Thursday 20 June 2013

ईश्वर वाणी- दुष्टों को दण्डित करना उचित या अनुचित **42**

नमस्कार दोस्तों आज हम हाज़िर हैं ईश्वर वाणी में ईश्वर द्वारा बताई गयी बातों के साथ। दोस्तों हमारे मन में कुछ सवाल उठे और उन्हें हमने प्रभु से पुछा, प्रभु ने हमे उनके उत्तर क्या दिए और क्या सवाल हमने उनसे पूछे ये हम आपको नीचे बताते है…




प्रश्न ? हमने प्रभु से पूछा की भगवंत कहीं तो आपने कहा है की दुष्टों और दुराचारियों के लिए ठीक वैसा ही आचरण करना गलत नहीं है किन्तु कही आपने कहा है की जो जैसा है हमे उसके साथ वैसा स्वाभाव नहीं रखना चाहिए यदि हम ऐसा करते हैं उसमे और हममे क्या अंतर होगा, तो कही आप कहते हैं सत्य और मानवता की रछा के लिए यदि हमे दुष्टों और शेतान का साथ देने वाले का अंत भी करना पड़े तो अवश्य करना चाहिए तो कभी आपने कहा है सभी को छमा कर सभी से अपने जैसा ही प्रेम करना चाहिए, प्रभु हमे बताये ये दो अलग अलग बाते क्यों आपने कही और उनका क्या अभिप्राय है ?



उत्तर= प्रभु बोले " ये सत्य है की दुष्टों और दुराचारियों एवं अत्याचारियों, मानव एवं प्राणी जाती का अहित करने वाले धूर्त और निर्दयी मनुष्यों के लिए उनका अंत अवश्य करना चाहिए एवं उनके जैसा आचरण करना कोई बुरी बात नहीं है और ना ही धर्म के विरुद्ध है, किन्तु किसी भी प्राणी को दण्डित करने से पूर्व ये जानना अवश्य आवश्यक है की जो प्राणी निम्न बुराइयों से ऒत प्रोत है वो अगान्तावश है अथवा ग्यानी है, यदि ऐसा घ्रणित कार्य करने वाला मनुष्य अज्ञानी है और अज्ञानतावश ऐसा कर रहा है तो निश्चित रूप से वो हमारी छमा के योग्य है, ऐसे प्राणी को छमा कर उसे अज्ञान के अन्धकार से दूर कर ज्ञान के प्रकाश से उसके जीवन को रोषित करने का प्रयन्त करना चाहिए, निश्चित ही ऐसे प्राणी की आँखों से अज्ञान का पर्दा हटेगा वो बुराई का मार्ग स्वतः ही त्याग देगा और ऐसा करने वाला प्राणी किसी भी प्रकार से दंड का भागी नहीं होगा क्योंकि जो भी उसने अब तक बुरा किया वो सब अज्ञानतावश किया कितु जैसे ही उसे ज्ञान की अनुभूति हुई उसने अपने को समस्त बुराइयों से दूर कर सत्मार्ग को अप्नाया।





प्रभु कहते हैं किन्तु जो प्राणी स्वतः की ग्यानी हो कर और अपने ज्ञान एवं शक्ति के अभिभूत हो कर सृष्टि में बुराई फेलाते हैं एवं समस्त शेतानी कार्यों में लिप्त रहते हैं, अपने स्वार्थ के लिए प्राणियों का अहित करते हैं ऐसे प्राणी निश्चित रूप से कठोर दंड के भागी होते हैं और ऐसे प्राणियों के साथ उनके जैसा व्यावहार करना गलत नहीं अपितु धर्म  नीति के अनुरूप है, ऐसे प्राणी को दंड देने का समर्थन ईश्वर द्वारा किया गया है"।      

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