Tuesday, 10 December 2019

कविता-उनसे ही

"कभी होती थी सुबह मेरी तुमसे ही

आज कितनी दूर हो चुकी उनसे ही


रहता था कभी उन्ही का इन्जार मुझे

आज बिछड़ चुकी 'मीठी' उनसे ही


दिया दर्द पल पल जिसने महफ़िल में

क्यों है मोहब्बत ए ज़िन्दगी उनसे ही


दिन, महीने, साल गुज़र गए उनके बिन

पर मिलती है 'खुशी' क्यों उनसे ही


तोड़ कर दिल मेरा खेलते रहे वो तो

पर आखिर ज़िंदा थी 'मीठी' उनसे ही


भुला चुके कितनी आसानी से वो' बातें

पर मेरी तो हर शाम होती थी उनसे ही


कैसे कब मौसम की तरह बदल गए वो

मेरी तो हर सांस चलती थी सिर्फ उनसे ही


माँगी थी दुआ जिसके लिए दर-दर मैंने

मिली ज़िन्दगी में ये तन्हाई उनसे ही


उनके हर सितम पर बस मुस्कुराई 'मीठी'

फिर भी मिली क्यों बेवफाई मुझे उनसे ही


टूट कर चाहा था जिसे आंखे बंद करके

खता ये हमारी बता मिली रुस्वाई उनसे ही"
              🙏🙏🙏🙏🙏

मेरी कलम से-ईश्वर



लोग भले ईश्वर को माने या न माने ये उनकी मर्जी है, लेकिन मैंने परमात्मा की शक्ति को पल पल महसूस किया है।

ईश्वर कहते हैं उन्हें तभी हम प्राप्त कर सकते हैं जब हमारा मन बच्चे जैसा हो अर्थात जैसे बच्चे होते हैं मासूम, जैसे उनके दिल और दिमाग मे भिन्नता नही होती, जैसे वो अंदर होते हैं वैसे ही बाहर होते हैं कोई दिखावा व छलावा नही होता उनमे, ठीक वैसा ही मन यदि वयस्क को हो तो परमात्मा उसे जरूर मिलते हैं।


मुझे बहुत लोगो ने बोला कि तुम्हारे अंदर परिपक्वता नही है, बच्चों की तरह हो, कई लोगों ने बेइज़्ज़ती तक कि मेरे इस व्यवहार को ले कर, ज़लील तक किया और लोग छोड़ कर भी चले गए क्योंकि उन्हें लगता था मुझमे परिपक्वता नही है।


परिपक्वता मुझे इसकी परिभाषा समझ नही आई आज तक, क्या कोई इंसान झूठ बोले बात-बात पर, किसी का दिल तोड़े या दुखाये, अपनी जरूरत पर मीठा बने फिर जब किसी को उसकी जरूरत हो तो अनजान बन के चला जाये, फरेब करे, सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जिये और दूसरे को कुछ न समझे इत्यादि, पर क्या इसी को परिपक्वता कहते हैं, शायद आज के समय में यही परिपक्तवा की निशानी है और जो ऐसा नहीं है वो या तो मूर्ख है या फिर उसका मन बच्चों जैसा है।

लेकिन जो इस तरह परिपक्व है वो भले इस समाज मे रह ले लेकिन उसे परमात्मा कभी नही मिल सकते और न उसकी आत्मा कभी सन्तुष्ट हो सकती है, वो लोग जो खुद को परिपक्व बता निम्न कार्य करते हैं भले अपने शरीर को सुख पहुचाते हो इससे पर उनकी आत्मा कभी संतुष्ट नही होती और यही वजह है जब वो कभी किसी मुश्किल में होते हैं तब उनकी मदद के लिए ईश्वर न खुद आता है न किसी को भेजता है क्योंकि ईश्वर किसी भी तरह के घमण्ड करने वाले व्यक्ति का हो ही नही सकता इसके लिए निर्मल होना जरूरी है।


मेरे साथ एक बार नही बल्कि कई बार ऐसा हुआ जो मैंने ईश्वर की शक्ति को महसूस किया है। दिल्ली की असुरक्षित सड़को पर अकेले  चलना और घूमना इतना आसान नही है लेकिन मैंने जबसे अकेले इन रास्तों पर चलना शुरू किया तो पल पल महसूस किया कि कोई शक्ति मेरे साथ है जो हमेशा मेरा हाथ थामे रहती है और मेरा इतना ख्याल भी रखती है।


मेरी ग्यारहवीं कक्षा से ले कर स्नातक तक मनोविज्ञान मेरा विषय रहा है, अगर बात की जाए मनोविज्ञान की तो वो ये सब एक तरफ तो नही मानता वही दूसरी तरफ इसका समर्थन भी करता है।


इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ वही सच नही जो दिखता है बल्कि सच वो है जो दिखता तो नही पर होता है जैसे 'हवा' और प्रत्येक जीव चाहे अति विशाल हो या सूक्ष्म उसकी 'शक्ति', इसी तरह परमात्मा की शक्ति होती तो है पर भौतिकता पर विश्वास करने वाली इन आंखों से वो दिखती नही, जिस दिन अभोतिक्ता पर भी भरोसा करने लगोगे तब तुम उस परमात्मा को देख सकोगे साथ ही अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को जगा के रखोगे, निःस्वार्थ रहोगे तब उस परमात्मा को प्राप्त करोगे।


तुम खुद देखोगे की कोई शक्ति तुम्हे कैसे गलत रास्ते पर जाने से रोकती है, कितनी भी हठ कर लो नादानी में अपनी पर वो तुम्हें वो ऐसी संभालेगी जैसे तुम्हारे माता-पिता बचपन मे तुम्हे संभालते थे ।


ऐसा नही की ये सब हवाई बाते है, ये मेरा अपना खुद का ही अनुभव है, आध्यात्म से जुड़ कर मैंने उसे पाया जो न सिर्फ मेरे बल्कि श्रष्टि की उतपत्ति से पहले था आज भी है और कल भी रहेगा, पल पल वो मेरे साथ चलता है मेरा ध्यान रखता है और सुरक्षित भी रखता है। इसलिए इंसान को आध्यात्म से जुड़ना चाहिए साथ ही थोड़ी सी मासूमियत बच्चों जैसी रखनी चाहिए, दिल प्योर रखे फिर देखना हर इंसान कभी न कभी तो उस 'ईश' को इसी भौतिक देह के साथ प्राप्त कर ही लेगा।


अर्चना मिश्रा

🙏🙏🙏🙏

Tuesday, 3 December 2019

उफ्फ ये भोलापन-कविता

"उफ्फ ये भोलापन हाय मासूम ये अदा
देख कर जिसे है दिल मेरा फिदा

काश हो जाऊ फ़ना तुझ पे ए हमनशीं
न रहा जाता है अब तुझ से जुदा

ए ज़िन्दगी तुझे मान लिया मैंने अपना
है दुआ मेरी रहे साथ तू मेरे अब सदा

करू इबाबत तेरी ही सुबह शाम अब
बना चुका हूँ तुझे ही अपना खुदा

तू ही आरज़ू बन अब चुकी है मेरी
न दामन छुड़ा न हो मुझसे अब जुदा"

Love Myself

Sunday, 1 December 2019

भारतीये पुरुषों की मानसिकता और धर्म-लेख

"हर शख्स बस यही चाहता है उसे भी किसी का प्यार मिले जिससे उसकी जिंदगी सवर जाये, पर हर किसी को ये नसीब नही होता।

मैंने देखा है इंसान की उम्र चाहे जो भी हो, चाहे तो 17 का हो या 70 साल का उसकी फितरत सिर्फ धोखे की होती है

मैंने एक बात और ज्यादा गौर की है पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भारत के पुरूष ज्यादा धोखेबाज और चिरित्रहीन होते हैं तभी भारत को बलात्कारियो का देश कहा जाता है, यहाँ के पुरुष स्त्रियों को सिर्फ एक सेक्स डॉल से ज्यादा कुछ नही समझते हैं, बस जब दिल करा खेल लिए फिर फेंक दिया, उन्हें स्त्रियों के ज़ज़्बातों से मतलब नही।

और फिर जब कोई स्त्री उनसे तेज़ निकल जाए तो उनके ईगो को बड़ी ठेस पहुचती है।

यहाँ के पुरुष भले हिन्दू हिंदू का राग अलापले, अपने धर्म अपनी संस्क्रति को श्रेष्ठ बोले लेकिन सच तो ये है कि अंदर से उन्होंने ही इसको खोकला किया हुआ है तभी आये दिन महिलाओ पर अत्याचार की खबरे सुनने को मिलती है।

मेरे कुछ यूरोपियन मित्र हैं, कुछ महिलाएं तो कुछ पुरुष,  25 साल से ले कर 70 साल की उनकी उम्र है, मैंने देखा चाहे वहा की स्त्रियां हो या पुरुष वो मुझे हिन्दुस्तानियो से ज्यादा सभ्य लगते हैं।

जैसा कि मेरा ऑनलाइन क्लोथिंग का काम है, मुझे कई जगह अपने प्रॉक्टस के ऐड डालने पड़ते हैं, एड में अपना ऑफिशियल कांटेक्ट नंबर भी देना होता है ताकि कस्टमर मुझे कॉन्टैक्ट कर सके प्रोडक्ट के लिए, मैंने देखा है कि कई बार घटिया लोग भी कस्टमर/व्होलेसलेर/मनुफेक्चरर बन कर कांटेक्ट करते हैं और मेरा दिमाग और समय बर्बाद करते हैं।

इससे मुझे भारतीयों की सोच पता चलती है।


वही मेरे यूरोपियन मित्र चाहे महिला हो या पुरुष उन्होंने आज तक कोई ऐसी बात नही की जो घटिया लगी हो मुझे, हमेशा अपनी मर्यादा का ध्यान रख कर उन्होंने मुझसे बात की है और करते है यहाँ तक कि हिन्दुस्तानियो से ज्यादा भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं, कभी कभी शर्म आती है खुद पर की इस देश मे पैदा हुए हैं जहाँ के लोग कहते कुछ और करते कुछ।


ऐसा नही ऐसी सोच वाले कम पड़े लिखे और निचले तबके के लोग हैं, बल्कि अमीर पड़े लिखे यहाँ तक कि धर्म की की बात कहने करने वाले सैंकड़ो धार्मिक किताब पढ़ने वाले और धार्मिक कार्य करने वाले लोग भी शामिल हैं।

मुझे घिन आती है इस समाज से, ये भारतीय समाज भरोसे के काबिल ही नही रहा, आम इंसान बन कर रहना बहुत मुश्किल है यहाँ, अगर यहां रहना है वो भी सुरक्षित तो भीड़ से हट कर कुछ करना होगा, अपनी इच्छाओं को मारना होगा तभी एक लड़की अकेले यहाँ खड़ी रह सकती है अन्यथा सभी के लिए वो सिर्फ एक मौका मात्र है।

मेरा तो कहना यही है हर हिंदुस्तानी सोच बदले या हिंदू हिंदू के नारे लगाने बन्द करे क्योंकि जब तब बहन बेटी माता सुरक्षित नही तब तक कोई संस्कृति किसी काम की नही और इसी वजह से हिन्दू धर्म बस मुट्ठी भर ही दुनिया मे रह गया है क्योंकि अपने पतन की वजह ये खुद है।"


परमात्मा भला करे

जय माता दी

जय गुरु जी

Saturday, 30 November 2019

फिर से अजनबी बन जाये हम-कविता

"ए काश फिर से अजनबी बन, जाये हम
वो वादे इरादे भी अब भूल ,जाये हम
आ मिटा दे तेरी हर याद , दिलसे अब
मोहब्बत की राहों को भूल जाये हम

न तुम याद आओ न तुम्हे याद, आये हम
न तुम रुलाओ और न तुम्हे ,सताये हम
भुला दे वो हसीं राते जो गुज़ारी, संग तेरे
न हमे तुम दिखो न तुम्हे नज़र आये हम

बन अजनबी राहो से यू गुज़र ,जाय हम
आ फिर ऐसे यू बेफिक्र से बन, जाये हम
न रोको तुम मुझे इन राहो में, कभी फिर
ए काश फिर से अजनबी बन जाये हम"

                   🍸मीठी-खुशी🍸

हमें आग से डर लगता है-कविता

"हमें आग से डर लगता है ए ज़िंदगी
पर तू हमें आग से ही,  खिलाती रही
जितना बचते रहे इस आग,   से हम
उतना ही क्यों तू हमे झुलसाती रही

हमे डर लगता है इस,  तपिश से 
पर तू हमे हर बार ,  जलाती रही
कोशिश की खुद को ,  बचाने की
पर क्यो यूह तू हमे ,  सताती रही

नही चाहिए और ये आग मुझे, ए ज़िंदगी
ज़ख़्म दे हर दफा क्यों तू मुझे, रुलाती रही
कब तक अश्क छिपा मुस्कुराती, रहे 'मीठी'
हर मर्तबा 'खुशी' मुझसे क्यों तू ,चुराती रही"

Tuesday, 19 November 2019

"जब खूबसूरती ही बनी शत्रु-कहानी"

"आम्रपाली अपने समय की दुनिया की सबसे खूबसूरत बालिका थी, जो भी उसको देखता तो बस देखता रह जाता।

समय के साथ वो बड़ी हो गयी, शायद उस समय की सबसे खूबसूरत युवती थी वो, हर कोई उससे विवाह करना चाहता था, उसके माता-पिता भी उसके लिए एक योग्य वर तलाशना चाहते थे, किंतु उन्होंने देखा उसको प्राप्त करने की होड़ सी लगी पड़ी है क्या राजा क्या राजकुमार क्या व्यापारी व क्या रंक।

ऐसे में आम्रपाली के माता-पिता सोचने लगे कि किसी एक से विवाह अगर अपनी पुत्री का उन्होंने किया तो समाज मे अराजकता फैल सकती है, युद्ध व महायुद्ध हो सकते हैं, लेकिन फिर क्या करे विवाह तो पुत्री का करना ही है।

अपनी इसी चिंता में डूबे आम्रपाली के माता-पिता ने सभा रखवाई ताकि ये निर्णय हो सके कि आम्रपाली का विवाह बिना किसी परेशानी व अराजकता सम्पन्न हो सके।

सुबह से शाम हो गयी लेकिन सभा मे कोई सही निर्णय न हो पाया, लेकिन फिर नगर, समाज व विश्व समुदाय को ध्यान में रख कर ये फैसला हुआ कि आम्रपाली को 'नगर वधु(वैश्या)' बना दिया जाए जिससे हर कोई उसके साथ जब चाहे समय व्यतीत कर सके,इससे नगर व समाज मे अराजकता भी नही फैलेगी।


इस निर्णय से आम्रपाली के माता पिता को बहुत दुःख हुआ लेकिन सभा के निर्णय के खिलाफ वो नही जा सकते थे, उधर जब ये बात आम्रपाली को पता चली की उसकी खूबसूरती के कारण उसे 'नगर वधु' बना दिया गया है, वो बहुत रोई पर वोभी क्या कर सकती थी।

इस प्रकार आम्रपाली की खूबसूरती ही उसकी शत्रु बनी जिसने उसे 'नगर वधु' बनने का दंश झेला।