँ किंतु आज तुम्हें पृथ्वी के रहस्य के विषय में बताता हूँ।

अक्सर तुमने भूकम्प के आने के विषय मे सुना होगा, भूकम्प के झटके भी तुमने महसूस किए होंगे, अनेक वैज्ञानिक तथ्य भी तुमने सुने होंगे, किन्तु अब तक जो तुमने सुना और जाना वैज्ञानिक आधार पर वो पूर्ण सत्य नही है, पूर्ण सत्य क्या है आज तुम्हे मै बताता हूँ।

"एक मिट्टी का चूल्हा है जिस पर निरंतर आग जल रही है अभी आग कुछ धीमी है, उस पर पानी से भरा एक भगोना (पतीला) रखा गया जिसके तले में 7,8 तस्तरी  रख दी गयी, और उस पतीले को एक तस्तरी से ढक दिया गया साथ ही उस तस्तरी पर कुछ चने के दाने बिखेर दिए गए, कुछ समय बाद उस भगोने में भाप बनने के कारण वो तस्तरी हिलने लगती है, चुकी अभी आग कुछ धीमी है इसलिए भाप अधिक नही बन रही, किंतु जैसे ही इस आग पर लकड़ी या कोयला डाला गया  जो भगोने को सहायता देने के लिए  चूल्हे पर ही रखा गया था आग और तेज़ हो गयी जिससे पतीले में भाप तेज़ी से बनने लगी बल्कि पतीला भी हिल गया, जिससे उसके ऊपर रखी तस्तरी पूरी तरह हिलने लगी, और इस कारण इस तस्तरी पर रखे चने के दाने भी हिलने लगे और इधर उधर बिखरने लगे, जिस स्थान पर इन्हें रखा वो स्थान ये छोड़ अलग भागने लगे।

हे मनुष्यों यही प्रक्रिया भूकम्प के समय पृथ्वी की है, वो जलता हुआ चूल्हा धरती का वो गर्म भाग है जो सूर्य जैसी ही तपन रखता है, भगोने का वो तला धरती का वो भाग है जो इस आग उगलती धरती से ऊपर का है, इसके बाद पानी वो हिस्सा है जो इस धरती की गर्मी को ऊपर नही आने देता, लेकिन  जब धरती की सतह की दीवारे उसकी गर्मी के कारण टूट कर गिरती है उसके गर्म भाग पर तब ये वो चूल्हा बन जाती है जिस पर कोयला आदि ईंधन गिर कर  इस आग को भड़काता हो साथ ही उस पतीले में रखी निम्न तस्तरिया ही धरती की अनेक परते है जो कि उसके गर्म भाग और ऊपर के शांत और ठंडे भाग बीच में भी है, जब आग तेज़ होती है तब ये उस भगोने में रखे पानी की तरह ही क्रिया करती है, चुकी धरती की गहराई में अति गर्म वातावरण से उसकी सतह कोयला बन कर इस गर्म स्थान पर गिरी जिससे आग भड़की और साथ ही तेज़ी से भाप बन उस भगोने की तस्तरी की तरह धरती का ऊपरी भाग हिलने लगा और लोग जिसे भूकम्प कहते है, किंतु यह तुम्हें एक और बात बताता हूँ चूँकि धरती के नीचे थोड़ी थोड़ी मात्रा में ये भूस्खलन होता है जो इस सतह को निरंतर गर्म रखता है, और ये गर्मी धरती के जीवित रहने के लिए अनिवार्य है, यदि धरती जीवित नही तो कोई भी जीवित नही बचेगा, साथ ही जब एक बड़ा भाग टूट कर इस धरती रूपी भट्टी में गिरता है तब धरती के उस गर्म भाग से लेकर उस ठंडे भाग तक धरती कही नीची तो कही ऊपर हो जाती है किंतु इस बीच धरती की वो तस्तरी जिस पर सभी प्राणी रहते हैं वो हिलती है, धरती का वो हिस्सा धरती की एक तस्तरी है जो जीवन के योग्य है।

हे मनुष्यों यद्धपि भूकम्प से इस प्रकार की प्रक्रिया से धरती पर अनेक गढ्ढे हो जाते, इस प्रक्रिया को संतुलित रखने के लिए मैंने ज्वालामुखी का निर्माण किया, जिसके विस्फोट से लावा व राख निकलती है, जिससे धरती पर भूकम्प के कारण हर स्थान पर गढ्ढे नही पड़ते,साथ ही कई ज्वालामुखी तो धरती की उस गहराई में ही फटते है जहाँ से इनका लावा और राख धरती की इस तस्तरी रूपी सतह पर नही आते किंतु ये प्रक्रिया होती रहती है जो धरती का नियंत्रण बनाये रखने के साथ इसे जीवित रखती है।"

कल्याण हो


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