Monday 21 October 2013

ईश्वर वाणी- 50................ishwar waani-50





ईश्वर कहते हैं "यदि हमे दुनिया से बुराई का अंत करना है  सबसे पहले अपने अन्दर की बुराई को पहचान कर उसका अंत करो, दुनिया में सभी मनुष्यों को केवल दूसरो की बुराई ही सबसे पहले नज़र आती है किन्तु अपने अन्दर छिपी बुराई को वो देख नहीं पाता या फिर देख कर भी अनजान बन जाता है और सदा दूसरो में कमिया  निकलना शुरू कर देता है, दूसरो को दोष देना शुरू कर देता है किन्तु सच तो ये है की यदि हर मनुष्य अपनी सोच को बदल कर अपने अन्दर छिपी बुराई नामक  राक्षशनी का यदि अंत कर दे तो ये कलियुग भी सतयुग की तरह ही पावन हो जाएगा,


किन्तु मानव आज स्वार्थ में इतना अँधा हो चूका है जो ईश्वर पर ही भ्रम रखता है, उसके अस्तित्व को ही चुनोती देता है, जबकि उसे पता है की संसार का निर्माण करता और संहारकर्ता केवल मैं ही हूँ, मैं ही समस्त हूँ, आदि और अंत मैं ही हूँ किन्तु फिर भी वो अपनी शक्ति और सामर्थ में स्वार्थवश इनता अँधा हो चूका है की मेरी ही सत्ता को चुनोती देता है", 



ईश्वर कहते है "आज के मानव को अलग से कोई दानव परेशान नहीं करता अपितु उसके अन्दर ही छिपी बुराई ही उसे परेशान करती है जिसे वो नाना प्रकार के नाम देता है जैसे कभी - भूत-प्रेत तो कभी टोना-टोटका तो कभी नज़र का लग जाना तो कभी किसी का शाप, किन्तु सच तो ये है की मनुष्य को केवल उसके अन्दर ही बुराई ही परेशान करती है और यदि वो दूसरो की आलोचना करना उनसे इर्ष्या रखना छोड़ कर निःस्वार्थ भाव से अपनी सोच को सही दिशा प्रदान कर के ईश्वर के द्वारा बताये मार्ग पर चलने लगता  है तब  उसे निश्चित है इश्वारिये लोक की प्राप्ति होती है… 



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