Wednesday 4 December 2013

दर्द कितना है इस दिल मेँ

"दर्द कितना है इस दिल मेँ फिर भी उम्मीदोँ का दिया जला रखा है, है अश्क मेँ भीगी आँखे मेरी फिर जिन्दगी का दामन थामे  रखा है, टूट कर जो बिखर गये है ख्वाब मेरे उन्हेँ समेट फिर बढ कर आगे एक नयी सुबह को गले लगाने का होसला  मन में सजों मेने रखा है, दर्द कितना भी दे नसीब मुझे मेने उम्मीदोँ का दिया जला रखा है "

2 comments:

  1. ये गलत है , नई सुबह का हौसला , ये नहीं होता अगर आँखों में टूटे खवाबो कि किरचे कायम हो। ज़िंदगी ज़ीनो को ही ज़ी जाती है। बिना किसी उम्मीद के, और साँसों का आना जाना ज़िंदगी नहीं होती।

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    1. bina ummid aur bina kuch haasil karne ka naam zinagi nahi hai............

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