Tuesday 7 May 2013

वक़्त ठहर सा गया-कविता

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं, ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये  रास्ता, वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।।



जाते हुए एक दूसरे दूर सोचा ना था हमने की कभी ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर फिर हम मिलेंगे, जाते हुए एक दूसरे से दूर सोचा ना था हमने की कभी फिर एक दूसरे को देखेंगे, हुए तो जो जुदा एक दूसरे से इस कदर सोचा ना था की कभी फिर किस राह में हम ऐसे मिलेंगे।

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।


चलते चलते राह में ऐसे मिले हम, इन सुनसान राहों में ऐसे मिले हम जैसे मिले हो दो अजनबी, जैसे ना मिले हो इससे पहले फिर कभी, पर शुक्र है इन आखों का, पर शुक्र है इन अश्कों का और शुक्र है इस दिल का जिसकी  धडकनों ने हमे फिर पहचान लिया, हो गए हो भले आज अजनबी पर इन अश्कों ने तुम्हे देख कर आज भी अपना मान लिया।


बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।


चले गए थे दूर जो एक दूसरे से हो कर मजबूर, हो कर खफा जो हो गए थे एक दूसरे से इतना दूर, ना चाहा था फिर कभी मिलना इस कदर, ना चाहा था कभी चलते हुए राह में एक दूसरे को पाना इस कदर , न सोचा था चलते हुए राह में मिलेंगे फिर कभी हम यु अजनबी बन कर, न सोचा था कभी देखेंगे एक दुसरे को फिर कभी ऐसे मुड कर, ना सोचा था कभी वक़्त हमे फिर इस मोड़ पर लाएगा, किया था जिसने दूर हमे वो ही हमे मिलाएगा।

 बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं, ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये  रास्ता, वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।

Monday 6 May 2013

ज़िम्मेदार कौन आर्टिकल ..

१६ दिसंबर दामिनी सामूहिक बलात्कार के बाद ऐसा लगने लगा था की शायद अब महिलाओ की स्तिथि देश और देश की राजधानी दिल्ली में कुछ सुधर जायगी, पर आज भी आये दिन देश और दिल्ली में  होने वाली  बलात्कार की घटनाओ ने  इस देश की महिलाओ के दिल में अपनी सुरक्षा को ले कर  न सिर्फ डर  पैदा किया है बल्कि ऐसी वारदातों ने  भारत का नाम पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया है। हिन्दुस्तान जहाँ की ये कहावत पूरे विश्व में प्रचलित थी """""''यत्र नरियस्थे पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"  अर्थात जहाँ  नारियों की पूजा होती है वह साक्षात देवता विराजित होते हैं और इसलिए हमारे देश में नारियों को सदा ही पूजनीय माना जाता रहा है कही दुर्गा के रूप में तो कही पारवती के रूप में, घर की बेटी, बहु और पत्नी को भी साक्षात लक्ष्मी का रूप मन जाता रहा है, अब सवाल ये उठता है की जिस देश की परंपरा और सभ्यता पूरी दुनिया में सबसे आदर्श मानी जाती थी आज किस दिशा में जा रही है, ऐसे सभ्य और परंपरा वाले देश में आज नारी एक भोग की वस्तु बन कर रह गयी है। आज आलम ये है की घर, बाहर, अपने पराये सब से उसे डर  कर रहना पड़  रहा है की कब कौन बदल जाए, किसके मन में हवस का राक्षश जाग जाए, आज दफ्तर से ले कर घर और घर से ले कर रास्ते भर तक न जाने कितनी  गन्दी नज़रों का वो सामना करती है  और अनेक छेड़ छाड़  को सहती है  और इसके साथ ही अनेक कठिनाइयों को सामना करते हुए उन्हें हर वक़्त ये  डर उन्हें  सताता रहता है की कही उनके साथ कुछ गलत न हो जाये। और इस प्रकार महिलाये /लडकिया आज केवल स्कूल कॉलेज जाने वाली और नौकरी करने वाली ही नहीं अपितु छोटी छोटी बच्चीया भी इस डर के माहोल में जीने को मजबूर हैं वो भी उस देश में में जहाँ नारी को सबसे अधिक मान और सम्मान  और  प्रतिष्टा प्राप्त  है और जहाँ ना जाने कितनी ही महान, विद्वान् और ताज्स्विनी महिलाओं का जन्म हुआ है और जिन्होंने इस देश का ना सिर्फ नाम रोशन किया है अपितु  देश के इतिहास में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कराया है एवं देश के इतिहास हो भी अमर बना दिया है ।

      अब सवाल उठता है की उस देश में  ऐसी सोच आज के भारतवाशियों में कहाँ से आ रही है। क्यों दिनों दिन  महिलाओं के प्रति  अपराधिक मामले बड़ते जा रहे हैं, जिस देश की सभ्यता और संस्कृति इंतनी महान रही हो उस देश में आज ऐसे दुराचारी कहाँ से पैदा हो रहे हैं, कहाँ से उनमे ऐसा राक्षस पैदा हो रहा है, सच तो ये है ऐसा राक्षश पैदा करने वाले भी हम लोग ही है, आज हमारा बदलता समाज ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, माता-पिता ही इसके लिए सबसे पहले ज़िम्मेदार है। प्राचीन काल में जहाँ लोग बेटी के पैदा होने के लिए भी मन्नते मानते थे उन्हें पुत्री रत्न  के नाम से पुकारा जाता था इसके साथ उनकी परवरिश में अवं पारिवारिक प्रेम में कोई भेद भाव नहीं रखा जाता था आज स्तिथि इसके एक दम अलग है।  
      आज लोग लड़कियों के लिए तो कहते हैं कपडे ढंग के पहनो और समय पर आओ जाओ, ये मत करो वो मत करो, तुम लड़की हो तुम ये नहीं कर सकती तुम वह नहीं जा सकती, तुम्हे माँ और घर के काम काज में हाथ बटाना  चाहिए, तुम्हे ये करना चाहिए वो नहीं, इसे दोस्ती रखो उसे नहीं, इसे बात करो उसे नहीं  वगेरा वगेरा और अनेक प्रकार की बंदिशे  उनपे लगायी जाती है ।  लेकिन माता-पिता अपने बेटों को ऐसी कोई रोक टोक नहीं करते की समय पर घर आओ-जाओ, ये मत करो वो मत करो, यहाँ मत  जाओ वह मत जाओ, थोडा अपनी बहन और माँ के काम में भी हाथ बटा लो, इसे बात मत करो, ऐसे मत बोलो उसके साथ मत घूमो  इत्यादि  बल्कि लोग अपने बेटों को ऐसी छूट देते हैं जैसे अपराध और गलतिया  तो केवल लड़कियां ही करती है और लड़के तो हमेशा सही काम करते है। मैंने बचपन में अपनी माँ के मुह से सुना था की लड़कियों को हमेशा दबा के रखना चाहिए क्यों की उनके कदम  बहकते  देर नहीं लगती ये सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगता था  और छोटी सी उम्र से ही मैंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया, अब मेरे घर वाले और  रिश्तेदार मुझे ताने मरते थे यहाँ तक की मुझपे तरह तरह के ज़ुल्म किये गए और वज़ह बस इतनी सी थी की मैंने अपने घर में अपने भाइयों जितना ही हक़ माँगा और बदले में मुझे ज़िल्लत मिली, मुझे मेरी सहेलियन के सामने पड़ोसियों के सामने नीचा दिखया गया, ज़लील किया गया और गलती की मैंने  की  बस हक़ माँगा बराबरी का, हर वो चीज़ मांगी जो भाइयों को दी जाती थी, मैंने घर के काम में माँ की भी कोई मदद नहीं की क्यों की मुझसे ऐसे करने  को इसलिए  कहा जाता  था  क्योंकि  मैं एक लड़की हूँ और ये ही बात मुझे बुरी लगती थी की मैं घर का काम करू क्योंकी मैं एक लड़की हूँ यानि की भेद भाव के साथ मुझ पर ये जबरदस्ती है की मैं ही घर का काम करू  क्यों की मैं एक लड़की हूँ, मैं सोचती थी जब  लडकियां बाहर नौकरी कर सकती है और लड़कों के बराबर कमा सकती है तो लड़के घर का काम कर के माँ और बहन की मदद क्यों नहीं कर सकते, इसके साथ ही मैंने अपने घर वालो, रिश्तेदार, पड़ोसियों और जाननेवालों के मुह से एक और जूमला सुना की बेटा  तो चाहे कुछ भी करे कभी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता तो लड़कियों का है इसके साथ ही  मैंने सुना की लोग अपने बेटों की तुलना राज महाराजा या फिर बादशाहों से करते हैं की हमारा  बेटा  कुछ भी करे वो तो बादशाह है , वो तो कुछ भी कर सकता है पर  लोग अपनी अपनी लड़कियों को संभाल कर रखे, जब भी मैं ये सुनती तो सोचती की इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है की  बेटा अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार भी करे तो सही क्यों की वो लड़का है , घर और मोहल्ले जा बादशाह है और लड़की दासी  या फिर   बांदी  या फिर उससे भी नीचे और  फिर ऐसा कुकृत्य करने वाले का क्या बिगड़ा  और अगर कुछ बिगड़ा है किसी का तो वो लड़की है और लड़के ने ऐसा इसलिए किया क्यों की घर वालों ने  लड़की को  परदे में नहीं रखा या फिर लड़कों के मुताबिक़ नही रखा  और इसलिए लड़के को ये इजाज़त मिल गयी की वो उसके साथ ऐसा करे। 


         ऐसी ही ना जाने कितनी ही बाते मैंने अपने बचपन में देखि और झेली हैं पर मैं उन लड़कियों  में से नहीं थी जो चुपचाप अपने साथ हो रहे अपने घर वालों के इस भेद भाव पूर्ण व्यवहार को सहती, मैं सोचती अगर ऐसा करने वाले बादशा है तो  लड़कियों को भी  कुछ भी करने का अधिकार होना चाहिए, और एक ही माँ बाप से पैदा हुआ दो बच्चे सिर्फ लिंग की वज़ह से एक बादशा बना और एक बांदी  तो ऐसे माता-पिता मेरी नज़र में  श्रेष्ट माता-पिता नहीं हैं, माता-पिता को चाहिए की वो अपने सभी बच्चो को बेहतर और आदर्श सीख दे न  की एक को उद्दंडी और एक को बांदी बना के रखे, और मैंने अपनी  इस धारणा के कारण  अपने परिवार में विरोध किया पर अफ़सोस मेरे साथ कोई और लड़की खड़ी  न हुई  न कोई  चचेरी, ममेरी बहन और न कोई सहेली,क्यों की उनकी सबकी समझ ये ही थी की वो लड़की है इसलिए उन्हें ये सब तो सहना ही है, पर मैं ये सोचती की अगर हम आज विरोध नहीं करेंगे तो कल जब हम खुद एक बेटी की माँ बनेगी तो हम भी अपने बच्चियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगी, मैं कहती नहीं मैं ऐसी माँ बिलकुल नहीं बनुगी और इसलिए मैं खुद अपने साथ हो रहे इस भेद भाव का विरोध करुँगी जो मैंने किया और आज भी कर रही हूँ । मैं ये भी सोचती की अगर हमारे माँ-बाप और हमारे घर वाले ही हमारी क़द्र नहीं करेंगे और हमारे साथ ऐसे भेद भाव रखेंगे तो ये समाज हमे क्या इज्ज़त देगा, अगर हमारे जन्म देने वाले ही हमारे साथ दॊयम दर्जे का वयवहार करेंगे तो ये समाज हमारे साथ कैसे प्रथम दर्जे का व्यवहार कर हमे इज्ज़त देगा और इसलिए अपनी छोटी सी उम्र से ही मैंने अपने घर वालो के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया, अपने साथ हो रहे इस भेद भाव के विरोध में।।  ,
        सच तो ये है की आज जो देश में महिलाओ की जो स्तिथि है इसके लिए जिम्मेदार हमारे बुजुर्ग यानी  की हमारे माता-पिता और घर के अन्य सदस्य हमारे पडोशी और रिश्तेदार हमारे दोस्त और जानकार भी है  जो हमेशा से ही बेटो को तरजीह देते रहे हैं और बेटियों को हेय दृष्टि से देखते रहे हैं, आपने देखा ही होगा की अगर किसी के घर में बेटी पैदा हो तो उसके घर में मातम का सा माहोल हो जाता है चाहे वो परिवार कितना ही संपन्न और आधुनिक क्यों न हो, अगर बेटी प्रथम संतान हो तो लोग कहने  लगते हैं कोई बात नहीं अगली संतान बेटा ही होगी जैसे बेटी पैदा करके कोई विश्व युद्ध हार गए हो और जब लड़का होगा तब जा कर वो ये युद्ध जीतेंगे , फिर वो लोग दिलासा भी देते हैं ये कह कर " प्रथम संतान भी लगभग बेटा  सामान ही है", यानी  की अगर किसी के घर में बेटी हुई है तो बेटे  के लिए दुसरे बच्चे की प्लानिंग में माँ-बाप लग जाए  लेकिन अगर बेटा  हुआ तो न तो कोई रिश्तेदार या फिर पडोशी ये कहता नज़र आएगा की कोई बात नहीं अगली  संतान आपकी बेटी ही होगी और न माँ-बाप ही अपनी अगली संतान की प्लानिंग में कोई जल्दबाजी करेंगे और कई तो अब अगला बच्चा चाहेंगे भी नहीं क्योंकि अगर बेटी हो गयी तो जाने क्या हो जाएगा शायद समाज में उनका सर शर्म से झुक जाएगा या फिर वो कोई युद्ध हार जायंगे ।  पर इसके साथ अपनी इस हालत की ज़िम्मेदार कुछ हद तक लडकिय भी रही हैं क्यों की मैंने देखा है लड़की चाहे छोटे शहर की हो या फिर बड़े शहर की वो अपने साथ हो रहे अपने ही घर पर अपने लोगो द्वारा किये गए भेद भाव को चुपचाप सहती रहती है और उसका विरोध  नहीं करती,  मैंने देखा है की किसी किसी परिवार में बेटों का जन्दीन बड़े जोरदार तरीके से मनाया जाता है और बेटियों का तो याद भी नहीं रखते कारण अलग अलग बताते है पर सच तो ये है की वो लड़कियों को हेय द्रिस्थी से देखते है तभी ऐसा करते हैं  और लडकिया भी चुपचाप सब सह लेती हैं और अपना मुह तक नहीं खोलती, बचपन से ही उसे ये कह कर चूल्हा चौक में आज भी झोंक दिया जाता है की उसे किसी और के घर जाना है इसकी ट्रेनिंग  उसे यहाँ बचपन से दी जा रही है, जुबान बंद रख कर चुपचाप सब सहती रहे क्यों की ससुराल में भी सब सहना है, बस बचपन से ही उसे अपने अधिकारों की अपेक्षा बस सहना ही सिखाया जाता है  और मर्दों से कम है वो और उनपे आश्रित है वो ये उसे सीखाय जाता है, इसके साथ ही लडकिया इसे अपना नसीब समझ कर सहती जाती हैं पर कभी कोई लड़की इसके विरोध में नहीं आती और इसके कारण शादी से पहले अपने मायेके में और शादी के बाद ससुसाल में शोषित होती रहती है इसके साथ ही समाज में भी उसका बलात्कार, छेड -छाड़  और अनेक तरीके से शोषण किया जाता है क्यों की बचपन से उसने बस ये ही सीखा है सहना और मर्द ने सीखा है करना की वो कुछ  भी करे उसका क्या बिगड़ेगा, सच तो ये है की अगर आज की लड़कियों को समाज में इज्ज़त और मान सम्मान चाहिए तो खुद खड़े होना पड़ेगा और सबसे पहले अपने घर में बराबरी का हक़ मांगना होगा , अपने परिवार में अपने परिवार के अन्य मर्दों के सामान ही  हर छेत्र में  बराबरी का हक़ लेना होगा चाहे उसके लिए कितना ही विरोध सहना पड़े ,और  इसके साथ ही  उन्हें अपने घर वालों को कहना होगा की अगर लड़के कुछ भी करे तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा तो वो भी कुछ भी कर सकती है और माँ बाप अपनी बेटी के बारे में भी सोच बदले और बेटों के बारे में भी ताकि ये लिंग भेद जल्द ही समाप्त हो और महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध कुछ हद तक रुक सके।  इसके शुरुआत घर से आज से और अभी से ही करनी होगी तभी  महिलाए अपना खोया हुआ मान सम्मान वापस प्राप्त कर  पयंगी अन्यथा उनका शोषण ऐसे ही जारी रहेगा।


धन्यवाद 
  अर्चु 


   

मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो।


मेरी भावना भी  तुम हो, मेरी मनोकामना भी  तुम हो, मेरा अतीत भी तुम हो, मेरा आज भी तुम हो, मेरा कल भी  तुम हो, मेरी सुबह भी तुम हो, मेरी शाम भी तुम हो, मेरा दिन भी तुम हो, मेरी  रात भी तुम हो, मेरी हर बात भी तुम हो, मेरे ज़ज्बात भी तुम हो,मेरी सच्चाई भी तुम हो, मेरा सपना भी तुम हो, मेरी कल्पना भी तुम हो, मेरी हकीकत भी तुम हो, मेरा दर्द भी तुम हो, मेरी ख़ुशी भी तुम हो, मेरी आस भी तुम हो, मेरी प्यास भी तुम हो, मेरे अश्क भी तुम हो, मेरी मुश्कान भी तुम हो, तनहा मेरी ज़िन्दगी की तन्हाई भी तुम हो, मेरी हर बदनसीबी में साथ हमेशा भी तुम हो, मेरी जिंदगी की शुरुआत से ले कर आखिरी पल तक साथ भी तुम हो, रहे हमेशा साथ मेरे तुम, वक़्त और हालत में के थपेड़ों में यु संभालते रहे तुम, 
आज मेरी इस सूनी पड़ी अकेली तनहा  दर्द  भरी ज़िन्दगी में एक ख़ुशी का अहसास भी तुम हो, देखा है मैंने  जब  भी जिधर पाया है तुम्हे  हर तरफ , आज जाते हुए अकेले इस दुनिया से मैंने किसी को नहीं  बस तुम्हे ही करीब पाया है, हर तरफ जहाँ सूनापन और तनहाइयों को साया है वही मैंने तुम्हे आज भी अपने नज़दीक  पाया है ,
 क्यों की मेरी मोहब्बत  भी तुम हो, मेरी चाहत भी तुम हो, मेरी पहचान भी तुम हो, मेरी जान भी तुम हो,मेरी भावना भी तुम हो, मेरी मनोकंमना भी प्रभु सिर्फ तुम ही तो हो, मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो। 
 i love you very much dear Jesus...

Saturday 4 May 2013

क्यों कोई हस्ता है..

क्यों कोई हस्ता है किसी को रुला कर, क्यों कोई जीता है किसी को सता कर, क्या जिंदगी की रीत इसी को कहते हैं, क्या जीना इसी को कहते हैं जो खुश होता है कोई किसी को दर्द पहुचा कर।

Wednesday 1 May 2013

ईश्वर वाणी-37, Ishwar Vaani-37**जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता**




प्रभु कहते हैं जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता, ऐसे लोग मेरा नाम ले कर केवल अपने जीभ के स्वाद हेतु ऐसा घ्रणित कार्य करते हैं, इश्वर कहते हैं ऐसे मनुष्यों की चाहिए की मेरे नाम की अपेक्षा किसी कसाई के पास जा कर अपनी भूख शांत करने हेतु मासाहार को खा कर अपने स्वाद को पाये। 


       प्रभु कहते हैं मैं केवल उन्ही से प्रसन्न होता हूँ जो मेरे बताये गए मार्ग पर चल कर उनका अनुसरण करते हैं, केवल वही मेरे प्रिये होते हैं जो मेरे वचनों का पालन करते हैं, किन्तु जो मनुष्य मुझे पसंन करने के नाम पर किसी निर्दोष की बलि देता है मैं उससे प्रसन्न होने की अपेक्षा क्र्धित होता हूँ क्यों को वो मेरे नाम पर एक निर्दोष की हत्या कर रहे होते हैं जबकि जीवन लेना और देना ये दोनों प्रक्रिया केवल मेरे ही अधिकार शेत्र में है,  प्रभु कहते हैं मुष्य को केवल वो ही बस्तुये अपने भोजन में ग्रहण करनी चाहिए अवं मुहे अर्पित करनी चाहिए जिन्हें मैंने सब के लिए खुद उचित ठेराया है, उन समस्त खाने लायक वस्तुओं को मेरा प्रसाद मान कर मनुष्य को केवल वो ही ग्रहण करना चाहिए और अगर मुझे अर्पित करना है तो वो ही मुझे केवल अर्पित करना चाहिये… 



प्रभु कहते हैं हमे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की चिंता न रख कर बस प्रभु का ध्यान करते हुए अपने नित्य कर्म करते रहना चाहिए अवं अपने कर्मो के फल की चिंता उनपे छोड़ देनी चाहिए, ऐसा करने से निश्चित ही मनुष्य का कल्याण होगा । 



ईश्वर वाणी 

ईश्वर वाणी -36, Ishwar Vaani-36 **प्रभु कहते हैं निश्चित रूप से प्रत्येक शादी के काबिल लड़के और लड़की को शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए **

प्रभु कहते हैं निश्चित रूप से प्रत्येक शादी के काबिल लड़के और लड़की को शादी के बंधन में बंध  जाना चाहिए क्योंकि  ऐसा प्रकृति और नेतिकता के अनुसार उचित है, प्रभु कहते हैं की उन्होंने निश्चित ही किसी उद्देश्य से हर एक को इस दुनिया में भेजा  है और निश्चित ही हर एक के लिए कोई न कोई जीवनसाथी चुना  है किन्तु यदि किसी को उसका अभी तक कोई हमसफ़र नहीं मिला है तो वो निराश न हों क्यों की ऐसे मनुष्यों को यकीनन  प्रभु ने किसी ख़ास कार्य के लिए ही चुना है, प्रभु कहते हैं यदि आप विवाह करना चाहते हैं और आपको अभी तक कोई नहीं मिला है तो निराश न हो प्रभु का नाम लेते हुए सत्कर्म करते जाए आपका निश्चित ही कल्याण होगा । किन्तु प्रभु कहते हैं जो व्यक्ति विवाह  नहीं करना चाहते ऐसे व्यक्तियों को किसी भी प्रकार से विवाह के लिए विवश नहीं करना चाहिए, प्रभु कहते हैं की एक विवाहित मनुष्य में विवाह  के बाद परिवर्तन आ जाता है, उसे उससे अधिक उसके जीवन साथी  के साथ से ज्यादा जाना जाता है किन्तु एक अविवाहित के जीवन में ऐसा मोड़ नहीं आता की लोग उसे उसकी जगह किसी और की वज़ह से या किसी और के साथ होने की वज़ह से  जाने, प्रभु कहते है विवाहित  स्त्री विवाह के बाद सुहागिन कहलाती है और यदि उसके पति की मर्त्यु हो जाए तो लोग उसे विधवा के नाम से बुलाते  हैं किन्तु एक अविवाहित स्त्री सदेव एक जैसी ही रहती है न तो लोग उसे कभी सुहागिन बुलाते हैं और न ही उसके पति की मृत्यु के पश्चात विधवा, ऐसे ही पुरुष शादी के बाद विवाहित कहलाता है और यदि उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाए तो विधुर, कुल मिलाकर स्त्री-पुरुष के जीवन में विवाह के बाद उनके जीवन में ही नहीं उनके जान्ने में भी और एक दुसरे के साथ से ही  अनेक परिवर्तन आ जाते हैं किन्तु एक अविवाहित व्यक्ति सदेव एक जैसा ही रहता है। 

     प्रभु कहते हैं जिस मनुष्य में अपनी कामेच्छा को काबू में रखने की द्रिड इच्छाशक्ति है केवल वे ही व्यक्ति विवाह न करे और जिन मनुष्यों में अपने कामेछाशक्ति को काबू में रखने दम नहीं है उन्हें विवाह कर व्याभिचारी होने से बचना चाहिए, प्रभु कहते  हैं एक पुरुष को विवाह के पश्चात उसके अपने जीवन और अपने शरीर परा उसका अधिकार नहीं रह जाता, ये अधिकार उसकी पत्नी को मिल जाता है और ठीक उसी प्रकार एक स्त्री को भी विवाह के पश्चात उसके जीवन एवं उसके शरीर पर उसका अधिकार न हो कर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है, इस प्रकार एक विवाहित व्यक्ति पूर्ण रूप से अपने जीवनसाथी पर समर्पित हो कर सुखद वैवाहिक जीवन प्राप्त करता है। 



प्रभु कहते हैं एक अविवाहित और नेतिक पथ पर चलने वाला व्यक्ति बड़ी ही आसानी से प्रभु को प्राप्त कर सकता है, क्यों की ऐसे व्यक्ति बड़ी ही सहजता से प्रभु में ध्यान लगा लेते हैं किन्तु विवाहित व्यक्ति इतनी आसानी से प्रभु में ध्यान नहीं लगा पाते और इस प्रकार वो प्रभु को नहीं प् सकते किन्तु उनके अपने सत्कर्म उन्हें प्रभु का प्रिये अवश्य बना देते है, इसलिए प्रभु कहते है सदेव सत्कर्म करो और मेरे द्वारा बताये गए पथ पर चल कर मेरी बातों का अनुसरण करो और मोक्ष को प्राप्त हो। 





ईश्वर वाणी -35, ishwar Vaani-35 **स्वर्ग और नरक **



नमस्कार दोस्तों आज फिर हम हाज़िर हैं ईश्वर वाणी में ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के विषय में आपको जानकारी देने , दोस्तों हमारे मन में कुछ सवाल फिर जाग्रत हुए और उन्हें हमने प्रभु से पूछा, और प्रभु ने उन सवालों का जवाब हमे बड़े है अच्छे तरीके से दिया दोस्तों आप अब सोचने लगे होंगे की हमने क्या सवाल करे थे प्रभु से, तो आपका समय अब न लेते हुए हम आपको बता रहे है की क्या हमने प्रभु से पूछा और उनका क्या जवाब उन्होंने हमे दिय। 


प्रश्न-१- हमने पूछा प्रभु से "भगवंत हमे बताये की स्वर्ग और नरक क्या है? हम मरने के बाद कहा जाते हैं, कुछ लोग कहते हैं की यही स्वर्ग और यही नरक है बताये प्रभु क्या सत्य है"?

उत्तर-२* प्रभु बोले " सर्ग वो स्थान है जहाँ कोई दुःख नहीं, हर तरफ ख़ुशी और आत्म संतुष्टि है, कही भी किसी प्रकार का कोई बेर भाव नहीं है, कोई भेद भाव नहीं है, किसी भी प्रकार की न तो सीमा है और न दीवार है, जहाँ केवल आत्मिक शान्ति  और ख़ुशी है, जहाँ कोई दर्द नहीं जहाँ कोई दुःख अथवा पीड़ा नहीं वो ही स्वर्ग है"।




"प्रभु कहते है नरक के विषय में की जहाँ दुःख है, दर्द है, न शान्ति है, ना प्रेम  है, जहाँ  अनेक प्रकार की दीवारे हैं, जहाँ  अनेक   तरह के भेद भाव हैं, जहाँ न सम्मान है और न अपनापन है, जहाँ स्वार्थ सिध्ही है  वो ही स्थान  नरक है"।


प्रभु कहते हैं " जो मनुष्य अपने जीवन काल में अनेक पीड़ा झेल कर भी बुराई के मार्ग पर नहीं चलता अपितु सत्य के मार्ग पर चलता रहता है निश्चित ही अपने भोतिक शरीर को त्यागने के पश्चात वो स्वर्ग का भागी होता है, जो मनुष्य काम क्रोध लोभ, मोह और अहंकार का त्याग कर , अपने देश और विभिन्न प्रकार की मानव द्वारा बनायीं गयी सीमाओं को त्याग कर सम्पूर्ण श्रृष्टि को अपना घर और समस्त प्राणियों को अपना बंधू समझ कर सदेव उनके हित और उनके प्रति दयालु हो कर कार्य करता है, जो स्वाम के अपने दुखों से जितना विचलित नहीं होता किन्तु यदि और किसी और प्राणी को किसी दुःख में देख ले तो खुद से ज्यादा विचलित हो जाए और उन्हें उनके दुःख को दूर करने हेतु कार्य करे अथवा कोशिश भी करे तो ऐसे मनुष्य निश्चित ही ईश्वर के अति प्रिये होते हैं और उन्हें जितना कष्ट ही मानव रुपी भोतिक शरीर में भले उठाना पड़े किन्तु शरीर त्याग के बाद स्वर्ग के पात्र बनते हैं, किन्तु इसके साथ ही प्रभु कहते हैं की केवल वे ही स्वर्ग के पात्र बनते हैं मनुष्य जो इस प्रकार के कार्य तो करते हैं किन्तु साथ में वो ये भी अपने मन में सोचते हैं की इश्वर सब देख रहा है और उनके इस कार्य का उचित फल उन्हें अवश्य मिलेगा,

         प्रभु कहते हैं जो स्वर्ग में आया है निश्य ही उससे असीम सुख की प्राप्ति होगी किन्तु जब उसके पुण्य पूर्ण होंगे तब उसे फिर से धरती पर भेज दिया जायगा, निश्चित ही उसे मानव रूप ही मिलेगा ताकि वो फिर से इस प्रकार सत्कर्म करे  जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति हो। 

प्रभु कहते हैं जो मानव बिना किसी फल की आशा करे सत्कर्म  यानि की इश्वरिये मार्ग पर चल करा सदेव उचित व्यवहार के साथ उचित कार्य करते हैं चाहे उन्हें कितना भी कष्ट क्यों न भोगना पड़े किन्तु घबराते नहीं है और ईश्वर  पे  पूर्ण आस्था रख कर बिना स्वार्थ के अथवा ये भाव रखे बिना की भगवन उन्हें देख रहा है अवं उन्हें उसके कार्यों के कारण निश्य ही स्वर्ग अथवा उचित फल मिलेगा बिना ऐसी भावना के जो कार्य करते हैं उन्हें ईश्वररीये लोक की प्राप्ति होती है, अर्थात जिस रूप में और जिस नाम से मनुष्य उनकी पूजा करता है अवं अपने भोतिक स्वरुप में वो जिस पर आस्था रखता है ऐसे मनुष्य को शरीर त्यागने के पश्चात अपने आराध्य के लोक में स्थान प्राप्त होता है, प्रभु कहते हैं की ऐसा नहीं है की जितने नामों से लोगों ने उन्हें बाँट रखा है उतने ही लोक संसार में विराजित है और न ही जितने लोग आपस में अपने प्रकार के भेद भाव के कारण बनते हैं उतने ही स्वर्ग इस ब्रह्माण्ड में मौजूद है, प्रभु कहते हैं की स्वर्ग और ईस्वर का लोक ब्रह्माण्ड में केवल एक ही है किन्तु जैसी भावना जिसकी रहती है अपने भोतिक शरीर को त्यागते समय उसके सुक्ष शरीर यानि की अभोतिक शरीर जो की आत्मा है उसे उसी रूप में स्वर्ग अवं प्रभु लोक के दर्शन होते हैं अवं वैसा ही स्वर्ग अवं प्रभु लोक उसे प्राप्त होता है। 

             प्रभु कहते हैं जो मनुष्य नास्तिक होते हैं किन्तु जो सदा सत्कर्म करते रहते हैं अपने भोतिक रूप में यधपि ऐसे मनुष्य आजीवन प्रभु का नाम भी न लेते हो किन्तु केवल सत्कर्म निह्सार्थ भाव से करते रहे हो, ऐसे मनुष्य भी प्रभु लोक में प्रवेश के अधिकारी होते हैं, प्रभु कहते हैं ऐसे मनुष्यों को मैं अपने निराकार स्वरुप में खुद ही विलीन कर उन्हें मोक्ष प्रदान करता हॊन। 





किन्तु प्रभु नरक के विषय में कहते हैं "जो प्राणी केवल अपने स्वार्थ के वश में, अहंकारी हो कर अपने सम्पूर्ण जीवन को केवल अपने भोतिक सुखों में लगाये रखता है अवं दुसरे निर्दोष प्राणियों का अहित अपने स्वार्थ सिध्ही हेतु करता रहता है, उसे निश्चित है नरक की प्राप्ति होती है, प्रभु कहते हैं नरक वो स्थान है जहाँ केवल उसे दंड के स्वरुप कष्ट और विभिन्न प्रकार की यातनाये दी जायंगी ऐसा इसलिए होगा क्यों की उसके जीवन काल में उसने कई निर्दोष प्राणियों के भी ऐसी ही यातनाये दी थी अपने स्वार्थ की खातिर,

    प्रभु कहते हैं एक तरफ स्वर्ग और प्रभु का लोक ऐसे दुष्ट व्यक्तियों को नज़र आएगा और दूसरी और नरक जहाँ वो अपने कर्मोनुसार दंड प् रहे होंगे, उन्हें दिखाई देगा की जिन प्राणियों ने उनके द्वारा दुःख पाया अपने जीवन काल में अब वो सुख पा रहे हैं और एक वो हैं जिन्होंने अपने जीवन काल में सभी सुख भोगे आज उससे कई गुना ज्यादा कष्ट पा रहे हैं, प्रभु कहते हैं ऐसे मनुष्य अपने दंड भोगे के पश्चात फिर से अपने कर्मो के प्रायश्चित हेतु फिरसे जन्म लेते हैं और यदि वो इसके पश्चात नेक और भले कर्म बिना किसी स्वार्थ और आशा के करते हैं तो इस जन्म के बाद मोक्ष के पात्र बनते हैं, 


     "प्रभु कहते हैं की जो लोग स्वर्ग में रहते है वो लोग नरक की यातना झेल रही आत्माओ को भली प्रकार देखते रहते हैं, ईश्वर कहते हैं ऐसा इसलिए  द्वारा निश्चित किया गया है क्यों जब स्वर्ग का समय पूर्ण करने के पश्चात वो फिर से जन्म ले तो अहंकारी और व्याभिचारी न बन जाए और अपने जन्म के उद्देश्यों से न भटक जाए, इसलिए स्वर्ग की यातना को वो सदेव किसी न किसी रूप में याद रख कर वो अपने जीवन को सदा नेक और सत्कर्मो को सौंप दे और शरीर त्यागने के पश्चात मोक्ष को पाये"। 



प्रश्न-२* हमने पूछा प्रभु से "भगवंत क्या भोतिक शरीर के साथ भी स्वर्ग अवं नरक की अनुभूति हमे हो सकती है"? कृपया मार्गदर्शन करे। 

उत्तर-२* प्रभु बोले" जिस मनुष्य के मन में आत्म संतुष्टि है, जिस मनुष्य में "और" की भावना नहीं है, जिसे जितना मिल गया उतने में ही प्रसन्न रहने का गुण है, जो व्याभिचार से दूर, भेद भाव और झूठी सीमाओं से दूर सदेव नेतिकता का पालन करने वाला, झूठा और धोकेभाजो का न साथ देने वाला और न समभंद रखने वाला और इसके साथ ही जो मनुष्य प्रभु वचनों का पालन करता है, उसे इसी भोतिक स्वरुप में स्वर्ग की अनुभूति होती है, ऐसे मनुष्यों को दुःख में दुःख की अनुभूति नहीं होती और ख़ुशी में ख़ुशी की", प्रभु कहते है " जिसे ख़ुशी में कोई ख़ुशी न महसूस और और दुःख में कोई दुःख न दिखाई दे, जो हर मौसम में और हर परिश्तिथि में एक जैसा रहे ऐसे मनुष्य को अपने भोतिक शरीर में ही स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है"। 



प्रभु भोतिक जीवन में  नरक के विषय में कहते है " जिस मनुष्य में "और " की भावना है, जो मनुष्य सदेव लालच में रह कर अधिक और अधिक अपने शारीरिक सुख की वस्तुओं को पाने में लगा रहता है उसे इसी शरीर में नरक की अनुभूति हो जाती है, प्रभु कहते है उसके आत्म संतुष्ट न होने की भावना ही उसका सबसे बड़ा कष्ट बनता है जो उसके इस जीवन को नाराकिये बना देता है"। 




प्रभु कहते हैं की मैं मनुष्य को पहले ही बड़ा देता हूँ की उसे नरक का रास्ता चुनना है या मुझे अथवा स्वर्ग को प्राप्त करने का रास्ता चुनना है, यधपि जन्म से पूर्व सभी आत्माए ये ही कहती है की उन्हें तो प्रभु को पाने का मार्ग चाहिए किन्तु इस शरीर को प् कर वो अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, ऐसे में मैं उन्हें विभिन प्रकार के कष्ट अवं अनेक परीक्षाओ के माध्हय्म से उन्हें उनके उद्देश्य याद दिलाने का प्रयत्न करता हूँ, इसके पश्चात जो प्राणी अपने को और अपने कर्तव्यों की जान जाते हैं उन्हें स्वर्ग जैसा अनुभव यही प्राप्त हो जाता है और शरीर त्यागने के बाद भी उन्हें असीम सुख की प्राप्ति होती है किन्तु जो जान नहीं पाते उन्हें नाराकिये कष्ट यही झेलने पड़ते हैं इसके साथ भोतिक शरीर त्यागने के पश्चात भी उन्हें नरक की प्राप्ति के पश्चात अनेक कास्ट दंड के रूप में झेलने पड़ते है।




अर्चना मिश्र