Sunday 9 July 2017

कविता

कविता

"ज़िन्दगी में हर पल खुदको तनहा ही पाया
हर किसी से ज़िन्दगी में बस धोखा ही खाया
हम तो पहले ही घायल थे रिश्तों की चोट से
ऐसा हर शख्स मेरी ही ज़िन्दगी में क्यों आया

अश्को के सिवा यहाँ कुछ भी हमने न पाया
अपना बता हर शख्स ने हमको तो रुलाया
एक प्यार की ही चाहत दिलमे रखते थे हम
अफ़सोस कभी किसी का प्यार न मिल पाया

सूरत नहीं सीरत से हमने सभी को अपनाया
हर किसी शख्स ने मेरे अरमानो को दफनाया
सीरत भली जता दिलमें बस जाने लगे थे वो
एक दिन किसी और को अपना,हमे गैर बताया

हर रिश्ते को मान अपना प्यार सब पर लुटाया
है नही कोई गैर, सभी को यहाँ अपना बताया
सोचते थे सब अपने ही तो है इस गुलिस्तां में
पर कोई अपना कहने वाला मुझे ना मिल पाया"😢😢
--
Thanks and Regards
*****Archu*****

No comments:

Post a Comment