Friday 31 May 2013

वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम





वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम, रहते थे कभी एक दुसरे के दिल में और आज दूर हुए हम, करते थे कितनी मोहब्बत तुमसे कभी हम, लुटाते थे तुम पे अपनी ये ज़िन्दगी भी हम, होती थी ख़ुशी कभी साथ रह कर तेरे संग, आज वक्त के साथ हुए कितने मजबूर हम, थे करीब कभी बेइन्तेहा और आज दूर हुए हम,
वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम
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"दिल में रहने वाले दूर कभी नहीं जाते हैं


"दिल में रहने वाले दूर कभी नहीं  जाते हैं, जब भी याद उनकी आती है आँसू  बन के चले आते हैं,  होते हैं  दूर भले वो नज़रों से पर दिल  की गहरायी में अक्सर वो ही समाये रहते हैं, जब भी आती है याद उनकी  दिल की गहरायी से निकल कर आँखों से अश्रु बन कर चले आते हैं, होते नहीं जुदा कभी दिल में रहने वाले, मिटते नहीं वो कभी दिल में बसने वाले, हो जाते हैं  वो भले इस दुनिया से विदा लेकिन अपने चाहने वालो की आँखों में  अक्सर आँसू  बन के नज़र आते हैं दिल में रहने वाले ये दिल में बसने वाले...

Thursday 30 May 2013

ईश्वर वाणी-ishwar vaani(main hi hoon) **41**

ईश्वर कहते हैं "इस सम्पूर्ण जगत में केवल एक मैं ही सत्य हूँ बाकी सब असत्य है, मैं ही आदि हूँ और मैं ही अंत हूँ, मैं ही जीवन हूँ और मैं ही मृत्यु हूँ, मैं ही आज हूँ मैं ही कल था और मैं ही आने वाले समय में रहूँगा, मैं ही अतीत हूँ और मैं ही वर्तमान हूँ और मैं ही भूतकाल भी हूँ, मैं ही शून्य हूँ और मैं ही आकर हूँ, मैं ही लौकिक हूँ और मैं ही पारलौकिक हूँ, मैं ही वायु हूँ और मैं ही अग्नि हूँ, मैं ही जल हूँ और मैं ही जीवन हूँ, इस ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वश्तु में केवल मैं ही मैं हूँ, प्रत्येक प्राणी में भी मैं ही हूँ, मैं ही आत्मा हूँ और मैं ही परमात्मा हूँ, मैं ही सुख हूँ और मैं ही दुःख हूँ, मैं ही हसी हूँ और अश्रु भी मैं ही हूँ,  इस संसार की गति भी मैं हूँ और गड़ना भी मैं ही हूँ, चेतना भी मैं हूँ और अवचेतना भी मैं ही हूँ , मैं ही आकर हूँ और मैं ही निराकार हूँ, मैं वही हूँ जो प्राणी चाहता है, इसलिए हे मनुष्य आपसी बेर भुला कर तू मुझे जब भी सच्ची आस्था से जिस भी रूप में याद करेगा एवं अगर तेरे कर्म मुझे अपने तक लाने के काबिल हुए तो तेरे ह्रदय के रूप के अनुरूप तू मुझे सदा अपने ही समीप पायेगा, क्योंकि इस धरा का आदि और अनादि मैं ही हूँ, मैं ही स्वर्ग हूँ और मैं ही नरक हूँ, मैं ही तीन लोक हूँ  और मैं ही अथाह अन्तरिक्ष भी हूँ,  इसलिए हे मानव अपने अज्ञान की पट्टी अपने नेत्रों से खोल और मेरी शरण में आ ताकि तेरा कल्याण हो सके और तू मोक्ष को प्राप्त कर जन्म-जन्मान्तरों की पीड़ा से मुक्ति पा सके क्योंकि मैं ही पालनकर्ता हूँ और मैं ही संहारंक हूँ, मैं ही माता हूँ और मैं ही पिता हूँ, मैं ही भ्राता हूँ और मैं ही बहना हूँ, मैं ही मित्रा हूँ औरमैं ही शत्रु भी हूँ, अन्धकार भी मैं हूँ और उजाला भी मैं हूँ, इसलिए हे मनुष्य तू खुद पर अहंकार न कर क्योकि तू कुछ भी नहीं है क्योंकि तुझमे भी मैं ही हूँ, इसलिए अपने अहंकार तो त्याग और मेरी शरण में आ ताकि तेरा कल्याण हो सके" । 

हर शख्स मुझे बेदर्द नज़र आता है,

हर मर्द मुझे नामर्द नज़र आता है, हर शख्स मुझे बेदर्द नज़र आता है, ये ज़माना मुझे शेतान नज़र आता है, हर अपना मुझे बेगाना नज़र आता है, घूरती हुई नज़रों वाला भी हर कोई मुझे हेवान नज़र आता है, नज़ारे झुखा कर चलने वाला भी मुझे जिस्म का अभिलाषी नज़र आता है, कितने धोखे मिले हैं मुझे लोगों से, लगी हैं कितनी ठोकरे बस अपनों से, दिला कर ऐतबार अपनी वफ़ा का बेवफाई मिली है बहुत मुझे ज़माने से, खुद को मर्द कहने वाले, अक्सर अपनी बातों पे डटे रहने का ढोंग करने वाले मुझे फरेबी नज़र आते हैं, अक्सर साथ चलने का वादा करने वाले मुझे बीच राह में छोड़ने वाले नज़र आते हैं, ये मेरी नज़रों का धोखा है शायद या फिर बीते दिनों का दर्द है कही इस दिल में जो  ज़िन्दगी में मुझे हर अपना  दूर नज़र आता  हैं, वासना में डूबा हर शख्स मुझे रावण नज़र आता है, दिल लगा कर छोड़ जाने वाला हर मर्द भी मुझे नामर्द नज़र आता है.. 

ईश्वर वाणी(ishwar vaani) maanav vikratiyaan **40**

ईश्वर कहते हैं हमारे हाथों की जो उंगलियाँ हैं वो पांच प्रकार बुराइयां हैं अर्थात पांच प्रकार की बुराइयों की अर्थात व्याधियों की  प्रतीक हैं जिन्हें मनुष्य को त्याग कर प्रभु भक्ति, सत्कर्म एवं अछे एवं नेतिक आचरण का अनुसरण करते हुए मोक्ष प्राप्ति हेतु अग्रसर रहना चाहिए।

ईश्वर बताते हैं ये पांच प्रकार की बुराइयां मानव में कौन-कौन सी हैं  जिनके वशीभूत हो कर मानव इश्वरिये  कार्यों  की अवहेलना करके सदा दुःख को  प्राप्त  है। प्रभु बताते हैं ये बुराईयाँ हैं 'काम', 'क्रोध', 'लोभ', 'मोह' और अहंकार, प्रभु कहते हैं मनुष्य अपने इश्वरिये उद्देश्यों को  भूल कर इस मृत्यु लोक में केवल अपने शारीरक सुख एवं भोगों में लिप्त हो कर इन पांच तत्वों का गुलाम हो कर इश्वरिये कृपा को खो देता है एवं अपने इस मानव जीवन में दुःख पाता जो की प्रभु ने उसे मोक्ष पाने के लिए दिया है, इनमे लिप्त हो कर मनुष्य फिर सदा जन्म-मरण के चक्र में उलझा रहता है और दुखों को प्राप्त करता रहता है।




Wednesday 29 May 2013

बस इतनी सी खता इस ने दिल की

बस इतनी सी चाहत है इस दिल की थाम कर मेरा हाथ ऐ मेरे दिलबर तू मुझे जन्म-जन्मों का प्यार दे ,ले कर अपने बाहों में मुझे मेरी ज़िन्दगी तार दे ,मिले मुझे इनती मोहब्बत तुझसे ना मिली कभी किसी को किसी से , मिले मुझे इतनी चाहत तुझी से ना मिली कभी किसी को किसी से , मिले मुझे इतनी ख़ुशी तुझिसे ना मिली हो कभी किसी को किसी से ,
    है पता मुझे जिस चीज़ की ख्वाइश है मुझे वो तो नहीं मिलती है अब इस सरज़मीं पे ,वो तो मिलती है मन की कल्पनो में या फिर नज़र आती है बस ख़्वाबों में या फिर  दिखती है  नाट्यशालाओं के किसी किरदार में ,
है पता मुझे की ना तो आज कोई ऐसा मिलेगा हमसफ़र जिसका दिल सिर्फ मुझी को चाहेगा , और ना  नज़र कही वो दिलबर जिसे  सिर्फ मुझसे प्यार होगा , एक  सच्चे  दिल वाला वो आशिक ना कही मुझे मिलेगा , 
दुःख नहीं मुझे की मेरी  ये ज़िन्दगी इस इंतज़ार में गुज़र जायेगी , रंज तो इस बात का है की मेरी बस इतनी सी ख्वाइश अधूरी रह जायेगी ,
    स्वार्थ की बनी इस दुनिया में आज सच्ची चाहत भी बस मतलब की है , फरेब  से बने हर रिश्ते की बात क्या अब मुझे  कहनी है ,

झूठ और धोखे के बीच में एक सच्चे दिलबर को पाने की खता की , जो थाम कर मेरा हाथ जन्म-जन्मों का प्यार दे बस इतनी सी चाहत  की , बेईमानी से बने इन रिश्तों से मैंने ईमान की हसरत की ,बेफवाई को अपनी ख़ुशी समझने वालों से मैंने वफादारी की उम्मीद की, अत्याचार और अन्याय से बनी इस दुनिया से मैंने प्यार और न्याय की आस की,व्याभिचार में लगे लोगों से मैंने एक सच्चे दिलदार को पाने की आस की, बस ये ही खता मैंने अपनी इस ज़िन्दगी में की,

दुःख नहीं मुझे अपनी इन खातों का , रंग तो ये है की मैंने हेवानो में भगवान् को देखने की  खता की, जिस्मों की भूखे इन इंसानों में मैंने एक सच्चे दिलबर की आस की, झूठ से बने इन रिश्तो में मैंने एक सच्चे हमसफ़र की चाहत की, बस ये ही खता मैंने की, बस इतनी सी खता इस ने दिल की 

Friday 17 May 2013

नशा

हर गम से दूर ले जाता है ये नशा, हर दर्द हर ख़ुशी में भी सभी के काम आता है ये नशा, अपने मोहजाल में हर किसी को कभी न कबि फसा ही लेता है ये नशा, ये जरुरी नहीं की सिर्फ कुछ लेने से ही हो जाता है ये नशा, कभी मोहब्बत तो कभी यार के मिलने से भी चढ़  जाता है ये नशा, अनेक है इसकी बाते, जाने कितनी करी हैं इसने करामातें, पर हर करामत के बाद सबके सर चढ़ के बोलता है ये नशा, पहले पहल लगता  है बेहद खराब और  कड़वा, पर  जैसे-जैसे वक्त के साथ आदत पड़ने लगती है, उस कडवाहट में भी मीठी खुशबू आने लगती है, लोग भले ये कहे  दूर ज़िन्दगी से ले जाता है हर तरह का नशा, लेकिन हम क्या बताये तुम्हे यारो हमे तो अपने में ही ज़िन्दगी दिखाता है ये नशा।