Wednesday 25 July 2018

ईश्वर वाणी-264, प्राणियों पर दया

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यूँ तो तुमने कई धर्म ग्रंथ पड़े सुने होंगे, उनकी कई कहानियां सुनी होंगी, कई कहानियों में ‘भगवान’ को पशु रूप में अवतार ले कर दुष्टों का अंत करना पड़ा।
दुनिया के प्राचीन धर्म ग्रंथों व कथाओं के अनुसार कई पशु पक्षी बेहद पवित्र व पूजनीय होते थे, किंतु वर्तमान समय मे उन धार्मिक मान्यताओं को लोगों द्वारा अस्वीकार कर नए धर्म व मान्यता का उदय हुआ, प्रारम्भ में तो इसका उद्देश्य नेक था, एकता, भाईचारा, दया, करुणा, समानता जैसी भावना थी किंतु समय के अनुरूप लोगों ने स्वार्थवश इसमे परिवर्तन कर सिर्फ अपने फायदे की बातों को जोड़ मानव को मानव का ही शत्रु बना दिया,जब मानव अपनी ही जाती का घोर शत्रु इस कदर बन बैठा तो अन्य जीवों के विषय मे क्या सोचेगा।

किँतु दुनिया की प्राचीन मान्यताओं व कथाओ के अनुसार साथ ही हिन्दू धर्म मे ‘भगवान’ द्वारा निम्न पशुओं का अवतार ले दुष्टों का अंत जैसी कथा का सार ये है “संसार के समस्त जीव मेरी संतान हैं, कोई मनुष्य यदि अपनी जाति को किसी भी तरह श्रेष्ट कहता है व अन्य जीवों को तुच्छ समझता है तो उससे अज्ञानी कोई नही, मनुष्य ही आत्मा को भौतिक देह के अनुसार भेद करता है किंतु मे नही, मेरे लिये सभी जीव आत्माएं समान है, मे सभी से समान प्रेम रखता हूँ।

हे मनुष्यों कई मनुष्य अपनी आधुनिक मान्यता के अनुसार कहते हैं कि मनुष्य को ईश्वर अर्थात मैंने अपने जैसा बनाया है, और इसलिए उसको अधिकार है जो चाहे वो करे धरती पर, ऐसे मनुष्य अन्य जीव जंतुओं को केवल जीभ के स्वाद से नापते है किन्तु ऐसा मैंने नही किया ये सब उनकी अपनी तुच्छ मानसिकता है।

मनुष्य भी अन्य जीवों की तरह ही मुझे प्रिये है, और मैं इंसान जैसा दिखता हूँ ये सच नही, क्योंकि मेरा कोई रूप नही, और यदि मनुष्य ही मुझे प्रिये होते तो मै श्रष्टि की रक्षा हेतु पशु पक्षियों का रूप न धारण करता।

हे मनुष्यों इसलिये मै तुमसे कहता हूं जीवो पर दया रखो, प्रेम भाव रखो, निरीहो की रक्षा करो, ये न भूलो की तुम्हें मैंने जैसे बनाया वैसे ही इन्हें भी बनाया, वैज्ञानिक आधार पर तुम्हे बताता हूँ तुम्हे और इन समस्त प्राणियों को बनाने वाले ये अति सूक्ष्म जीव है इस कारण तुम सब एक से ही उतपन्न हुए हो और वो एक जिसे मेरे ही रूप ने बनाया है, इसलिए सभी जीवों से प्रेम रखो न कि आनंद के लिए अथवा मुँह के स्वाद के लिए उनकी हत्या करो अथवा घृणा भाव रखो।"

कल्याण हो

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