Thursday 10 January 2019

ईश्वर वाणी-267, अधिकता अथवा कमी का असर

ईश्वर कहते है, "है मनुष्यों जैसे तुम्हारे शरीर मे मैंने कुछ अतिरिक्त नही दिया है वैसे ही इस पृथ्वी व सम्पूर्ण ब्रह्मांड में कुछ अतिरिक्त नही दिया है, जैसे तुम्हारे शरीर मे किसी चीज़ की अधिकता या कमी होने पर तुम अनेक परेशानियो का सामना करते हो वैसे ही ईश पृथ्वी व ब्रह्मांड में किसी की अधिकता या कमी से भी अनेक परेशानिया ही बढ़ेंगी।

  इसीलिये हे मनुष्यों जैसे तुम्हारे शरीर मे किसी चीज़ की अधिकता या कमी न हो इसके लिए निम्न नियम बनाये है, जिनका पालन करने से तुम एक स्वस्थ जीवन जीते हो वैसेही   समस्त ब्रह्मांड के लिये है जिसके अनुरूप ये समस्त जगत कायम है।

यधपि इसकी अधिक या कम मात्रा सृष्टि व प्राणी जगत के लिये घातक होती है, मैंने तो यधपि सब संतुलित भेजा है किंतु मनुष्य इससे असंतुलित कर अपना विनाश खुद लिख रहा है, यदि वो न रुका तोनिश्चित ही भयावह होगा अति भयावह।"

कल्याण हो

Sunday 30 December 2018

प्रभु येशु का एक गीत। "येशु तेरे चरणों की"



येशु तेरे चरणों की इक धूल जो मिल जाये
माथे से लगा लू जो
ये जीवन सवर जाए

येशु तेरे चरणों की....................।

भटके  हुए कदमो को इक मन्ज़िल मिल जाये
तू थाम जो हाथ मेरा
ये जीवन सुधर जाए

येशु तेरे चरणों की इक धूल जो मिल जाये........................।

मझधार में फंसी नैया पार तो हो जाये
तू रोक दे जो ये तूफान
ये भवर तो थम जाए

येशु तेरे चरणों की........
.............................।

Monday 19 November 2018

ईश्वर वाणी-266 कही अधिक समय न हो जाये

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों ये दुनिया ये धरती और इस पर रहने वाले सभी जीव मेरे लिए उस राजा के बाग के सुंदर पुष्प के समान है जिसके बाग में सदा ऐसे ही फूल खिलते हो और बाग को सदा ऐसे ही महकाते हो।


वही मनुष्य मेरे लिए उस माली के समान है जिस पर एक बाग की ज़िम्मेदारी होती है, उसका कर्तव्य होता है कि किसी भी फूल, पौधे या पेड़ को किसी तरह का कोई नुकसान न हो, यदि कोई फूल या कली या पौध या पेड़ मुरझा रहा है तो माली देखता है कि ऐसा क्यों हो रहा है साथ ही इसका निवारण वो करता है, जैसे एक पिता के लिए उसकी संतान होती है और पिता पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी संतान का ख्याल रखता है  वैसा ही रिश्ता माली और बाग में लगे इन सभी पुष्पों, पौधों और वृक्षों का होता है।
किंतु क्या हो अगर माली खुद को इस बाग का स्वामी समझने लगे, अपनी शक्ति इस बाग की देखभाल के स्थान पर इसको उजाड़ने में लगाने लगे, फूलो को तोड़ कर पैरो तले कुचलने लगे, कलियों समय से पहले ही तोड़ दे पेड़ से और पैरों से कुचलने लगे, क्या हो माली और बाग के इन फूलों का पेड़ो का और पौधों का रिश्ता जो पिता और संतान का था आज मालिक और दास का बन गया है, अपने अभिमान में माली समस्त बगिया उजाड़ कर मनुष्यों की एक बस्ती बना दे।
क्या हो जिस बाग पर वो अधिकार दिखाने लगा है उसके असली मालिक को वो तुच्छ मान कर मनमानी करने लगे, क्या वो मालिक चुप रहेगा माली की इस हरकत पर या दंड देगा?
हे मनुष्यों दंड मिलेगा माली को या नही ये बाद में में तुम्हे बताऊंगा लेकिन तुम खुद देखोगे और महसूस करोगे एक सुंदर बाग के उजड़ने पर वो स्थान कैसा लगता है, क्या तुम्हें वो स्थान अच्छा लगता है, क्या ऐसा करने वाले कि तुम तारीफ करोगे??
हे मनुष्यों ये पूरी धरती व समस्त ब्रह्मांड मेरा घर है, धरती पर रहने वाले सभी जीव जंतु मेरे  धरती रूपी बगिया के सुंदर फूल है, चुकी मैंने श्रष्टि के प्रत्येक जीव को कोई न कोई कार्य दिया है, तो मैंने इस बगिया रूपी धरती की देखभाल व मेरे इन प्यारे पुष्पों की देखभाल हेतु मनुष्य बनाये, जिन्हें इनकी देखभाल का कार्य सौंपा।
किंतु समय के साथ मनुष्य खुद को यहाँ का स्वामी समझने लगा, जो अधिकार उसे मैने मेरी बगिया की देखरेख के दिये उसे उसने उसे अपनी शक्ति समझ इस बगिया को उजाड़ना शुरू कर दिया।
आज ये हालात है कि मेरी बगिया के कई फूल आज सदा के लिए धरती से गायब हो गए हैं, किन्तु मैं भी इस पूरी बगिया मालिक हूँ, मैंने भी मनुष्य को ऐसा सबक सिखाया है कि मनुष्य खुद अपनी जाति का शत्रु बन बैठा है और वो समय दूर नही जब मनुष्य खुद अपनी ही जाती के विनाश का उत्तरदायी होगा।
भाव ये है इंसानी स्वार्थ चाहे जीभ का स्वाद चाहे परंपरा या रीति रिवाज या मौज मस्ती इन सब के कारण मनुष्य निरीह जीवो की हत्या करता है, और इस कारण धरती से कई जीवो की प्रजाति पूरी तरह लुप्त भी हो चुकी है लेकिन फिर भी मनुष्य नही थमा है, वो आज भी निरीह जीवो को सताता है, मारता है खाता है वो भूल जाता है जिन अंगों को वो खा रहा है वो उसके अंदर भी है, क्या हो अगर कोई उसके अंगों को भी इसी तरह खाये, रीति रिवाज, मौज मस्ती या जीभ के स्वाद के लिए कोई उसके परिवार को मार दे तो कैसा लगेगा, तो जिन्हें तुम मारते व खाते हो क्या हुआ जो तुम्हारी भाषा वो नही बोलते तुम उन्हें मारते व खाते हो, क्यों ये पाप करते हों, मेरे अनुसार जब तक तुम्हारी जान पर न बने तब तक किसी भी प्राणी की किसी भी तरह हत्या नही करनी चाहिए, किसी निरीह या निर्दोष की जान बचाने हेतु भी की हत्या किसी पाप की श्रेडी में नही आती किंतु इसके अतिरिक्त जीवो की हत्या पाप है, क्योंकि प्रत्येक जीव को मैंने बनाया है, जैसे तुम्हे बनाने के कारण मैं तुम्हारा परमपिता हूँ  उसी तरह मैं उनका भी आदि पिता हूँ, मेरे लिए तुम सब समान हो, मेरे लिए भौतिक देह मायने नही रखती की तुम मनुष्य हो या अन्य जीव क्योंकि ये देह तो आत्मा रूपी तन को ढकने का एक वस्त्र समान है,

साथ ही मनुष्य जिसने अपने अधिकारों का गलत उपयोग शुरू कर जीवों की हत्या की निरीहों का रक्त बहाया, उन्हें यातना दी, उनकी हाय उनकी बद्दुआ समस्त मानव जाति को लगी और इसलिए इंसान इंसान का दुश्मन बन अपनों का और अपनी जाति का विनाश करने पर तुला है, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा,वेशभूषा आदि के नाम पर मनुष्य लड़ कर एक दूसरे की हत्या कर रहा है, जितना खुद का विकास किया है उतना ही विनाश के साधनों का विकास कर अपने विनाश के तरफ तेज़ी से बड़ा है।

मनुष्य ने जैसा बोया वैसा ही उसे फल मिल रहा है किंतु अभी भी समय है सुधर जाओ कही अधिक समय न हो जाये और पश्चाताप का समय भी न मिले धरती से जीवन ही नष्ट हो जाये।"

कल्याण हो

Wednesday 5 September 2018

एक माँ के लिए उसकी बेटी एक सौतन के समान होती है

कहते है माँ ईश्वर का साक्षात रूप होती है, लेकिन मैंने महसूस किया है दुनियां की अधिकतर माँ बेटी के लिये ईश्वर का रूप नही होती, एक माँ बेटी को अपनी सौतन की तरह देखती है, उसे लगता है जो कुछ मान सम्मान और प्यार वो उसके हिस्से का उसकी बेटी ले जाएगी, उसकी शादी में भी उसका सब कुछ चला जायेगा, कुल मिला कर एक बेटी मा के लिए सिर्फ और सिर्फ सौतन के समान होती है। वही एक पिता के लिए वो एक आर्थिक नुक्सान के समान है, जिसके जन्म से लेकर पढ़ाई लिखाई और शादी सब कुछ एक आर्थिक नुकसान है। दुख की बात है जगत जननी नारी के बारे में अपनों की ही कितनी घटिया राय होती है, लेकिन एक औरत ही औरत की दुश्मन होती है जिस  दुश्मनी का फायदा ये पुरूष समाज तो उठाएगा ही, पता नही नारी की सोच कब बदलेंगी, कब अपनी ही जाती नारी जाति के प्रति प्यार और सम्मान जागेगा। और जब तक ऐसा नही होगा तब तक नारी यूँही अपनो के हाथों अपमानित होती रहेगी, उसके लिए मा का प्यार बस एक सौतन कि मोहब्बत जैसा और पिता का आर्थिक नुकसान में भी मजबूरीवश मुस्कुराने जैसा होगा।



کہتے ہے ماں خدا کا ساكشات طور ہوتی ہے، لیکن میں نے محسوس کیا ہے دنیاں کی زیادہ تر ماں بیٹی کے لیے خدا کا طور نہیں ہوتی، ایک ماں بیٹی کو اپنی سوتن کی طرح دیکھتی ہے، اسے لگتا ہے جو کچھ مان احترام اور محبت وہ اس حصے کا اس کی بیٹی لے جائے گی، اس کی شادی میں بھی اس کا سب کچھ چلا جائے گا، کل ملا کر ایک بیٹی ما کے لئے صرف اور صرف سوتن کی مانند ہوتی ہے. اسی باپ کے لئے، وہ مالی نقصان کی طرح ہے، تعلیم اور شادی کی پیدائش سے ہر چیز ایک اقتصادی نقصان ہے. افسوس ہے، دنیا کے بارے میں لوگوں کی ایک غریب رائے ہے، لیکن عورت خاتون کا دشمن ہے؛ اس دشمن کا دشمن اس کا فائدہ اٹھائے گا، یہاں تک کہ جب یہ نہیں جانتا کہ خواتین کس طرح تبدیل ہوجائے گی، ذات ذات کے لئے محبت اور احترام وہاں رہیں گے. اور جب تک ایسا نہیں ہوتا، عورت اپون کے ہاتھوں میں ذلیل ہوجائے گی، کیونکہ اس کی والدہ کی محبت والدین کی اقتصادی نقصان میں نرمی کی محبت اور غم کی مسکراہٹ کی طرح ہوگی.

ईश्वर वाणी-265, परम व सच्चा सुख

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम्हारे दुख का कारण केवल भौतिक रिश्तों और भौतिक वस्तुओं के प्रति मोह है।

यद्धपि ये दुनिया ही एक माया अर्थात छलावा है, जो आज जैसा है कल वो न ऐसा होगा, जैसे तुम्हारा शरीर तुम्हारे जन्म से ले कर अब तक कितने ही रूप बदल चुका है और अंत मे एक दिन ये तुम्हारी आत्मा को भी खुद से दूर कर पंच तत्व में विलीन हो जायेगा, अर्थात ये तुम्हारी भौतिक देह भी एक माया ही है।

हे मनुष्यों में तुमसे कहता हूँ तुम इस माया का त्याग कर उस सत्य का अनुशरण करो जो तुम्हे वास्तविक सुख व शांति देता है, जो तुम्हे मुझ तक लाता है।

यद्धपि में ये नही कहता कि अपने भौतिक रिश्तो को त्याग कर वैरागी बन जाओ बल्कि उनका निर्वाह करते हुए मुझमे लीन हो जाओ, नित्य कर्म करते हुए मेरे बताये मार्ग पर चलो मेरे ही रूप को हॄदय की आँखों मे बसा मेरा ही नाम जपो, निश्चित ही तुम अपने समस्त दुखो से मुक्ति पाओगे में तुम्हे असीम शांति दूँगा, में परमात्मा हूँ।"

कल्याण हो

Chand alfaaz

[03/09 11:57 am] Meethi-khushi: Arz kiya hai
"kisi ko paane ka naam hi agar mohabbat hota-2

To aaj Krishna naa m bhi bin Radha ke adhura hota".....
[03/09 12:01 pm] Meethi-khushi: "ye jaruri nahi mohabbat mein kuch kar guzar jaaye haam,

Ae mere hamdam aise mile aaj ki tum Radha aur Krishan ban jaye ham"👌👍

कविता-टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं







“आसमां से टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की

आज लोगों की आंखों का बेबस एक नज़ारा हूँ मै
नज़्में में भी शान हुआ करती थी इस साहिल की

आज ज़मीन पर निशां ढूंढता कितना हारा हूँ मै
मोहब्बत की ज़माने से बस ये हरकत ज़ाहिल की

कभी आसमां में मेरा भी वज़ूद था औरो की तरह
बेवफ़ा से वफ़ा की उम्मीद ये अदा बस काहिल की

नाम भूल बैठा अपना शोहरत से भी आज मारा हूँ
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की

“आसमां से टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की-२"