Thursday 6 October 2016

ईश्वर वाणी-प्राणी कल्याण १५३

 ईश्वर कहते है "हे मनुष्यों तुमने मुझे अनेक नाम और रूप मैं बाँट रखा है किन्तु मेरा वास्तविक रूप निराकार है, हे मनुष्यों मैं सम्पूर्ण स्रष्टि मैं समस्त जीवों मैं हर स्थान मैं मोज़ूद हूँ,
हे मनुष्यों मेरे लिये कोई सीमा नही है, मै ही सभी जीवों का मालिक एवं समस्त स्रष्टी को बनाने वाला उसका मालिक हूँ,

एक सच्चा साधू/संत/सन्यासी जो मेरी उपासना करता है वो भी किसी भी सीमा (जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, रंग-रूप, देश-प्रदेश, जीव-जन्तु) मै न बंध कर पूरी प्राणी जाती के हित बारे मैं सोचते है उनका कल्याण करते है,

किंतु पाखण्डी जो संत, सन्यासी, साधू के भेष मै होते है वो न सिर्फ जीवों मैं अपितु मानव मैं भेद कर मुझे भी अपने स्वार्थ के लिये अनेक नाम और रूप मैं बॉट देते है,

हे मनुष्यो विश्व शाँति एवं कल्याण हेतु मेरी शरण मैं आओ या उन संतो के पास जो विश्व एकता और कल्याण मैं सलग्न है तभी तुम्हारा हित हो सकेगा अन्यथा मानव खुद ही अपने विनास का उत्तरदायी होगा




तुम्हा कल्याण हो"

Monday 3 October 2016

किस देश मैं तुम हो(ये रचना उनकी याद मैं लिखी है जो अपने सदा के लिये हमैं छोड़ ईश्वर के पास चले गये"

"ढूँड्ती है मैरी नजर हर दिशा हर कहीं बस तुझे
पुकारता है ये मन हर वक्त हर कहिं बस जिसे,

मुझसे दूर आज जाने किस देश मै तुम हो
है यहॉ अनेक रूप जाने किस भेष मैं तुम हो,

याद है मुझे हर लम्हा संग तेरे जो जिया था
मीठी संग खुशी का आलम कभी यहॉ हुआ था,

साथ मेरा छोड़ आज़ जाने किस देश मै तुम हो
तन्हा हूँ मै बहुत और जाने किस भेष मैं तम हो,

हर खुशी मीठी थी मेरी बस संग तुम्हारे
जीवन मैं कितने रंग थे जब तुम हुये हमारे,

जिन्दगी दे गयी धोखा आज जाने कहॉ तुम हो
मीठी के बिना क्या आज़ खुशी मैं तुम हो,

मुझसे दूर जाने आज़ किस देश मैं तुम हो
हैं यहॉ अनेक रूप जाने किस भेष मैं तुम हो....."

Sunday 2 October 2016

पुरुषवादी व्रत, उपवास एवं त्यौहार(एक लेख)

हमारा देश कितना विशाल है, अनेक रीती रिवाज़ और संस्क्रति का यहॉ समागम है, अपनी अपनी आस्था के अनुसार यहॉ कितने तीज त्यौहार व्रत उपवास यहॉ किये जाते है,

मैंने बहुत समय से ये नोटिस किया है हमारे जितने भी त्यौहार एंव व्रत उपवास है वो सभी पुरूषों के कल्याण और उनकी तरक्की के लिये ही है, एक भी व्रत उपवास या त्यौहार स्त्री के लिये नही है,

यहॉ कुछ लोग कहेंगे नवरात्रै तो पूरी तरह लड़कियों को समर्पित होते है, नारी की पजा होती है और तो और पुरुष खुद भी उसके आगे शीश नवाता है, फिर सभी पुरुष प्रधान व्रत उपवास एंव त्यौहार कैसे हुये??

उन्हें मेरा जवाब केवल इतना ही है नवरात्रौ की पूज व्रत आदि मैं लोग केवल पुरुष की कामना करते है, कोई पुत्र पाने के लिये, कोई पति पाने के लिये, कोई भाई पाने के लिये, पुरुष की तरक्की के लिये, लम्बी आयु के लिये और भी कितनी पुरूषवादी मनोकामना पूर्ति के लिये कर्म कान्ड किये जाते है,

पर स्त्री जो जगत की जननी है उसे इस पुरुषवादी सोच ने धार्मिक क्रत्यो मैं सबसे पिछड़ा दबा कुचला स्थान दिया है, तभी तो कोई पूजा व्रत उपवास मॉ, बहन, पत्नी की लम्बी आयु स्वास्थय तरक्की विकास के लिये नही बनाये गये, कारण नारी को पुरुषो द्वारा दोयम दर्जा देना,

मुझे हेरानी होती है बरसौ से पुरुषवादी इस सोच को महिलायै अपने ऊपर बड़े गर्व से ढोती आयी है और ढो रही है, न अतीत मै न वर्तमान मै महिलायें इसके खिलाफ नही गयी, आजकल की पड़ी लिखी आत्मनिर्भर महिला भी इसके खिलाफ जाने की हिम्मत नही करती कारण प्राचीन काल से चली अंधस्रध्धा, जिसके खिलाफ वो जाने की हिम्मत नही कर सकती,

ये कुछ मूलभूत कारण है वर्तमान मै नारी की इस दुर्दशा के और काफी हद तक नारी भी इसकी जिम्मेदार है जिसने अपने ऊपर हुये इन अत्याचारों के विरूध कोई आवाज़ नही उठाईं और नारी पुरुषों की केवल दासी बन कर रह गयी!!

Copyright@
Archana mishra

Friday 30 September 2016

ishwar vaani-152, sachha sukh

Ishwar kahte hain, "hey manushyo tum aksar bhautik vastuon mein sukh dhoondte ho, kintu sachha sukh in me nahi milta, 

Praniyo ki ichhaye nirantar badalti rahti hai, jis ke kaaran manav sada atrapt rahta hai jisse usse santushti nahi milti aur WO dukh ko prapt karta hai,

Hey manavo sachha sukh kewal aatm santushti se milta hai, aur aatm santushti bhakti se,  evam bhautik sukh ko tyaag kar hi milti hai,

Yadhapi tum bhautik sukho ko hi sachha sukh maano lekin tumne dekha hoga jis bhautik vastu ko tum paana chahte ho aur prapt bhi kar lete ho tumhe sukh milta hai kintu agle hi pal koi vastu kisi ke pass  dekhte ho Jo tumhare pass nahi hai to tum usse paane ki chahat rakhte ho aur yadi na mile WO vastu tumhe to tum dukhi ho jaate ho,

Kintu yadi aatm santushti ki bhaawana tum viksit kar kar lo aur Jo tumhare pass hai usme khush rahne ki aadat viksit kar lo to kabhi dukhi nahi hoge,

Sachha sukh kewal bhakti aur aatm santushti se hi prapt kiya ja sakta hai"


Kalyan ho

Wednesday 17 August 2016

ईश्वर वाणी १५१, शिव लिंग का अर्थ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुमने शिव लिंग के विषय मैं अनेक लोगों की टिप्पणी सुनी होगी, कुछ ने तो अश्लीलता की सीमा ही पार कर दी इस पवित्र शिव लिंग की व्याख्या करने मै किंतु सत्य क्या है उन्हे पता नही, पता कैसे हो भला जो काम वासना वाली अपनीअपनी विचारधारा भगवान पर भी थोपते हो,


हे मनुष्यौं शिव लिंग तुम्है निराकार ईश्वर के विषय मैं बताता है, साथ ही तुम्हारी श्रध्धा के अनुसार एवं ईश्वरीय लीला के अनुरूप वो स्त्री और पुरुष का रूप रख कर देवी या देवता बनते है, लेकिन वास्तविक रूप वही निराकार ही है,

है मनुष्यौ साथ ही शिव लिंग ये बताता है प्राणी जाती के जन्न एंव उत्थान के लिये पुरुष एंव नारी दोनो ही आवश्यक है, साथ ही शिव लिंग भगवान शंकर के अर्ध नारीश्वर रूप का ही एक अंश है,


है मनुष्यौं यदि कोई तुम्है इस विषय पर भरमाये तो उस अग्यानी को ये तथ्य बता कर उसकी अग्यानता दूर कर ईश्वर के वास्तविक निराकार सत्य रूप का प्रसार करना,


तुम्हारा कल्याण हो "

Monday 8 August 2016

ईश्वर वाणी-१५०, ईश्वर का प्रसाद

 ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यध्यपि मै तुम्हारी सच्ची प्रेम पूर्वक की गयी अराधना, स्तुति को स्वीकार करता हू, किन्तू मेरी पूजा मैं दीप, धूप, पुष्प आदि का क्या वास्तिक अर्थ है अर्पण करने एवं प्रज्जवलित करने का तुम्हे़ बताता हूं,

सुगन्ध चाहे पुष्प की हो या धूप अगरबत्ती की, वास्तविकता यही है इनके जैसा तुम्हारा जीवन महकता रहै, चाहे जीवन मै तुम्हैं जैसी भी परिस्तिथी का सामना करना पड़े लेकिन तुम्हारा विश्वास, यकिन न कभी डगमगाये,तुम्हारा विश्वास कायम रहै, तुम्हारा विश्वास ही तुम्हारे जीवन के सभी कष्ट हर कर तुम्हारी ज़िन्दगी महकायगा, कष्ट रूपी दुर्गन्ध को ये विश्वास ही खुशियों की सुगन्ध से महकायेगा,

हे मनुषों यु तो अनेक व्यकति जो खुद को महाग्यानी कहते है दीप जलाने मोमबत्ति जलाने के हज़ार कारण बताते है लेकिन वास्तविकता क्या है वो भी नही जानते,

हे मनुस्यों इनका प्रज्जवलन इसलिये किया जाता है ताकि तुम्हारे जीवन से अग्यान का अन्धेरा दूर हो, तुम्हारे भीतर की सभी बुराई का नाश हो, सत्य एंव सत्कर्म रूपी उजाला तुम्हारे जीवन को रोशित करे,

हे मनुष्यों यही कारण है जो  मुझे ये अर्पित किया जीता है,

मनुस्यों मुझे भोग लगाया जाता मेरी पूजा मैं कुछ न कुछ जिसे प्रसाद रूप मैं तुम सब ग्रहण करते हे, तथा प्रसाद अधिक से अधिक व्यक्ति को देने का प्रयास किया जाता है,

हे मनुष्यों ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि तुम्हारे यहा भोजन की कभी कमी न हो, तुम्हारे द्वार से कोई भूखा न जाये, अनाज़ सदा प्रसाद मेरा बनकर तुम्हारे पास रहे, साथ ही तुम्हारे भीतर भी देने की भावना जाग्रत रहे"

Friday 5 August 2016

kya pehnawa mahilao ke rape ka zimmedar hai-ek sawal aapse

Badi vidamna ki baat hai Bharat ko aazad huye 69saal ho gaye par aaj bhi hamari mansikta kitni puchhadi iska andaza desh mein berok tok ho rahe rape ke aakdo aur khatao se pata chalta hai,

Hamare neta police karmi aur bhi gadmaanya log iske liye mahilao ke pehnawe ko dosh dete hai, pashchimi sanskriti ko dosh dete hai,

Mera sawal hai kya bharat ke purush itne kamjor hai, kya bharat ke purush itne kaami hai, WO desh jaha naari ki pooja hoti hai, waha ka purush itna kamjor hota hai Jo apni kaamna par niyantran nahi rakh rakta aur jara sa kahi kisi mahila/yuvati/balika ka khulapan dekh liya uska kaami swaroop bahar aa jaata hai aur vaasna shaant karne ke liye kisi bhi had tak chala jaata hai,

Bharat desh jaha kaam vaasna ki vibhinn mudrao ko darshati gufaaye hai. Sabse adhik rape wahi hone chahiye, kyonki unhe dekh kar bharat ke purusho ka mahakami asayami roop unhe dekh kar hilore marne lagega, par aisa nahi hai, jaha par khule taur pe kaam mudra mein mauzood moorti hai waha rape kam ho rahe hai wahi jara sa apni pasand ki poshaak pahne koi aurat nikal jaaye to bhaybheet rahti hai kahi rape ki shikar na ho jaaye,

Purush ko adhikar hai bina vastra ghoomne ka wahi aurat thode kam kapde kya pahan le pursho mein hawas chha jaati hai,

Isse achhe to paashchatya desho ke purush hai, jaha mahilaaye apne hisaab se kapde pahni hai aur rape Ku shikar kam banti hai, iska matlab yahi hai Hindustani purusho ke mukable wo adhik sanyami hai sabhya hai, unke mulk mein na kaam-vaasna darshati gufaye hai aur na mahilao ko Devi man puja jaata fir bhi waha rape kam hote hai, mahilaye apne hisaab se kapde pahnti hai apne hisaab se jivan jiti hai, fir bhi waha aisi ghatnaaye kam hoti hai,

To kya iske liye videshi sanskriti aur jivan shelly ko zimmedar maane ya apni pichhdi purush wadi soch ko Jo hamesha naari ko apni hawas mitane vaasna tripti ka saadhan maatra samjhti aayi,

Maine kahi pada tha bharat ke aazad hone ke baad balatkar ki ghatnao mein tezi aayi hai, iska seedha matlab yahi hai bharat ke pursho ko kewal bahana aur dosh naari pe thop kar usse aaj bhi apni vaasna shanti ki chiz se atirikt kuch nahi samjhta,

Iske zimmedar mata pita bhi kah na kahi hai, Jo be to ko kahte hai tum kuch bhi karo tumhara kuch na jayega, jaayega jinki beti hai, tabi har pariwar beta chahta hai taaki WO samman ke saath sarr utha ke chal sake chaahe beta balatkari kyon na ho,

Is dharna aur soch mein badlaw jab tak ghar se nahi aayga tab tak rape jaise ghinone sangin apraadh hote rahenge aur kah nahi sakte agla number aapka ya apke kisi apne ka ho..


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Archana Mishra