Thursday 26 January 2017

ईश्वर वाणी-१८९, ब्रह्माण्ड

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों संसार बनाने के लिए उसे
चलाने एवम् विनाश
करने (ताकि पुनः उसे बनाया जा सके) मैंने त्रिदेवोल
को भेजा, ब्रम्हा ने
विशाल अंडे नुमा आकर की रचना की, ये बिलकुल
उसी प्रकार था जैसे एक थैला
तुम लेते हो और उसमे जो तुम्हारी आवश्यकता है उसमे
डालते जाते हो, फिर सब
कुछ डालने के बाद देखते हो सब डाला है या नहीं,
निश्चित समय बाद सब
निकलते हो वो सब वस्तु जो तुमने डाली थी।
ब्रम्हा जी ने भी वही किया, इस विशाल अंडे के
आकर के अंदर जो उन्हें
अच्छा लगा सब दाल दिया, फिर निश्चित समय बाद
एक भयानक विष्फोट हुआ, और उस
विशाल अंडे से समस्त ब्रमांड का अविष्कार, तभी
पृथ्वी सहित सभी गृह अंडे
के आकर के है एवम् सभी गृह अंडे व्यास के अनुसार ही
अंतरिक्ष में भ्रमड
करते है।
हे मनुष्यों अभी तक तुमने यही सुना होगा की
अंतरिक्ष निराकार है किन्तु
आज तुम्हे बताता हूँ ये निराकार नहीं अपितु
अंडाकार है।
जिस प्रकार विशाल सागर में ज़हाज़ निश्चित दुरी
और निर्धारित जल सीमा को
ध्यान में रख कर सागर में घूमते है, वेसे ही आकाश में
सभी गृह उस विशाल
अंडे रुपी सागर में विचरण करते है।
हे मनुष्यों विशाल ब्रमांड की रचना जिस विशाल
अंडे से हुई वही प्रक्रिया
समस्त जीव-जन्तु, पेड़-पोधे की भी है, जीवन की प्रथम
क्रिया अथवा जीवन का
प्रथम चरण अंडा ही है।
अंडा जिसे ध्यान से देखो एक ज्योति अर्थात बिंदु
जैसा आकर नज़र आता है, ये
बिंदु उस विशाल शून्य से निकल आता है, भाव यही है
ब्रह्माण्ड भी जो भले
अंडाकार अथवा विशाल अंडा ही क्यों न हो शून्य से
ही इसका निर्माण हुआ है,
शून्य अर्थात कुछ नहीं किन्तु कुछ न हो कर भी सब
कुछ।
ऐसा ही अंडा जो कहने को कुछ नही पर एक जीवन
देता है जो इससे पहले नही था।
हे मनुष्यों इसलिए ब्रमांड अर्थात ब्रह्या का बनाया
सबसे पहला जीवन और
जीवन योग्य वस्तुओं को देने वाला अंडा।
हे मनुष्यों देश, काल परिस्तिथि के अनुसार तुम ब्रम्हा
पर यकीन करो न करो
पर उस विशाल अंडे पर यकीन अवश्य करना जो ब्रमांड
का जनक है।"

  • कल्याण हो

गीत-फलक से एक तारा


फलक से एक तारा आज टूट गया
आज फिर हमराही मेरा रूठ गया

अपना बना पलको पर बैठाया जिसको
आज वही क्यों ऐसे हमसे दूर गया

फलक से एक तारा आज...............

सपनो की दुनिया से लाये थे उसे हम यहाँ
सारे सपने मेरे वो ऐसे क्यों वो तोड़ गया

पल पल जो दिल में रहा,
हर पल जिसे अपना कहा

दिल को खिलौना समझ खेल गया
आज फिर हमराही मुझसे रूठ गया

बहुत की कोशिश उसे मानाने की
फिर कोशिश करी उसे करीब लाने की

पर वो रूठे ऐसे की हम मना न सके
वो दूर गए ऐसे करीब की आ न सके

बेवफाई का दामन वो कुछ यूँ ऐसे पकड़ बैठे
हम तो रह गए तनहा वो किसी और के बन बैठे

अश्क़ मेरी आँखों से आज दिन-रात गिरते हैं
रोता है दिल जाने कितने सवाल ज़हन में उठते हैं

मोहब्बत करने वाले का हाल क्या हो गया
आज इश्क़ में कितना तू बदहाल हो गया

टूटते तारो सा टूटा है तेरा भी दिल आज
देख तू अपने को तू क्या से क्या हो गया

फलक से एक तारा...............

कितने गिराये मोती इन आँखों से
खेला हमेशा वो तेरे जज़्बातों से

हाय तड़पता कैसे तुझे आज वो छोड़ गया
इन राहों पर तनहा तुझे वो आज छोड़ गया

फलक से एक तारा आज टूट गया
आज फिर हमराही मेरा रूठ गया-२
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Tuesday 24 January 2017

गीत- यही प्यास थी ज़िन्दगी में

"बस एक यही प्यास थी ज़िन्दगी मे
एक छोटी सी आस थी ज़िन्दगी में
कही तो मिलेगा हमसफ़र मुझे भी
बस उसकी तलाश थी ज़िन्दगी में

हर दिन बस ख्याल उसका ही आता था
हर शख्स में बस वो ही नज़र आता था

कब उनसे नेन मिलेंगे कब वो हमारे होंगे
पल पल बस ये ही सवाल मन में आता था

मिलेगा मुझे भी कही प्यार करने वाला
कही तो होगा मुझ पर भी मरने वाला
बस उसकी ही आस थी ज़िन्दगी मैं
मोहसब्बत की ही प्यास थी ज़िन्दगी में

क्या पता था ये एक कसूर होगा
इस कदर हर शख्स हमसे दूर होगा

मोहब्बत के सपने दिखाने वाला वो
मेरा मेहबूब बेवफाई में मशहुर होगा

खता बस क्या की थी ज़िंदगी में
बस उसकी तलाश थी ज़िन्दगी में

बस एक यही प्यास थी ज़िन्दगी मे
एक छोटी सी आस थी ज़िन्दगी में
कही तो मिलेगा हमसफ़र मुझे भी
बस उसकी तलाश थी ज़िन्दगी में-2"















Monday 23 January 2017

मुक्तक

"तू है नज़्म मेरी मैं हूँ गीत तेरा
तू है सरगम मेरी मैं हूँ संगीत तेरा
तुझसे ही जुडी है हर ख़ुशी मेरी
तू है ज़िन्दगी मेरी मैं हूँ मीत तेरा"


Friday 20 January 2017

ईश्वर वाणी-१८८, इश्वरिये क्रीड़ा

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों संसार का प्रथम तत्व मैं हूँ, संसार का प्रथम जीवन मैं हूँ, संसार का प्रथम दिन और रात मैं हूँ, संसार का प्रथम युग अथवा काल मैं हूँ, संसार का प्रथम वर्ष मैं हूँ, संसार की प्रथम रचना मैं हूँ, संसार की प्रथम इच्छा मैं हूँ, संसार की प्रथम आत्मा मैं हूँ, संसार की प्रथम स्वास में हूँ, प्रथम सोच में हूँ, प्रथम रौशनी में हूँ, प्रथम रंग मैं हूँ, संसार का प्रथम जल में हूँ, संसार का आदि में ही हूँ मैं ईश्वर हूँ किन्तु मैं अंत नहीं हूँ, सच तो ये है अंत श्रष्टि में कही नहीं है किन्तु शुरुआत अवश्य है।

"एक बालक जिसके पास उसके माता पिता सगे संबंधियो द्वारा दिए अनेक खिलोने है, प्रतिदिन वो उनसे खेलता है, जब उसका जी भर जाता है तब सभी वो खिलोने एक टोकरी में डाल कर एक तरफ रख देता है ताकि अगली बार फिर इनसे खेल सके, और इस प्रकार अपने खिलोने संभाल के रख देता है।"

हे मनुष्यों उस बालक का खिलोंनो का इस प्रकार खेलने के बाद बंद करके रखने का अभिप्राय ये तो नहीं हो सकता की बच्चे ने सदा के लिये खेलना बंद कर दिया है, अपितु वो बाद में इनसे खेलेगा अभी तो कुछ समय के लिये खेलना बंद इसलिए किया की या तो वह थक चूका था अथवा उसे अब इस खेल में आनंद की अनुभूति नहीं हो रही थी, किन्तु दोबारा जब वह खेलेगा फिर नई ऊर्जा और जोश के साथ जिससे उसे आनंद की अनुभूति की भी प्राप्ति होगी।

हे मनुष्यों वेसे ही संसार के साथ में करता हूँ, समस्त संसार, गृह नक्षत्र धरती आकाश जीव जन्तु सब मेरी ही क्रीड़ा का ही तो एक भाग हैं, जिसे तुम अंत समझते हो वो तो वापस उस टोकरी में मैं डाल देता हूँ ताकि बाद में उससे खेल सकूँ, इस प्रकार जिसे तुम प्रलय और श्रष्टी का अंत समझते हो वो तो उस बालक के समान ही है जो अपने खेल के बाद अपने सभी खिलौने टोकरी में डाल देता है ताकि फिर इनसे खेल सके।

हे मनुष्यों इसी प्रकार सारी श्रष्टि मेरे लिये उस खिलोने के समान ही है और अंत इसका कभी नहीं होता और न होगा अपितु ये तो वो खिलोने है जिनसे खेल कर वापस में फिर अपनी टोकरी में अगली बार खेलने के लिए डाल लेता हूँ, और जिसे अनजाने में तुम अंत समझ बैठते हो, ऐसा हमेशा से हुआ है और होता रहेगा, इस क्रीड़ा में तुम हमेशा मेरे साथी थे और सदैव रहोगे।

कल्याण हो




ईश्वर वाणी-१८७, पिता और पुत्र

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जब जब धरती पर मानवता एवं प्राणी जाती का दोहन हुआ तब तब मैंने ही संसार में अपने एक अंश को धरती पर मानव एवं समस्त प्राणी जाती की रक्षा हेतु भेज।

"एक राजा था, एक बार उसने अपने पुत्र को अपने सामान अधिकार दे कर कहा 'हे पुत्र तुम जरा राज्य में प्रजा का हाल चाल जान कर आओ, यदि कोई कष्ट में है या दुखी है तो उसका कारन पूछना और दूर करने लायक है तो उसे दूर करना, मैं तुम्हे अपने समान ही अधिकार देता हूँ, और जो तुमसे मदद मांगेगा अथवा तुम जिसकी भी सहायता करोगे अथवा तुम मुझे किसी की सहायता के लिए कहोगे वो पूरी जरूर होगी, आखिर मैं और तुम एक ही तो है, जो तुम्हे सम्मान देगा वो मुझे देगा, जो तुम्हारी निंदा करेगा वो मेरी करेगा, जो तुमसे मांगेगा वो मुझसे मांगेगा, जिनकी तुम सहायता करोगे वो मेरे द्वारा सहायता पायँगे, मैंने तुम्हे वो सब अधिकार दिए हैं जो मेरे पास है, क्योंकि मेरा पुत्र होने के कारण मुझमे और तुममे कोई भेद नहीं है।'

पिता की आज्ञा प्राप्त कर पुत्र राज्य में गया, और जो कष्ट में थे, दुखी और अन्य लोगों द्वारा सताए हुए थे उनकी सहायता की, चूँकि राजा पिता के समान ही उसे अधिकार थे इसलिए उससे जिसने सहायता माँगी न्याय माँगा उसे वो मिला, हालांकि लोगों ने राजा कभी नहीं देखा था, राजा राज्य के अनेक कार्यो में व्यस्त होने के कारण कभी प्रजा के पास नहीं आ पाया था किन्तु तभी उसने अपने प्रिये पुत्र को राज्य में भेज अपने समान अधिकार प्रदान कर यहाँ भेजा ताकि जो वो कार्य करे उसे राजा के समान माना जाये।

इस प्रकार राजा को जिसने नहीं देखा था पुत्र को ही राजा मान सम्मान करने लगे और राजा पिता होने के कारण अपने पुत्र और उसके कार्य एवं उसके सम्मान को देख कर प्रसन्न हुआ।

हे मनुष्यों ऐसे ही मैं जगत का राजा हूँ, मैं ही अपने समान अधिकार दे कर आपने एक अंश को धरती पर प्राणी जाती के हित के लिए भेजता हूँ, तुम जिस पर विश्वाश करते हो, जिसकी आराधना करते हो वो मुझ तक ही पहुँचता है, संसार का राजा में ही हूँ और अपने पुत्र को धरती रुपी प्रजा के उत्थान हेतु भेजता हूँ, जब जब मानव व् प्राणी जाती का दोहन होता है।

कल्याण हो

Wednesday 18 January 2017

मानव के पास उसका अपना क्या है? आध्यात्मिक सवाल

एक बार सदगुरु से ईश्वर ने पूछा

प्रश्न-: ये बताओ ऐसा क्या है मानव के पास अपना जो वो मुझे दे सकता है, ये धन-दौलत, संतान, परिवार, सेहत, शरीर, रूप, रंग, दिन-रात, सुबह-शाम, उजाला-अंधेरा, पेड़-पोधे, जल-वनस्पति,  तीनो स्थानों (जल, आकाश, भूमि) पर विचरण करने वाले जिव, ये जीवन ये मृत्यु, ये कल आज और आने वाला कल, समस्त ब्रमांड, यहाँ तक की तुम्हारी आत्मा जो तुम्हारे भौतिक शरीर को प्राण देती और मिटटी में मिलने से बचाती मैंने ही तो बनाई, अर्थात सब कुछ तो मैंने ही तुम्हे दिया है, पर ऐसा क्या है जो तुम मुझे दे सकते हो जो केवल तुम्हारा है जिसे तुमने रचा है, ऐसा क्या है जो मुझे तुम दे सकते हो, 
मेरे पास बहुत कुछ है तुम्हे देने के लिए पर एक चीज़ अगर तुमसे कही जाए मांगने को तो क्या मांगोगे?

सदगुरु ने उत्तर दिया

उत्तर:-हे प्रभु मेरे अथवा समस्त मानव के अंदर की बुराई ही केवल उसकी अपनी होती है, केवल वही आपको दे सकता है, और यदि आपसे बहुतो में से केवल एक ही चीज़ मांगने के लिए कहे तो केवल इतना देना की अपने अंदर की अच्छाई का एक छोटा सा अंश मुझे अथवा मानव जाती को दे देना, बदले में जो बुराई हमने अपने इस जीवन में कमाई है वह हमसे ले लेना।

सदगुरु का उत्तर सुन कर ईश्वर मुस्कुरा दिए और तथास्तु कह अंतरधान हो गए