Thursday, 4 December 2025

मेरी शायरी

 चलते चलते, इन राहों पर बहुत गिरे हम

रोते रहे कुछ वक़्त, फ़िर उठ खड़े हुए हम, 


दर्द देती रही ज़िंदगी, इस मेहफिल में हमें

दर्द सह कर भी देखो, कैसे मुस्कुराते रहे हम, 


यु तो टूट कर , बिखरी 'मीठी- ख़ुशी' के लिए

मोहब्बत के सारे ज़ख्म, अकेले सहते गए हम, 


अंधेरे में  फ़िर, उजाले की हसरत कर बैठे थे

नादाँ थे जो पत्थरो को, इंसां समझ रहे थे हम,


बस हसरत नही रही थी, यु खुलकर हँसने की

इसलिए अब, इश्क की राहों से बचे हुए थे हम, 


No comments:

Post a Comment