Wednesday 14 August 2024

दर्द भरी कविता

 मोहब्बत मे हमें,जिस्म के सौदागर बहुत मिले

पग-पग हुस्न के ये, अजीब ठेकेदार बहुत मिले

पर न मिल सका, एक सच्चा हमराही यहाँ हमें
इंसानियत कुचलने वाले, ये दावेदार बहुत मिले

बस इक हसरत थी, कोई हमें भी अपना बना ले
मोहब्बत मे रुस्वा करने वाले, हरबार बहुत मिले

लेकर खुशबू हुस्न की, कुचलना फ़िर सबने चाहा 
ज़िंदा लाश बनाने वाले, बार- बार बहुत मिले

थक चुकी 'मीठी' बातों से, दुनिया की अब यहाँ
'ख़ुशी' दिखा ज़ख़्म देने वाले, सरेबाजार बहुत मिले

मोहब्बत तो नाम अब बन चुका, यहाँ हवस का 
भूख जिस्म की मिटाने वाले, भरे दरबार बहुत मिले

No comments:

Post a Comment