हर गम से दूर ले जाता है ये नशा, हर दर्द हर ख़ुशी में भी सभी के काम आता
है ये नशा, अपने मोहजाल में हर किसी को कभी न कबि फसा ही लेता है ये नशा, ये जरुरी नहीं की सिर्फ कुछ लेने से ही हो जाता है ये नशा, कभी
मोहब्बत तो कभी यार के मिलने से भी चढ़ जाता है ये नशा, अनेक है इसकी बाते,
जाने कितनी करी हैं इसने करामातें, पर हर करामत के बाद सबके सर चढ़ के बोलता है
ये नशा, पहले पहल लगता है बेहद खराब और कड़वा, पर जैसे-जैसे वक्त के साथ आदत पड़ने लगती है, उस कडवाहट में भी मीठी खुशबू आने लगती है, लोग भले ये कहे दूर ज़िन्दगी से ले जाता है हर तरह का नशा, लेकिन हम क्या बताये तुम्हे यारो हमे तो अपने में ही ज़िन्दगी दिखाता है ये नशा।
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Friday, 17 May 2013
Thursday, 16 May 2013
ईश्वर वाणी -ishwar vaani (निर्दयी एवं कठोर)**39**
ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य निर्दयी एवं कठोर हैं , जो मनुष्य किसी दुसरे
प्राणी का दुःख-दर्द नहीं समझते , जो मनुष्य केवल स्वं से ही मतलब रखते हैं
ऐसे मनुष्य निश्चित ही पशु के सामान हैं , ईश्वर कहते हैं उन्होंने इस
प्रथ्वी पर मनुष्य को एक दुसरे के काम आने, एक दूसरे के दुःख दर्द को
बांटने एवं उन्हें दूर करने हेतु भेजा है ना की स्वं के स्वाथों की पूर्ती
हेतु और शारीरिक भोगे को भोगने हेतु, ईश्वर कहते हैं मनुष्य को सम्पूर्ण
प्रथ्वी का और प्रकृति द्वारा दी गयी वश्तुओं का ख्याल रखना चाहिए, प्रभु
कहते हैं उन्होंने मनुष्य जाती को सम्पूर्ण धरा की देखभाल एवं प्राणियों की
सुरक्षा और उन्हें प्रेम देने के लिए भेजा है।
ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती ना कर केवल अपने स्वार्थ की पूर्ती में लग कर और केवल शारीरिक भोगों में तृप्त रहते हैं ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण चक्र में फसे रहते हैं था मोक्ष को कभी प्राप्त नहीं होते।
ईश्वर कहते हैं उन्होंने मानव जीवन इसलिए दिया है अर्थात वो किसी भी जीव को मानव जीवन इसलिए देते हैं ताकि प्राणी अपने अनेक जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर प्रभु की आज्ञा अनुसार कार्य कर अपने समस्त अवगुणों का त्याग कर सत्कर्म एवं भक्ति करते हुए अपने भोतिक शारीर का त्याग कर अनंत मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी बने, किन्तु जो व्यक्ति ईश्वर द्वारा बताई गयी बातो एवं उनके द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती नहीं करते ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण के मायाजाल में फसे रहते हैं एवं अनंत कष्ट भोगते हैं।
ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती ना कर केवल अपने स्वार्थ की पूर्ती में लग कर और केवल शारीरिक भोगों में तृप्त रहते हैं ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण चक्र में फसे रहते हैं था मोक्ष को कभी प्राप्त नहीं होते।
ईश्वर कहते हैं उन्होंने मानव जीवन इसलिए दिया है अर्थात वो किसी भी जीव को मानव जीवन इसलिए देते हैं ताकि प्राणी अपने अनेक जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर प्रभु की आज्ञा अनुसार कार्य कर अपने समस्त अवगुणों का त्याग कर सत्कर्म एवं भक्ति करते हुए अपने भोतिक शारीर का त्याग कर अनंत मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी बने, किन्तु जो व्यक्ति ईश्वर द्वारा बताई गयी बातो एवं उनके द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती नहीं करते ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण के मायाजाल में फसे रहते हैं एवं अनंत कष्ट भोगते हैं।
Wednesday, 15 May 2013
ये नशा भी क्या चीज़ है यारों
ये
नशा भी क्या चीज़ है यारों , हर गम से अनजान है ये,हर हारे हुए की जान है
ये ,हर टूटे हुए दिल की शान है ये ,
नशे में डूबा हुआ हर शख्स खुद को सदा
जोश में है पाता , जो नहीं कर सकता वो होश में रह कर वो नशे में डूब कर है
कर जाता ,
हर गम-ऐ-ज़िन्दगी के लिए जीने की आस है ये ,
हर भटकते हुए राही की
प्यास है ये ,ठोकर लगे हर शख्स के लिए एक नव जीवन की आस है ये ,मझधार में
फसे हुए नाविक की आखिरी सांस है ये , दुखो से दूर एक नए खुशहाल जीवन में
फिर से लौट आने की इबादत है ये, हर गम हर दर्द से लड़ने की ताकत है ये ,
और
क्या बताऊ तुम्हे ऐ मेरे दोस्तों ज़िन्दगी का सबसे हसीं रास्ता है ये, रोते
हुए चेहरे पे ख़ुशी पाने का एक आसान सफ़र है ये,
ज़िन्दगी जीने का गलत ही सही
लेकिन मौत को गले लगाने का सबसे सस्ता और बेहतरीन रास्ता है ये,
क्योंकि ये नशा भी क्या चीज़ है यारों।
ना जाने क्यों
जाने क्यों लोग किसी को दर्द देते हैं ,जाने क्यों लोग किसी को गम
देते हैं , जाने क्यों लोग किसी की मुस्कराहट छीन लेते हैं ,जाने क्यों लोग
ख्वाब दिखा कर ख़ुशी के अक्सर उन्हें तोड़ देते हैं, जाने क्यों लोग कर के
वादे वफ़ा के बेवफाई दिखाते हैं,
जाने क्यों लोग बना के रिश्ते प्यार के
इन्हें अधूरे छोड़ जाते हैं,क्या मिलता है लोगो को दुःख पंहुचा कर,क्या मिलता है लोगोको किसी को
अश्क दे कर, क्या मिलता है लोगो को ज़ज्बातों से खेल कर , जाने क्या मिलता
है लोगो को किसी को रुला कर, जाने क्या मिलता है लोगों को किसी को सता कर ,
जाने क्यों लोग किसी के लबो से हँसी छीन लेते हैं, जाने क्यों लोग किसी का
यकीं तोड़ देते हैं , जाने क्यों लोग किसी का दिल तोड़ देते हैं, जाने क्यों
लोग किसी को अकेला छोड़ देते हैं, जाने क्यों लोग किसी को तडपता छोड़ देते हैं , जाने क्यों लोग किसी को तनहा छोड़ देते हैं, जाने क्यों लोग किसी से ऐसा करते हैं,
ना जाने क्यों ,ना जाने क्यों।
http://mystories028.blogspot.in/
http://mystories028.blogspot.in/2013/05/blog-post_15.html
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Sunday, 12 May 2013
मात्र दिवस-mother's day....
दुनिया में सबसे प्यारी है माँ, जग में सबसे न्यारी है माँ, जो सह कर सब
कुछ वारती है हम पे अपना प्यार ऐसी ही नारी को कहते है माँ, देवता भी
तरसते हैं जिसके आँचल की छाव के लिए, लिए जन्म ईश्वर ने भी जिसका प्यार
पाने के लिए उसी स्त्री को कहते हैं माँ, कभी यशोदा तो कभी देवकी तो कभी
केकई भी बनती है ये माँ , देखे हैं अनेक रूप इस माँ के लेकिन हर रूप में
बरसाती है केवल प्यार ये माँ , जन्म जन्मों का सुख देती, जीवन को सही
दिशा दिखाती, अच्छे बुरे का पाठ पदाती , जीने के काबिल बनाती और जो है सबसे
ज्यादा भाति उस स्त्री को ही कहते हैं माँ, बड़े खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनके पास होती है माँ , बड़े नसीब से मिलती है माँ , दुनिया की दौलत से भी ज्यादा, दुनिया में सबसे कीमती होती है माँ , अनमोल होती है माँ और अनमोल होती इसकी ममता , नसीबो से मिलती है माँ और खुशनसीबी से मिलती है इसकी ममता ,दुनिया की सबसे हसीनो में सबसे पहले होती है माँ , प्यार लुटाने वालो में सबसे आगे होती है माँ इसलिए दुनिया में
सबसे प्यारी है माँ।
Friday, 10 May 2013
ईश्वर वाणी**38** -हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर...........Ishwar Vaani-38
ईश्वर कहते हैं "हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना
कर, स्वम को ग्यानी और बुध्हीमान समझने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना
कर, तेरा ज्ञान और तेरी बुध्ही नगण्य है, तेरा रूप और तेरा वैभव भी नगण्य
है, हे मनुष्य तू किस पर अभिमान करता है, क्या तू अपनी देह पर अभिमान करता
है जो एक दिन मिटटी में मिल जायेगी, एक समय ऐसा आएगा जब तेरे अपने ही तुझे
अपने से दूर कर तुझे माटी में मिलाने के लिए शीग्रता करेंगे और तुझे एक पल
भी बर्शास्त ना कर सकेंगे, क्या तू उस काया का अभीमान करता है, या फिर तू
उस माया और वैभव का अभिमान करता है जिसके कारण तूने अनेक भोतिक सुख तो
भोगे, जिसके कारण तूने अपने देह को तो राहत दी अनेक कष्टों से लेकिन तू
अपनी देह के मूल कर्तव्यों को भूल गया, तू भूल गया की तुझे ये देह उस
परमेश्वर ने किस उद्देश्य से दी है, तू उसके उद्देश्य को भूल कर भोग-विलास
में लीन हो गया और आज अपने वैभव पर अभिमान करता है, या फिर तू अभिमान करता
है अपने ज्ञान का, हे मनुष्य तेरा ज्ञान कितना है, और क्या जानता है तू जो
खुद पर अभिमान करता फिरता है, जितना तू खुद को ग्यानी समझेगा मेरी नज़र में
तू उतना ही अज्ञानी और मूर्ख होगा, क्यों की एक ग्यानी मनुष्य खुद को
ग्यानी नहीं समझता, एक ग्यानी मनुष्य कभी अपने ज्ञान का अभिमान नहीं करता
अपितु अपने ज्ञान का निःस्वार्थ भाव से प्रचार-प्रसार करता है, जो व्यक्ति
खुद को ग्यानी न मान कर निःस्वार्थ भाव से प्राणियों के कल्याण हेतु कार्य
करता है, जो मनुष्य अपने को ग्यानी एवं परम ग्यानी ना समझ कर मेरा स्मरण कर के
प्राणियों के कल्याण हेतु ज्ञान का और इश्वारिये उद्देश्यों का प्रचारक बन
कर उनका प्रचार-प्रशार करता है वो मनुष्य मेरी दृष्टि में परम ग्यानी है, किन्तु
जो मनुष्य अपने ज्ञान का अभिमान करते है मैं उनके ज्ञान को नष्ट कर देता
हूँ क्योंकि ज्ञान तो अपार है, ज्ञान की गहराई और उंचाई आज तक संसार में
मेरे अतिरिक्त कोई नहीं जानता, जो मनुष्य इसका अभिमान करते हैं मैं उनके
लिए ज्ञान का वो समंदर प्रादान करता हूँ जिसे वो कभी पार नहीं कर सकते,
इसलिए मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक अज्ञानी होते हैं किन्तु जो अहंकार
नहीं करते अपने ज्ञान का और निःस्वार्थ प्रचारक बन कर संसार के प्राणियों
को ज्ञान की प्रकाश से रोषित करते हैं मेरी दृष्टि में वो परम ग्यानी है और
ऐसे मनुष्यों को मैं स्वम ज्ञान प्रदान कर के अथाह ज्ञान के सागर को पार
करा कर अपने में समाहित कर लेता हूँ" ।
इश्वर कहते हैं " जो व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, जो व्यक्ति खुद को उच्च समझते हैं एवं दूसरों को नीच समझते हैं, मेरी दृष्टि में वो ही अयोग्य और नीच हैं, भले वो खुद को मनुष्यों में श्रेष्ठ समझे किन्तु मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक आयोग और नीच हैं, ईश्वर कहते हैं जो मनुष्यों की दृष्टि में योग्य और उच्च होता है वो मेरी दृष्टि में नहीं क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी और अभिमानी होते हैं किन्तु जो खुद को आयोग और नीच समझ कर सदा प्राणी कल्याण हेतु कार्य करता है एवं स्वम को मेरा दास मान कर मेरी शिक्षा का निःस्वार्थ प्रचार-प्रसार समस्त मानव समूह में करता है वो ही व्यक्ति मेरी दृष्टि में श्रेष्ट एवं योग्य और उच्च है और मेरा अति प्रिये भी ।
इश्वर कहते हैं " जो व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, जो व्यक्ति खुद को उच्च समझते हैं एवं दूसरों को नीच समझते हैं, मेरी दृष्टि में वो ही अयोग्य और नीच हैं, भले वो खुद को मनुष्यों में श्रेष्ठ समझे किन्तु मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक आयोग और नीच हैं, ईश्वर कहते हैं जो मनुष्यों की दृष्टि में योग्य और उच्च होता है वो मेरी दृष्टि में नहीं क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी और अभिमानी होते हैं किन्तु जो खुद को आयोग और नीच समझ कर सदा प्राणी कल्याण हेतु कार्य करता है एवं स्वम को मेरा दास मान कर मेरी शिक्षा का निःस्वार्थ प्रचार-प्रसार समस्त मानव समूह में करता है वो ही व्यक्ति मेरी दृष्टि में श्रेष्ट एवं योग्य और उच्च है और मेरा अति प्रिये भी ।
इसलिए हे मनुष्यों अपने पे
अहंकार ना करो, खुद पे अभिमान ना करो, इस संसार में जो भी तुम्हे दिया गया
है वो मेरे द्वारा ही तो दिया गया है, इसलिए हे मनुष्यों अपने कर्तव्यों को
जानो, उन्हें याद करो की किस उद्देश्य से तुम्हे इस पृथ्वी पर भेजा गया है,
अपने उद्देश्यों को पूर्ण करो, अभिमान और अहंकार का त्याग करो, अपने कार्यों को
पूर्ण कर मुझमे ही समां जाओ तुम्हरा कल्याण हो।।"
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