Sunday 9 July 2017

कविता

कविता

"ज़िन्दगी में हर पल खुदको तनहा ही पाया
हर किसी से ज़िन्दगी में बस धोखा ही खाया
हम तो पहले ही घायल थे रिश्तों की चोट से
ऐसा हर शख्स मेरी ही ज़िन्दगी में क्यों आया

अश्को के सिवा यहाँ कुछ भी हमने न पाया
अपना बता हर शख्स ने हमको तो रुलाया
एक प्यार की ही चाहत दिलमे रखते थे हम
अफ़सोस कभी किसी का प्यार न मिल पाया

सूरत नहीं सीरत से हमने सभी को अपनाया
हर किसी शख्स ने मेरे अरमानो को दफनाया
सीरत भली जता दिलमें बस जाने लगे थे वो
एक दिन किसी और को अपना,हमे गैर बताया

हर रिश्ते को मान अपना प्यार सब पर लुटाया
है नही कोई गैर, सभी को यहाँ अपना बताया
सोचते थे सब अपने ही तो है इस गुलिस्तां में
पर कोई अपना कहने वाला मुझे ना मिल पाया"😢😢
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Thanks and Regards
*****Archu*****

Thursday 6 July 2017

कविता-एक बार कहा था


"हम तो आज भी वही है ठहरे
जहाँ तुमने कहा था जरा रुको

हम बस अभी थोड़ी देर में आते है
दिन, सप्ताह, बीतेे माह और साल

गुज़र गयी उमर बीत गयी ज़िन्दगी
तुम्हारे इंतज़ार में बैठे यहाँ आज भी

जहाँ तुमने लौटने का वादा किया था
वफ़ा के बदले बेवफाई निभाई तुमने

करते रहे है फिर भी ऐतबार तुम्हारा ही
तुमने फिर मिलने को एक बार कहा था'😢😢😢😢😢

कविता-ज़िन्दगी मेंरी ठहर सी गयी

"ठहरे हुए पानी की तरह, ज़िन्दगी मेरी ठहर सी गयी
अतीत में खोया है आज, कैसे इश्क में ज़हर पीती गयी

करती हूँ याद आज भी, जो गुज़ारी थी शामें इंतज़ार में
सोचती हूँ आज मैं, कैसे इतनी बड़ी भूल में करती गयी

इश्क की रंगीनियों को, बस झरोखो से ही देखती थी
मोहब्बत को जींदगी, और उसे खुदा मैं समझती गयी

आदत डाल कर अपनी, मुझे ठुकराने लगा वो हर पल
प्यार उसका समझ कर, अश्क अपने मैं बस पीती गयी

एक दिन अहसास, शायद तुझे होगा मेरी आशिकी का
हर दिन ये ही सोच कर, मर मर कर मैं बस जीती गयी

ठहरे हुए पानी की तरह, ज़िन्दगी मेरी ठहर सी गयी
अतीत में खोया है आज, कैसे इश्क में ज़हर पीती गयी-२"

Sunday 2 July 2017

कविता-न तन्हाई जाये

करके वफा तुझसे, नसीब में मेरे तो बेवफाई आये
कर हर खुशी नाम तेरे, ज़िन्दगी से न तन्हाई जाये

'मीठी' सी चाहत का, एक ख्वाब देखा था बस मैंने
तोड़ कर हर ख्वाब, 'ख़ुशी' क्यों हर बार रुलाई जाये

तेरे ही इश्क में 'मीठी', भुलाई है मैंने दुनिया सारी
तुझसे क्यों न 'ख़ुशी' से, दुनिया ये भुलाई जाये

याद में तेरी, कितना तड़पती है 'मीठी' पल पल
'ख़ुशी' इन लबो पर, तुझसे आखिर न लायी जाये

'मीठी' बातो से दिल, चुराने वाले ए मेरे हमनसिं
'ख़ुशी' की कोई बात, तुझसे न कभी बताई जाये

मेरी मोहब्बत को, कर दिया बदनाम तुमने जग में
फिर भी मिलाते हो आँखे मुझसे, ये न छिपाई जाये

की है आशिकी यहाँ, तुमने भी कभी किसी से तो
क्यों आखिर, तुमसे ये अब न किसिसे जताई जाये

कमी क्या लगी, तुम्हे मेरी मोहब्बत में ऐ मेरे हमदम
कुछ आज तुम मेरी सुनो, कुछ तुम्हारी सुनाई जाये

न बैठो अब और खामोश तुम, बोलो न मुह फेरो तुम
गुमसुम बहुत रह लिये, आज कुछ अपनी बताई जाये

करके वफा तुझसे, नसीब में मेरे तो बेवफाई आये
कर हर खुशी नाम तेरे, ज़िन्दगी से न तन्हाई जाये-2

 कॉपीराइट@मीठी-ख़ुशी(अर्चना मिश्रा)

Saturday 1 July 2017

मुक्तक

"खोया था कभी दिल मेरा भी इन वादियो में
पाया था मैंने भी उन्हें ही इन वादियो में
मोहब्बत के सौदागर निकले वो मेरे हमदम
मिले थे कभी हम उनसे भी इन वादियो में"

"रह रह कर मुझे तेरी याद आती है
पल पल मुझे ये कितना सताती है
दूर जा कर मुझसे खुश है कितना तू
याद तेरी इन आँखों पर अश्क लाती है"

"दिल तोड़ कर मेरा चला गया हरजाई
 वफ़ा के बदले उसने दी बस बेवफाई
 मैंने तो जान भी कर दी थी हवाले उनके
 मेरी मोहब्बत पर उसने दया भी न दिखाई"

Tuesday 27 June 2017

मुक्तक

"जाने कैसे सबको उनका प्यार मिल जाता है
जाने कैसे सबको उनका यार मिल जाता है
हमको तो मिलते है मोहब्बत में ठग हर मोड़ पर
जाने कैसे सबको उनका संसार मिल जाता है"

Monday 26 June 2017

ईद मुबारक

"ऐ खुदा कुछ ऐसी रहमत कर दे
 इस ईद पर गरीब का पेट तो भर दे
 रोये न भूख से बिलखकर कोई फिर
खुदा करिश्मा तू आज ऐसा कर दे"