Sunday 20 October 2013

आज फिर मुस्कुराने को दिल चाहता है,


आज फिर मुस्कुराने को दिल चाहता है, आज फिर आसमान छूने को  दिल चाहता है, 
चलते चलते जो  लगी है ठोकर मुझे फिर से उठ कर समभल कर चलने को दिल चाहता है, वक्त के साथ जो बहे है अश्क मेरे आज फिर उन्हें पोछ कर  हँस कर जीने को दिल चाहता है,



बना कर मुझे अपना जो दिए है लोगों ने दोखे हज़ार आज फिर से किसी को अपना बना कर उसका  हो जाने का दिल चाहता है, टूट कर बिखरे  हुए इन दिल के टुकडो को  समेत कर फिर से एक करने को दिल चाहता है, जो दर्द है मेरी रूह में उसे भूला कर फिर से नवजीवन में कदम रखने को दिल चाहता है,


शायद ये खता ही है मेरी की  सब कुछ लुटा कर अपना आज फिर से इस दुनिया में वापस आने को मेरा ये दिल चाहता है, लगाना जो चाहिए मौत को गले मुझे लेकिन ज़िन्दगी जीने को दिल चाहता है, 


है ये हज़ारो शिकवे मुझे इस जहाँ से, क्या किया था गुनाह मैंने सिवा एक वफ़ा के, दी मैंने अपनी ख़ुशी अपनी  ज़िन्दगी जिसकी  हसी के लिए उसी ने लूट ली  मेरी जिंदगी  की हर ख़ुशी  अपनी बेवफाई और बेरुखी के लिए, नहीं है उसे मतलब मेरी जिदंगी से, नहीं मतलब इस जहाँ में किसी को मेरी अच्छाई से, नहीं है कोई मतलब इस जहाँ में किसी को मेरी वफाई के बदले बेवफाई से,


फिर भी  जाने क्यों आज फिर से इस हवा में सांस लेने को दिल चाहता है, है नहीं अब  जिस्म में मेरे   शक्ति  फिर भी  ये जिस्म  दुनिया में ख़ुशी बाटना ही बस  चाहता है, जो नहीं कर सकते है इस जीवन के बाद जाने क्यों उस दुनिया में जाने से  पहले औरों के लिए नहीं बस अपनी ही ख़ुशी के लिए जिंदगी जीने को दिल चाहता है, अपनी इस ज़िन्दगी को दुख में डूबे लोगों के दुःख को दूर कर फिर से एक नयी खुशहाल सुबह उन्हें   दिखाने को दिल चाहता है, जो न मिल सकी कोई ख़ुशी हमे इस  ज़हान  में  बस वो ही ख़ुशी आँखों में अश्क  लिए हर शख्स को देने को मेरा ये दिल चाहता  है,बस और कुछ नहीं इतना सा ही ये मेरा दिल  चाहता है। 

आज फिर मुस्कुराने को दिल चाहता है, आज फिर आसमान छूने को  दिल चाहता है,

चलते चलते जो  लगी है ठोकर मुझे फिर से उठ कर समभल कर चलने को दिल चाहता है, वक्त के साथ जो बहे है अश्क मेरे आज फिर उन्हें पोछ कर  हँस कर जीने को दिल चाहता है,



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