Tuesday 12 November 2019

Something different...Horror poetry ..

क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है


शायद वो है आस पास मेरे  कहि

चुड़ैलों की आवाज़ फिर आने लगी है


होने लगी सुगबुगाहट नये शिकार की

चुड़ैलों के घर ये बात होने लगी है


फिर बिछाये बिसात शिकार के लिए

इंसानी खून की प्यास बढ़ने लगी है


बनाती नित्य नई कहानी फाँसने शिकार

लोगों से नई कहानी ये गढ़ने लगी है


करती शिकार किसी के 'बेटे-भाई' का

मारकर निर्दोषो को ये खुश होने लगी है


यारों बढ़ने लगी आबादी अब इनकी भी

क्योंकि अब ये हमारे बीच रहने लगी है


क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है-२"



So dedicate to all chudail/bhootni, dayan, pishachan.....


Kyonki suna hai fir se delhi me hi ek naya shikaar wo khojne lagi hai...

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Monday 11 November 2019

2 अल्फ़ाज़



"ये जरूरी तो नही जो रबने सब को दिया हमें भी दे
हम तकदीर के मारे है हमे तो रुसवाईयाँ मिलती है"

कौन अपना है-कविता

"दुनिया की महफ़िल में कौन अपना है

जो कहते हैं तुम्हरे है वो तो एक सपना है

साथ तो कुछ दूर तक ही देते हैं लोग यहां

झूठी है जिंदगी मौत से ही वास्ता रखना है


झूठ की दुनिया मे कौनसा रिश्ता अपना है

बेवफाई है साच्छी वफ़ा तो बस सपना है

हँसा कर रुलाना शौक है ज़माने का 'मीठी'

'खुशी' से नही अश्क से ही वास्ता रखना है


फरेबों के बाज़ार में न कोई यहाँ अपना है

इन झूठे किरदारों में मोहब्बत तो सपना है

सम्भल जा 'मीठी' वक्त अभी है पास तेरे

'खुशी' तुझे अब खुदसे ही वास्ता रखना है


दिलों की महफ़िल में न कोई अपना है

इश्क है व्यापार बाकी तो अब सपना है

रुक जा 'मीठी' न कर सौदा फिर दिलका

 दर्द भूला 'खुशी' से  तुझे वास्ता रखना है"


🙏🏻🙏
[11/11 1:26 pm] Macks-Archu: Copyright@meethi-khushi...... Archana Mishra

Sunday 10 November 2019

चन्द अल्फ़ाज़

"हर पल क्यों ये अहसास तुम्हारा है
लगता है जैसे तुमने हमे पुकारा है
पता है हमें मोहब्बत नही तुम्हे हमसे
फिरभी क्यों इस दिलमे नाम तुम्हारा है"🙏🙏🙏🙏
"हे ईश्वर मुझे हर उस चीज़ से दूर रखना जो मुझे आपसे दूर करती है"
मेरे दिलमे रहना धड़कन बन कर
ज़िस्म में रहना रूह बन कर

न मुझे खुद से कभी जुदा करना
सदा रहना मीरा के श्याम बन कर"

क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं-कविता

"क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं
लगता है किसी की यादों में खोने लगे हैं

ये असर शायद मोहब्बत का ही है
लगता है जैसे किसीकेअब होने लगे हैं

खुश रहते हैं अब तो साथ तेरे ही हम
बिन तेरे बस अकेले में हम रोने लगे हैं

ख्याल ज़हन से जाता नही अब 'खुशी' का
'मीठी' बातों से इश्क के बीज बोने लगे हैं

दिल में थे जो छिपे अरमान जुबा आ
रुक-रुक कर बस कुछ यही कहने लगे है

भूल जाये दुनिया दारी सारी आज बस
क्योंकि ऐ हमनशीं अब तेरे हम होने लगे हैं"


🙏🙏🙏🙏

ये कैसा काफिला है-कविता

"ये कैसा काफिला है

छाई खामोशी है

ठंडी है ये राते

कैसी ये मदहोशी है


रूह की पुकार है

लबों पर खामोशी है

ये काफिला है इश्क का

मोहब्बत की मदहोशी है


जुनून है तुझे पाने का

पर तेरी रज़ा पर खामोशी है

है अब हर मौसम रंगीन सनम

तेरे ऐतबार की मदहोशी है"

 शुभ रात्रि🙏🙏

कविता-कहते कहते हम रुकने लगे हैं

"कहते कहते हम रुकने लगे हैं

शायद रास्ते से भटकने लगे हैं

मंज़िल क्या थी हमारी यारो

 इन गलियो में उन्हें ढूंढने लगे हैं


ढूंढते हैं तेरे ही निशाँ यहाँ हम

देख तू बिन तेरे हम रोने लगे हैं

ठुकराया तूने हमे दिल खोलकर

पर दिलसे तेरे ही हम होने लगे हैं


सुना है अब वो बदलने लगे हैं

कहते कुछ करने कुछ और लगे हैं

शायद कसूर उनके मिज़ाज का है

छीन कर चेन कैसे वो सोने लगे हैं


हम तो याद में उनकी जागने लगे हैं

पर अब हमसे दूर वो भागने लगे हैं

है पता हज़ारो है उनके चाहने वाले

फिर भी करीब उनके जाने लगे हैं


वो दूरिया उतनी ही अब बनाने लगे हैं

हर दिन फिर नए बहाने बनाने लगे हैं

मासूम चेहरा दिखा कर फिर रूठते है

इन्ही अदाओ से तो हमे लुभाने लगे हैं"