Sunday, 8 April 2018

ईश्वर वाणी-मूर्ति पूजा, 243

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्दपि में किसी भी विधि से की गई पूजा आराधना का विरोध नही करता किंतु देश काल परिस्थिति के अनुरूप मेरे ही अंश ने धरती पर आ कर मूर्ति पूजा का विरोध कर एकेशरवाद की नींव रखी। किंतु उन्होंने ऐसा क्यों किया, कारण क्या था जो उन्हें ऐसा कहने पर विवश होना पड़ा, क्यों उन्होंने पुराना सब भुला कर केवल अब जो उनको बताया गया केवल उसी पर विश्वास कर चलने को क्यों कहा गया।
कुछ मनुष्य सत्य जाने बिना केवल मूर्ति पूजकों का उपहास कर अपने धर्म को श्रेष्ठ बता अन्य को नीच कहते हैं, शैतान के अधीन कहते है जबकि वो खुद अज्ञानी है,अज्ञानता के कारण मानव का मानव से बैर रखते हैं, मेरी स्तुति करने वालो को नीचा कहते है जबकि सत्य से खुद भी अनजान होते हैं।
हे मनुष्यों ये सत्य है कि मेरे अंशो ने मूर्ति पूजा का विरोध किया क्योंकि प्राचीन काल में प्रत्येक राजा केवल अपने ही देवी देवता को श्रेष्ठ मानता था, युद्ध मे यदि कोई राजा जीत जाए तो हारे गए राज्य के राजा के कुलदेवता के मंदिर भी गिरा देता था ये उसका ये दर्शाना होता था कि वो कितना वीर है, इस प्रकार वो हारे गए राज्य के लोगो को भी पुराने देवी देवता की उपासना पर रोक लगा कर केवल उसी के बताये देवी देवता के पूजन पर बल देता और जो उसकी नही सुनता तो कठोर दंड मिलता। साथ ही प्राचीन धार्मिक ग्रंथ भी जीते हुए राजा द्वारा हारे हुए राजा के राज्य के नष्ट कर दिए जाते, जिससे लोगो में धीरे धीरे आक्रोश बढ़ने लगा, संसार मे अब एक ऐसे राज्य और लोंगो की कल्पना की जाने लगी जिसकी सभी एक समान भाव से पूजा करें, कोई किसी के धार्मिक स्थान को नुकसान न पहुचाये।
इसी बात को जन जन तक पहुचाने हेतु मेरे ही अंश में एकेशरवाद की नींव रख लोगो को एक करने का प्रयास किया। किंतु उनका कहने का अभिप्राय ये था यद्धपि तुम किसी मूर्ति के सामने मेरी उपासना करो लेकिन उस मूर्ति के स्वरूप को सत्य न मान कर उस आत्मा पर विश्वास करो जो परम होने के कारण परमात्मा है, सभी आत्माओं का स्वामी है, जिसने इस मूर्ति रूप में भी कभी अवतार धारण कर मानव व धरती व प्राणी जाती की समय समय पर रक्षा की है, इसलिए इस मूर्ति की नही उस आत्मा की पूजा करो जो समय समय पर तुम्हारे लिए अवतरित होती आयी है और आएगी हालांकि उसका ये स्वरूप नही होगा जो मूर्ति के रूप में तुम्हारे समक्ष हैं।
हे मनुष्यों मेरे अंशो द्वारा बताई बातो को लोगो ने तोड़ मरोड़ कर दुनिया के सामने ऐसे लाये जैसे मूर्ती पूजक शत्रु हो उनके जो मूर्ति पूजा में यकी नही रखते। साथ ही मेरे अंशो ने धार्मिक स्थान पर बाज़ारवाद पर भी रोक लगाने बलि प्रथा पर रोक लगाने पर जोर दिया, धार्मिक स्थानों पर फल फूल मिष्ठान सुगंध, बलि के लिए जानवर आदि को लाने पर रोक लगाई।
क्योंकि मैं परमेश्वर इनसे खुश नही होता, मेरे धार्मिक स्थान पर इसकी आवश्यकता नही और न ही बाज़ारवाद की, बस केवल मुझ पर विश्वास और मेरे बताये मार्ग का अनुशरण करो, प्राणी जगत का कल्याण करो,इनसे मेरी कृपा प्राप्त होगी।
किन्तु जो व्यक्ति मूर्ति पूजको का विरोध कर सोचते हैं कि वो सही है सत्य तो ये है सबसे गलत रास्ते पर वही है।
यद्धपि कोई दो बालक है, एक शिक्षक द्वारा बताने पर एक बार मे ही अपना पूरा पाठ समझ कर याद कर लेता है तो वही दूसरा बालक शिक्षक द्वारा समझाने पर भी किताब पढ़ कर लिख कर तथा कभी कभी किसी अन्य की सहायता ले कर पाठ याद कर पाता है, ऐसे में क्या वो शिक्षक गलत है जिसकी बात उस बालक को संमझ नही आई, या वो ही बालक सही है जिसने तुरन्त शिक्षक की बात समझ कर पूरा पाठ याद कर लिया।
यहाँ वो शिक्षक में हूँ, बालक तुम लोग हो, किताब वो धर्म व मत है
है जिसका तुम पालन करते हो, अब खुद बताओ कौन सा सही मार्ग है।“

कल्याण हो




Saturday, 31 March 2018

ईश्वर वाणी-वास्तविक प्रसन्नता 242

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम दुःख क्यों

महसूस करते हो??क्योंकि तुम हर परिस्थिति को अपने अनुसार चाहते हो, किंतु जब परिस्तिथियां तुम्हारे अनुसार न चल कर अपने अनुसार चलती है तब तुम शोकित हो जाते हो।

हे मनुष्यों ये न भूलो जैसे घड़ी में समय पल पल बदलता रहता है, न कि सदा एक सा रहता है वैसे ही तुम्हारा समय एक सा नही रहता, पल पल बदलता रहता है पर हाँ तुम्हे ये पता नही चलता।

हे मनुष्यों जैसे घड़ी में समय रुक कर ठहर जाता है, वैसे ही जीवन की घड़ी में ये समय उस वक्त रुक जाता है जब तुम्हारी आत्मा तुम्हारी देह त्याग कर मुक्ति पा कर नए जीवन की लालसा में भटकती रहती है, यद्दपि अधिकतर आत्मा मुक्ति की अभिलाषी होती है किन्तु कुछ नही, क्योंकि वो खुद को इस रुके हुए समय मे ही सहज महसूस करती है हालांकि ऐसी आत्माये बुरे कर्म कर्म व बुरी सोच रखने वाली अधिक होती है।

हे मनुष्यों इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ काम क्रोध लोभ मोह अहंकार का त्याग कर मेरी शरण मे आओ, तुम सभी दुख से मुक्ति पाओगे, समय चाहे अनुकूल दिशा में चले या विपरीत तुम सदा सुख पाओगे।

सुख सच्चा न भौतिक रिश्तो में है न भौतिक वस्तुओं में, क्योंकि तुम्हारी लालसा कभी कम नही होती अपितु बढ़ती ही जाती है, तुम सदा इसे अपने अनुकूल चाहते हो किंतु जब अनुकूल नही होती ये चीज़े तो दुखी हो जाते हो।


यदि तुमने कोई इच्छा और मोह। ही नही रखा होता इन भौतिक रिश्तों व भौतिक वस्तुओं से तो दुख न पाते।


इसलिए यदि जीवन मे वास्तविक प्रसन्नता चाहिए तो मेरी शरण मे आओ, मेरे अतिरिक्त किसी की लालसा न करो निश्चित ही प्रसन्न होंगे।"

कल्याण हो

Wednesday, 28 March 2018

तुम मिलोगे कभी-कविता


“है मुझे खुद पर ये भरोसा
इस भीड़ में तुम मिलोगे कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
इन रास्तों पर तुम दिखोगे कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
कहीं तो हो तुम ऐ मेरे हमनशीं

है मुझे खुद पर ये भरोसा
संभालने मुझे तुम आओगे कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
सोये अरमां जगाओगे तुम कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
इस भीड़ में तुम मिलोगे कभी"

Friday, 2 March 2018

कविता-दिलसे दिलकी बात आज होने लगी है👍👌👍👌

दिलसे दिलकी बात आज होने लगी है
धड़कन भी कुछ मुझसे कहने लगी है

जो ना होना था वो क्यों होने लगा है
मेरे दिलकी कली भी खिलने लगी है

मिटा चुके थे मोहब्बत के वो निशाँ हम
फिर इश्क की आहट अब मिलने लगी है

कहीं खो ना जाऊ प्यार में तेरे प्रिये मैं
नज़रे ये मुझसे आज अब कहने लगी है

मिले चाहे फिर बेवफाई किस्मत से अब
तुझसे मिलने की ये चाहत जगने लगी है

दिलसे दिलकी बात आज होने लगी है
धड़कन भी कुछ मुझसे कहने लगी है-2

Thursday, 1 March 2018

ईश्वर वाणी-241, देवता, मानव व ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं देवता  मानव व परमात्मा अर्थात अपने विषय में बता चुका हूँ किंतु तुम्हें फिर बताता हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि में ही सर्वोच्च हूँ, में ही देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप अपने ही एक अंश को धरती पर भेजता हूँ जब जब मानव व प्राणी जाती के हितों का ह्रास होता है।
यद्धपि तुम सब भी मुझसे ही निकले हो, मैंने तुम्हें धरती पर भेजा है, किंतु  जब जब तुमने अपनी शक्ति का उयोग गलत दिशा में करना शुरू कर दिया तब तुम्हे5 तुम्हारे उद्देश व कर्तव्यों को याद दिलाने हेतु देश काल परिस्थिति के अनुरूप मैंने अपने अंश को भेजा जो तुम्हें बता सके कि तुम्हारे ऊपर भी एक स्वामी है, तुम्हारे ऊपर भी एक राजा है, कोई है जो तुम पर भी शाशन करता है, तुम अकेले नही हो स्वामि धरती और यहाँ के जीवों के, तुम केवल इनकी देखभाल करने वाले उस राजा के सेवक मात्र हो, खुद को राजा न कहो क्योंकि तुम केवल मानव हो, यद्धपि तुम्हारे अच्छे गुण देतवा समान पद तुम्हें दे सकते हैं किँतु तुम मानव हो धरती और जीवो का ख्याल रखने वाले राजा के सेवक।

यद्धपि अच्छे गुण वाले व्यक्ति को देवता तुल्य ही बताया गया है, जो व्यक्ति नेक कर्म करने वाला, अच्छे विचार रखने वाला, सात्विक भोजन करने वाला, सबकी निःस्वार्थ सहायता करने वाला ऐसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को ही देवता कहा गया है।

हे मनुष्यों यद्धपि ये सभी गुण मैंने तुम्हें भी दिए हैं किंतु स्वार्थ सिद्धि में तुम इस कदर पाप करते रहते हो निरन्तर की उस शक्ति को तुमने भुला दिया है, और इस कारण बुराई को धारण कर पाप कर्म करने में लगे हो। इस कारण मुझसे निकलने के बाद भी तुम एक मानव हो न कि देवता।

किंतु जो मनुष्य पाप कर्मो में नही पड़ता, मेरे बताये मार्ग पर चल मानव व समस्त जीवों के कल्याण हेतु सदा सलग्न रहता है, सात्विक विचार रखता है, सात्विक भोजन करता है, वही देवता हैं, किन्तु उन्हें में ही निम्न उद्देश्यों हेतु चुनता हूँ, वही इस धरती के असल राजा हैं और उन्हें ये अधिकार मैंने ही दिया है, ऐसे ही व्यक्ति देश काल परिस्थिति के अनुरूप जन्म ले मनुष्यों को असल ओहदा बताते हैं कि संसार व मेरी दृष्टि में उनका ओहदा क्या है, क्या उनका पद है, और उनका मकसद क्या है।

किन्तु सन्सार का असल स्वामी मै हूँ, में परमात्मा हूँ, मेरी ही आज्ञा से मेरे ही स्वरूप से तुम्हारी आत्मा का जन्म होता है, मेरी ही आज्ञा से मेरे ही उन अंशो का जन्म होता है जिन्हें मैंने तुम्हारे ऊपर बैठा कर देवता अथवा देवी का ओहदा दिया है। किन्तु तुम सबमें अथवा सभी में मैं ही सर्वोच्च हूँ में निराकार हूँ, आदि हूँ, अनन्त हूँ, मैं परमात्मा हूँ।

हे मनुष्यों आशा हैं तुम्हे देवता परमात्मा और मानव के विषय मे जानकारी मिल चुकी होगी’

कल्याण हो



Monday, 26 February 2018

ईश्वर वाणी-240, आद्यात्म व आत्मा से संबंधित ज्ञान

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हे मैं आध्यात्म से संबंधित ज्ञान तुम्हे दे चुका हूँ, किन्तु आज फिर थोड़ा सा ज्ञान आध्यत्म से सम्बंधित तुम्हें देता हूँ।

हे मनुष्यों आध्यात्म वो नही जो किसी धर्म विशेष के विषय मे बात करे, निम्न पुस्तको को पढ़ने और सुनाने से आध्यात्म की प्राप्ति नही होती, अपितु आध्यात्म एक ऐसा विषय है जिसमे सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र को समान सम्मान देना शामिल हो।

यदि एक धर्म विशेष को तुम मानते हो उसकी ही धार्मिक पुस्तक पड़ते व विश्वास करते हो, किन्तु आध्यात्म केवल इतना नही अपितु समस्त जगत का ज्ञान इसमे शामिल हैं जो धर्म जाती भाषा क्षेत्र सम्प्रदाय से परे है।

हे मनुष्यों मैं अब तुम्हे अपने विषय मे सक्षीप्त ज्ञान देता हूँ यद्धपि पहले ही तुमहे आत्मा परमात्मा व भौतिक देह के विषय मे बता चुका हूँ किंतु आज फिर संशिप्त में तुम्हे बताता हूँ। परमात्मा अर्थात प+र+म+आ+त+म+आ=परमात्मा
ये दो शब्दों से मिलकर बना है-

परम  और आत्मा अर्थात आत्माओ में परम्, प्रथम, किंतु प्रत्येक शब्द का शाब्दिक  अर्थ इस प्रकार है

- प=प्रथम

र=रचियता

म=में

आ=अनन्त, आदि

त=तत्व

म=मैं

आ=आत्मा

अर्थात समस्त संसार का प्रथम रचियता में हूँ,  आदि अनन्त तत्व में आत्माओं में पहली आत्मा परमात्मा में हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारा भौतिक स्वरूप कभी नही मिटता अपितु स्वरूप बदल जाता है, बिन आत्मा के मिट्टी का ढेर हो जाता है जैसे कुम्हार अपने पुराने मिट्टी के बर्तन को तोड़ देता है ताकि उस मिट्टी से नए बर्तन बनाये वही इस भौतिक देह के साथ होता है।

किन्तु आत्मा कभी नही बदली अपितु वो जैसी है उसी रूप में रहती है अर्थात निराकार रूप में, किंतु सूक्ष्म शरीर अर्थात अतृप्त आत्मा अवश्य अपने भौतिक स्वरूप की भांति ही नज़र आती है किंतु जब मोक्ष पा कर नवजीवन में प्रवेश करती है तब वो अपने असल स्वरूप में होती है जो  निराकार है, आत्मा अपने पिछले समस्त कर्मो के फल प्राप्त कर नवजीवन में प्रवेश करती है।

हे मनुष्यों आज की ईश्वर वाणी में पिछली ईश्वर वाणियों का सार (आध्यत्म व आत्मा से सम्बंधित ज्ञान) तुम्हें दे चुका हूँ, आशा करता हूँ तुम्हें इससे ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी।"

कल्याण हो





ईश्वर वाणी-239, सकारात्मक सोच

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैं पहले बता चुका हूँ जीवन में प्रार्थना का फल कैसे मिलता है, आज उसी बात को आगे बढ़ाता हुआ तुम्हे कुछ नवीन ज्ञान देता हूँ।

हे मनुष्यों जब तुम किसी भय में होते हो, तुम्हें किसी नकारात्मक शक्ति का भय सताता है, तब तुम मेरा स्मरण करते हो, तब तुम्हारा भय कम हो जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारे अंतर्मन से सकारात्मक शक्ति निकलती है, जो तुम्हारे चारो ओर एक घेरा बना लेती है, ये ही सकारात्मक शक्ति है, जो पूर्ण रूप से उस नकारात्मक शक्ति पर हावी हो उसे कमजोर कर देती जिससे तुम्हारा भय कम होता जाता है।

हे मनुष्यों इसी प्रकार जब तुम्हें लगता है किसी ने तुम पर टोना टोटका कर दिया है और उससे बचने के लिए तुम्हे पूर्ण विश्वास के साथ अनेक उपाय सुझाए जाते हैं, जिन्हें पूर्ण विश्वास से करना पड़ता है, ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा करने से जो सकारात्मक ऊर्जा तुमसे निकलेगी वही उस उपाय को सार्थक बनाती है, और तुम्हे तुम्हारी पीड़ा से मुक्ति दिलाती है।

वही तुम्हारी नकारात्मक सोच इसका उलट असर दिखाती है और तुम्हारे समझ दिक्कत लाती है, इसलिए सदैव सकारात्मक रहो।"


कल्याण हो