Sunday 9 November 2014

ये नशा

जीने की वज़ह बन गया है मेरी अब ये नशा,
खुश होने की एक वज़ह बन गया है मेरी अब ये नशा,

मैंने छिपाए बहुत अपने अश्क बिन नशे के,
अब मेरे लबों पे मुश्कुराहट की वज़ह बन गया है ये नशा 

एक नारी हूँ मैं

"ना तो बेचारी हूँ मैं, ना ही एक लाचारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

ना भले सदाचारी हूँ मैं, पर ना ही व्यभिचारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

घर-आँगन की सहचारी हूँ मैं, पर ना कोई बीमारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

रात अंधेरी नही उजयारी  हूँ मैं, ईश्वर की राज-दुलारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

अबला नही सबलारी हूँ मैं, दुश्तो पर भी भारी हूँ, बस एक नारी हूँ मैं,

मैं ही  ममता और छाया  हूँ, लिया जन्म ईश्वर ने जिससे मैं ही जगत जननी महा
तारी
हूँ,
बस एक नारी हूँ मैं-४ "