Monday, 16 December 2019

तुझे ही देखते हैं-कविता

"रुक रुक  कर मुड़  तुझे ही देखते हैं
करीब  आते  हो तो  मुँह फेर लेते हैं
कहीं जान न लो हमारे दिलकी बात
इसलिए  गमो  में भी मुस्कुरा देते  हैं

दूर  तुझसे  जा  कर  कितना रोते हैं
फिर भी कुछ भी न तुमसे कहते  हैं
तुम  समझते  नही ज़ज़्बात दिल के
फिर भी मोहब्बत तुमसे ही करते हैं

अब तुम बिन  तन्हा से  बस रहते  हैं
तेरी  यादों में  अब यू  खोये  रहते  हैं
तेरी  बिन अब कुछ भी  नही  'मीठी' 
'खुशी' है मेरी तुमसे ही आज कहते हैं"

चन्द अल्फ़ाज़

"रिश्ता ये दोस्ती का बहुत निभा  लिया
हर किसी को अपना बहुत बना  लिया
सबके  दर्द बांटते  बांटते  हम हार गए
इंसां में इन भेडियो को बहुत देख लिया"

"हम तो दोस्ती के खातिर सब कुछ  कर गये
 फिर एक दिन उनके लिए ही बेगैरत  हो गए
हाय ये कैसी ज़ालिम थी दुनिया न जान सके
उनकी मुस्कुराहट के लिए अश्क अपने पी गए "

बहुत थक चुके हम


"चलते चलते बहुत थक चुके  हम
कहते कहते हर बार रुक चुके हम

ढूंढते हैं सुकून ए ज़िंदगी अब यहाँ
अमन से कितना दूर जा चुके हम

बेहतरी की उम्मीद रखते दिन-रात
पर अश्कों में ही है डूब चुके हम

खोजती नई मन्ज़िल 'मीठी' यहाँ
'खुशी' नही ग़मो से घिर चुके हम

मिले काटे और पत्थर ही राहो में
ठोकरे यहाँ बहुत खा चुके हम

हर दिन रोज टूट कर बिखरते हैं
जुड़ने का वो हौसला खो चुके हम

चलते चलते बहुत थक चुके हम
कहते कहते हर बार रुक चुके हम"






Friday, 13 December 2019

चंद अल्फ़ाज़

 "हर पल क्यों ये अहसास तुम्हारा है
लगता है जैसे तुमने हमे पुकारा है
पता है हमें मोहब्बत नही तुम्हे हमसे
फिरभी क्यों इस दिलमे नाम तुम्हारा है"🙏🙏🙏🙏

"हे ईश्वर मुझे हर उस चीज़ से दूर रखना जो मुझे आपसे दूर करती है"

मेरे दिलमे रहना धड़कन बन कर
ज़िस्म में रहना रूह बन कर
न मुझे खुद से कभी जुदा करना
सदा रहना मीरा के श्याम बन कर"

"मौसम की तरह वो अब बदलने लगे हैं
रहते थे जो साथ अब अकेले चलने लगे हैं"

"ये शबनमी रात है

मीठी सी कोई बात है
तुम नही पास मेरे
पर तेरा ही अहसास है"

"ज़ख़्म देती रही ज़िंदगी फिर भी तुझे ठुकरा न सके
मिले दर्द इतने फिर भी क्यों दूर तुझसे न जा सके"

"गुज़रा बीता कल बहुत याद आता है
संग तेरे जिया वो पल बहुत याद आता है"

Tuesday, 10 December 2019

चंद अल्फ़ाज़

1-"जिनके बिना एक पल भी रहना मुश्किल था

आज महफ़िल उनके बिना ही गुलज़ार लगती है"


2-"खामोश लबों को जो समझ सके, वो यार ढूंढती हूँ

दर्द जिगर का जो समझ सके, वो प्यार ढूंढती हूँ"


3-"आ पास मेरे तेरे लिए कुछ लिख दु मै

दिलके सारे अरमान तुमसे कह दु मैं


बुझा रखा है इश्क का दी'या जो दिलमे

आ करीब मेरे फिर इसे आज जला दु मैं"

🙏🙏🙏🙏🙏🙏


4-"किसी से क्या मोहब्बत करू अब यहाँ

मुझे खुद से ही फुरसत है कहाँ 


मिलते हर रोज़ सेंकडो है मुझे

पर लगता जैसे मेरे कदमो पर ही है ये जहाँ"


5-"आ पास मेरे मुझे कुछ कहने दे

छिपे अरमान दिलके आज बहने दे

बता दु तुम्हे जो दिलकी बात आज

बस मुझे अपनी बाहों में यूह रहने दे"


6-"मुझे मारने के लिए किसी चीज़ की जरूरत नही तुम्हे
इसके लिए तो बस तुम्हारी बेरुखी ही काफी है"

7-"सर्दी  की  धूप हो  तुम, 

कितनी  मासूम हो तुम,

आता है प्यार जिसपे बेइंतहा, 

 सच कहूँ वो महबूब हो तुम🌹🌹"

कविता-उनसे ही

"कभी होती थी सुबह मेरी तुमसे ही

आज कितनी दूर हो चुकी उनसे ही


रहता था कभी उन्ही का इन्जार मुझे

आज बिछड़ चुकी 'मीठी' उनसे ही


दिया दर्द पल पल जिसने महफ़िल में

क्यों है मोहब्बत ए ज़िन्दगी उनसे ही


दिन, महीने, साल गुज़र गए उनके बिन

पर मिलती है 'खुशी' क्यों उनसे ही


तोड़ कर दिल मेरा खेलते रहे वो तो

पर आखिर ज़िंदा थी 'मीठी' उनसे ही


भुला चुके कितनी आसानी से वो' बातें

पर मेरी तो हर शाम होती थी उनसे ही


कैसे कब मौसम की तरह बदल गए वो

मेरी तो हर सांस चलती थी सिर्फ उनसे ही


माँगी थी दुआ जिसके लिए दर-दर मैंने

मिली ज़िन्दगी में ये तन्हाई उनसे ही


उनके हर सितम पर बस मुस्कुराई 'मीठी'

फिर भी मिली क्यों बेवफाई मुझे उनसे ही


टूट कर चाहा था जिसे आंखे बंद करके

खता ये हमारी बता मिली रुस्वाई उनसे ही"
              🙏🙏🙏🙏🙏

मेरी कलम से-ईश्वर



लोग भले ईश्वर को माने या न माने ये उनकी मर्जी है, लेकिन मैंने परमात्मा की शक्ति को पल पल महसूस किया है।

ईश्वर कहते हैं उन्हें तभी हम प्राप्त कर सकते हैं जब हमारा मन बच्चे जैसा हो अर्थात जैसे बच्चे होते हैं मासूम, जैसे उनके दिल और दिमाग मे भिन्नता नही होती, जैसे वो अंदर होते हैं वैसे ही बाहर होते हैं कोई दिखावा व छलावा नही होता उनमे, ठीक वैसा ही मन यदि वयस्क को हो तो परमात्मा उसे जरूर मिलते हैं।


मुझे बहुत लोगो ने बोला कि तुम्हारे अंदर परिपक्वता नही है, बच्चों की तरह हो, कई लोगों ने बेइज़्ज़ती तक कि मेरे इस व्यवहार को ले कर, ज़लील तक किया और लोग छोड़ कर भी चले गए क्योंकि उन्हें लगता था मुझमे परिपक्वता नही है।


परिपक्वता मुझे इसकी परिभाषा समझ नही आई आज तक, क्या कोई इंसान झूठ बोले बात-बात पर, किसी का दिल तोड़े या दुखाये, अपनी जरूरत पर मीठा बने फिर जब किसी को उसकी जरूरत हो तो अनजान बन के चला जाये, फरेब करे, सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जिये और दूसरे को कुछ न समझे इत्यादि, पर क्या इसी को परिपक्वता कहते हैं, शायद आज के समय में यही परिपक्तवा की निशानी है और जो ऐसा नहीं है वो या तो मूर्ख है या फिर उसका मन बच्चों जैसा है।

लेकिन जो इस तरह परिपक्व है वो भले इस समाज मे रह ले लेकिन उसे परमात्मा कभी नही मिल सकते और न उसकी आत्मा कभी सन्तुष्ट हो सकती है, वो लोग जो खुद को परिपक्व बता निम्न कार्य करते हैं भले अपने शरीर को सुख पहुचाते हो इससे पर उनकी आत्मा कभी संतुष्ट नही होती और यही वजह है जब वो कभी किसी मुश्किल में होते हैं तब उनकी मदद के लिए ईश्वर न खुद आता है न किसी को भेजता है क्योंकि ईश्वर किसी भी तरह के घमण्ड करने वाले व्यक्ति का हो ही नही सकता इसके लिए निर्मल होना जरूरी है।


मेरे साथ एक बार नही बल्कि कई बार ऐसा हुआ जो मैंने ईश्वर की शक्ति को महसूस किया है। दिल्ली की असुरक्षित सड़को पर अकेले  चलना और घूमना इतना आसान नही है लेकिन मैंने जबसे अकेले इन रास्तों पर चलना शुरू किया तो पल पल महसूस किया कि कोई शक्ति मेरे साथ है जो हमेशा मेरा हाथ थामे रहती है और मेरा इतना ख्याल भी रखती है।


मेरी ग्यारहवीं कक्षा से ले कर स्नातक तक मनोविज्ञान मेरा विषय रहा है, अगर बात की जाए मनोविज्ञान की तो वो ये सब एक तरफ तो नही मानता वही दूसरी तरफ इसका समर्थन भी करता है।


इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ वही सच नही जो दिखता है बल्कि सच वो है जो दिखता तो नही पर होता है जैसे 'हवा' और प्रत्येक जीव चाहे अति विशाल हो या सूक्ष्म उसकी 'शक्ति', इसी तरह परमात्मा की शक्ति होती तो है पर भौतिकता पर विश्वास करने वाली इन आंखों से वो दिखती नही, जिस दिन अभोतिक्ता पर भी भरोसा करने लगोगे तब तुम उस परमात्मा को देख सकोगे साथ ही अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को जगा के रखोगे, निःस्वार्थ रहोगे तब उस परमात्मा को प्राप्त करोगे।


तुम खुद देखोगे की कोई शक्ति तुम्हे कैसे गलत रास्ते पर जाने से रोकती है, कितनी भी हठ कर लो नादानी में अपनी पर वो तुम्हें वो ऐसी संभालेगी जैसे तुम्हारे माता-पिता बचपन मे तुम्हे संभालते थे ।


ऐसा नही की ये सब हवाई बाते है, ये मेरा अपना खुद का ही अनुभव है, आध्यात्म से जुड़ कर मैंने उसे पाया जो न सिर्फ मेरे बल्कि श्रष्टि की उतपत्ति से पहले था आज भी है और कल भी रहेगा, पल पल वो मेरे साथ चलता है मेरा ध्यान रखता है और सुरक्षित भी रखता है। इसलिए इंसान को आध्यात्म से जुड़ना चाहिए साथ ही थोड़ी सी मासूमियत बच्चों जैसी रखनी चाहिए, दिल प्योर रखे फिर देखना हर इंसान कभी न कभी तो उस 'ईश' को इसी भौतिक देह के साथ प्राप्त कर ही लेगा।


अर्चना मिश्रा

🙏🙏🙏🙏