Sunday 16 October 2016

ईश्वर वाणी-१५५, आत्मा, कर्म, जन्म

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों युं तो तुम्हें आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, कर्म -धर्म की शिछा देने वाले अनेक मिल जायेगे, कोई कहेगा मानव का पुनर्जन्म मानव योनी मैं ही होता है और अन्य जीव का उन्ही की योनी मैं, इसके लिये अनेक बेतुके उदाहरण देंगे तो कुछ इस पुनर्जन्म की अवधारणा को ही खारिज़ कर देंगे,

किन्तु सत्य तो ये है आदि युग से ही सभी जीव धरती पर कर्म अनुसार जीवन ले चुके है, ये जीवन तुम्हारा पहला जीवन नही है, इससे पूर्व भी तुम जन्म ले चुके हो,
हे मनुष्यो यध्धपि तुम बहुत कम आमदनी वाले व्यक्ती हो पर तुम वाहन लेना चाहते हो तो अपनी आमदनी के अनुसार ही तुम साईकल/स्कूटर/मोटर साईकल लोगे न की कोई कार/हवाई जहाज़,

इसके विपरीत यदि तुम्हारी आमदनी अधिक है तो तुम महगीं कार, जहाज़, हवाई जहाज अपनी सुविधा और आमदनी अनुसार ये लोगे,

यध्धपी कम आमदनी से अधिक आमदनी आज तुम पाने लगे हो, तुम आज चालक साईकल से होते हुये जहाज़ तक के बन जाते हो, वाहन बदल गया लेकिन चालक नही,

वही एक कुशल चालक साईकल से बस, बस से ट्रक, ट्रक से रेल गाड़ी, रेल गाड़ी से जहाज़ जहाज़ से हवाई जहाज़ चलाता है, पर चालक तो वही रहा बस समय के साथ वाहन बदल गया,

हे मनुष्यों तुम्हारी आत्मा वही चालक है, तुम्हारे कर्म तुम्हारी आमदनी तुम्हारी तरक्की है, और ये भौतिक शरीर वाहन जो ईश्वर द्वारा प्रत्येक जीव को दिया जाता है चलाने के लिये,


हे मनुष्यों मानव जीवन अति श्रोष्ट ईश्वरीय वाहन है जिसे मैने तुम्है दिया है, इसके आज तुम चालक हो किन्तु तुम्हारे बुरे कर्मो की कमाई इसके पुन्य नष्ट कर तुम्हे फिर पैदल अथवा साईकल पर ले आयेगी,

हे मनुष्यों इसलिये अपनी इस कमाई को सहेज़ के रखो, मानव जीवन को जगत व प्राणी कल्याण मैं लगाओ,

तुम्हारा कल्याण हो"

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