Thursday 4 April 2019

ईश्वर वाणी-271, मृत्यु परम् सुखदायनी

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों ये तो सब जानते हैं कि मृत्यु एक अटल सत्य है,
जो इस भौतिक स्वरूप में आया है उसको एक दिन अपना ये स्वरूप त्यागना ही पड़ता है।
देश काल परिस्तिथि के अनुरूप मेरे अनेज अंशो ने भी इस भौतिक शरीर मे जन्म लिया
और अंततः उन्हें भी ये देह त्यागनी पड़ी।
म्रत्यु एक अटल सत्य है फिर भी व्यक्ति घबरा जाता है इसका नाम सुन कर, पापी
इसलिए घबरा जाता  है क्योंकि जानता है कि उसने अनेक पाप किये हैं और मृत्यु
उपरांत उसको कठोर दंड भोगने होंगे, किन्तु कुछ लोग मोहवश इससे डरते है, अपनो
से बिछड़ने का भय उन्हें डराता है, यद्धपि सच्चाई से अवगत सब है कि एक दिन ये
देह उन्हें त्यागनी ही होगी और संसार की हर वस्तु के साथ ही ये भौतिक देह भी
छोड़ एक नई यात्रा पर जाना ही होगा।

किँतु आज बताता हूँ मृत्यु जितनी कठोर और निर्मम तुम समझते हो ये वैसी नही
अपितु परमसुदायी है, जैसे दिन भर कार्य करके तुम्हारा शरीर तक जाता है और रात
में निद्रा प्राप्त कर पुनः नई ऊर्जा प्राप्त कर फिर निम्न कार्यो में लग जाता
है, वैसे ही आत्मा भी इस जीवन रूपी कार्यो से अपने निम्न कर्तव्यों के
निर्वाहो से थक कर विश्राम चाहती है, इसी को इस देह की मृत्यु कहते हैं जबकि
आत्मा की मृत्यु नही होती, वो तो फिर एक नए रिश्ते और नए लक्ष्य की पूर्ति
हेतु चल देती है।
किँतु जो जीव शोक करता है वो भौतिक देह का करता है  क्योंकि  वो उसको देख कर
सच मानता रहा है जैसे संसार मे कई व्यक्ति ईश्वर अर्थात मेरे ही अस्तित्व पर
सवाल करते हैं कि मैं हूँ तो दिखता क्यों नही,क्योंकि वो इन भौतिक आंखों
द्वारा देखी जाने वाली भौतिक वस्तुओं को ही सत्य समझते है, किँतु जो भौतिक नही
है वो ही सच है जिसे सांसारिक जीव आत्मा नही समझती और मृत्यु से भय खा कर उसको
कठोर कहती हैं।
सच तो ये है आत्मा की आवश्यकता के अनुरूप उसके लिए भौतिक देह का त्यागना बहुत
जरूरी है, हालांकि जरिया कुछ भी हो सकता है किंतु मृत्यु कठोर नही लेकिन
प्रक्रिया कठोर व दर्दनाक अवश्य हो सकती है क्योंकि ये सब पिछले जन्मों के
कर्मो से तय होता है साथ ही कितना समय उसको प्रेत योनि में काटना है और क्यों
फिर कुछ पल के लिए सुकून हेतु स्वर्ग पाना है या फिर नई जीवन यात्रा आरम्भ
करनी है ये सब भौतिक जीवन के कर्म व प्रेत जीवन के कर्म तय करते हैं।

कल्यान हो

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