Sunday 21 July 2013

ईश्वर वाणी -48(ishwar vaani-48)

प्रभु कहते हैं जब जब धरती पर पाप बड़ते हैं और ईश्वर पर से लोगों का विश्वाश कम होने लगता है और लोग उनकी शिछा का अनुसरण छोड़ और धर्म का मार्ग त्याग कर दुराचारी होने लगते हैं तब तब मानव मात्र में आई इन बुराइयों का अंत करने हेतु पृथ्वी पर ईश्वर अवतरित होते रहते हैं,



प्रभु चाहे तो बिना धरती पर प्रकट हुए भी धरती पे विराजित बुराइयों का अंत कर सकते हैं या फिर वो चाहे तो कभी किसी भी प्राणी द्वारा बुराई का मार्ग भी ना अपनाने दें किन्तु इसके पीछे प्रभु का उद्देश्य है की उनकी  लीला के साथ मानव मात्र के  जीवन में  चिर काल तक अपने अस्तित्व के होने का प्रमाण और  इस समस्त समस्त भ्रह्मांड के रचिता, संगराक्षक, पालन एवं उध्हार करता के साथ विनासक भी 
है इस तथ्य को प्राणी मात्र तक पहुचने का उनका उद्देश्य है । 


ईश्वर कहते हैं की वो ही बुराई हैं और अच्छाई भी वो ही है, ईश्वर कहते हैं की वो बुराई के रूप में धरती पर आते हैं ताकि लोग उनके अछे स्वरुप को स्वीकार कर चिर काल तक उनकी अच्छाईयों का अनुसरण करते रहे किन्तु यदि वो बुराई के रूप में धरती में नहीं अवतरित होंगे तो धीरे धीरे लोग उन्हें भूलने लगेंगे एवं अहंकार के वश में खुद को ही सर्वंग्य मानने लगेंगे, इसलिए  मानव मात्र को अहंकारी और पथ भ्रष्ट होने और चिर काल तक ईश्वर में और उनकी शिक्षाओ में विश्वाश रख उनका अनुसरण करने हेतु ही प्रभु लीला करते हैं एवं पृथ्वी पर जन्म लेते हैं....




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