Tuesday 31 December 2019

शायरी

 जी चाहता है तेरे सीने लग जाऊ मैं
पर ये दूरियां मुझे रोक देती हैं😡😡

चंद अल्फ़ाज़

1-"तुझे याद कर पलकें मेरी भीग जाती हैं
तेरी याद में आँखे नम मेरी हो जाती हैं
पता है 'मीठी' नही करते तुम्हे वो याद
'खुशी' तो आज भी मेरी तुमसे ही आती है"


2-"कितना खूबसूरत था साथ तुम्हारा
कितना खूबसूरत था अहसास तुम्हारा
सोचा न था जीना पड़ेगा मुझे तुम बिन
कितना खूबसूरत था हर ख्वाब तुम्हारा"

😡😡
3-"ज़िन्दगी की रेलगाड़ी में हम इस कदर आगे बढ़ गए
कुछ मिले नए लोग तो कुछ साथी बिछड़ गए"

Monday 30 December 2019

मेरे चंद अल्फाज

1-"बहुत  रह चुकी यहाँ  यु ऐसे ए ज़िन्दगी, अब  खोना  चाहती हूं
बहुत रह चुकी जहाँ में ए मौत, अब तेरी होना चाहती हूँ
सदियों से प्यासी है ये ' मीठी' जिसके लिए अब तलक यहाँ
गंगा मैया 'खुशी' के साथ अब तेरे आँचल में सोना चाहती हूं"


😡🙏🏻😡
2-"कितना अजीब है न 'गंगा का जल'
मरने के बाद ये हमारी अस्थियों को गला देता है
और जीते जी पियो तो औषधिये काम देता है
हाँ माना अब ये अब प्रदूषित बहुत हो चुका है
लेकिन आज भी इसका महत्व कम कहाँ हुआ है"

😡राधे राधे😡


3-"कहते हैं लोग प्यार उससे करो जो तुम्हारे ज़ज़्बात की कद्र करे
पर कमबख्त नसीब ऐसा निकला कि उसने ऐसे से मिलवाया ही नही"


4-"झूठ की इस दुनिया मे बस ये ख़ता कर बैठे
एक फरेबी से हम सच्ची मोहब्बत कर बैठे"


5-"सुबह शाम हर दिन यहाँ हसीं ये रागिनियाँ देखते हैं हम
फिर अगले पल टूटे हुए दिल और हाथो में जाम देखते हैं हम
कसूर किसी का नही होता ए मेरे दोस्तों क्योंकि दस्तूर है ये
बच्चे खिलोने से और बड़े दिलो से खेलते रोज देखते है हम"

दर्द जिगर का फिर बढ़ने लगा है-कविता

धीरे धीरे दर्द फिर जिगर का बढ़ने लगा है

फिर से ये दिल आखिर धड़कने लगा है


है ज़माने में लोग दोहरे मुखोटे पहने हुए

जाने किस फरेबी को अपना बनाने लगा है


जिसको अपना समझा 'मीठी' तुमने जब जब

'खुशी' नही गम उनसे ही तुम्हे मिलने लगा है


किसे सुनाये तू अपने ज़ख्मी दिल की दासतां

तेरे अश्को पर ये जमाना कैसे हसने लगा है


मोहब्बत करने की ख़ता तू फिर करने चली

देख मोहबूब तो बाज़ारो में मिलने लगा है


देख तमाशा तू फिर इस महफ़िल का 'मीठी'

'खुशी' का प्यार आज पैसो से बिकने लगा है


अब रही नही बाते जो पहले करते थे लोग

आज इश्क का व्यापार बहुत बढ़ने लगा है


तू भी लुटा सके तो लूट दे कुछ इस महफ़िल में

अब मोहब्बत का कारोबार ऐसे ही बढ़ने लगा है

😡😡😡😡😡😡😡😡

मेरे कलम से मेरे चंद अल्फ़ाज़

 1-"कितना गुरुर था खुद पर की कितने अपने हैं लोग यहाँ
लेकिन हालातो ने बता दिया कितनी गलतफहमी में थे हम"

2-"अब तो इन रास्तो पर डर लगता है
देख दुनियादारी मेरा तो दम घुटता है"

3-"बहुत भरोसा था तुझपे ऐ ज़िंदगी
पर आखिर तू भी दगा दे ही गयी

4-'फिर ये हसीं सर्द रात आयी
फिर मुझे तेरी याद आयी
तुमने न देखा कभी मुड़कर
मुझे तेरी हर बात याद आयी

5-"दिल ने बहुत चाहा कि रोक लू तुम्हें
दिल ने बहुत चाहा अपना बना लू तुम्हें
पर तुम्हें परवाह कहाँ मेरे ज़ज़्बातों की
दिल ने बहुत चाहा धड़कन में बसा लू तुम्हे"❤❤

Sunday 29 December 2019

ज़िंदगी की मंज़िल-कविता

महलों वाला भी आखिर एक दिन वही (शमशान/कब्रिस्तान) जाता है

सड़क पर रहने वाला बेबस बिखारी भी आखिर एक दिन वही जाता है

रास्ते भले अलग को तेरे ऐ इंसान पर मंज़िल तो आखिर है बस वही

फिर किस बात का गुरुर तुझे और आखिर किस बात पर इतराता है


एक दिन तेरा ये शरीर ही तुझसे  आखिर बेवफाई कर जाता है

ज़िन्दगी भर दौड़ा जिसके लिए आखिर अंत मे क्या तुझे मिल पाता है

ज़िन्दगी थी तो दौड़ता रहा बस दुनिया के पीछे इसे ही मन्ज़िल जानकर

देख क्या समझी तूने मन्ज़िल अपनी पर वक्त किस ओर तुझे ले आता है

ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

वक़्त रोता रहा और ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

ये ज़माना हस्ता रहा 'मीठी' अश्क छिपाती रही


पी कर ग़मो के आँसू 'खुशी' का अहसास जताया

दर्द कितना है इस दिल मे न ये कभी जताती रही


अकेले में बैठ ग़मो से अब दोस्ती सी कर ली मैंने

खुदगर्ज़ इन महफ़िलो से दूर अब मै होती रही


कई मुखोटे पहने मिलते हैं मुझे लोग हर जगह

बस महफ़िल में एक असल चेहरा मैं खोजती रही


कितने हैं चरित्र इंसां के इस जहाँ में ऐ 'मीठी'

'खुशी' तो बस उस इक सच्चरित्र को खोजती रही


वक्त गुज़रता गया और सांसे भी कम होने लगी

दिल थमता गया और धड़कन मुझसे पूछती रही


वक़्त रोता रहा और ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

ये ज़माना हस्ता रहा 'मीठी' अश्क छिपाती रही
😡😡😡😡😡😡😡😡