Sunday 9 November 2014

एक अफ़साना लिख डाला

अपना एक अफ़साना लिख डाला, जो भी था दिल में मेरे वो बयां कर डाला,
कागज-कलम से नहीं, रक्त की श्याही से अपने इस दिल में तेरा ही नाम लिख डाला,
तू तो है बेवफा, क्या जाने मोहब्बत की ये जुबां,
मैंने तो अपनी ज़िन्दगी के हर एक लमहे को तेरे ही नाम कर डाला…

मैंने पीना सीख लिया

हम पीना नहीं चाहते थे तेरी याद ने हमें पीना भी सीखा दिया,
हम हर जख्म छिपाना चाहते थे तेरी रुस्वाई ने सबको बता दिया,
हम अश्को को इन नेनो में लाना तो नहीं चाहते थे तेरी बेवफाई ने ला  दिया,
हम यु टूट कर बिखरना तो नहीं चाहते थे तेरी जुदाई ने बिखेर दिया,
 हम हर दर्द भूलना चाहते थे तेरी बातों ने इसे बड़ा दिया,
जितना दूर होना तुझसे चाहा मैंने तू मेरे करीब आता गया,

भूलना चाहा जितना तुझको मेरी यादों में तू आता गया,
है पता तू तो है बेवफा, तेरी ही बेवफाई के खातिर आज ज़हर पीना मैंने भी सीख लिया,
तू पीता है इसे शान समझ के मैंने इसे अपनी जान समझ के पीना सीख लिया,
तू डूबा रहता है नशे में अपनी आन समझ के ज़िन्दगी का आखरी जाम समझ के मैंने पीना सीख लिया