Sunday 9 November 2014

एक नारी हूँ मैं

"ना तो बेचारी हूँ मैं, ना ही एक लाचारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

ना भले सदाचारी हूँ मैं, पर ना ही व्यभिचारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

घर-आँगन की सहचारी हूँ मैं, पर ना कोई बीमारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

रात अंधेरी नही उजयारी  हूँ मैं, ईश्वर की राज-दुलारी हूँ मैं, बस एक नारी हूँ मैं,

अबला नही सबलारी हूँ मैं, दुश्तो पर भी भारी हूँ, बस एक नारी हूँ मैं,

मैं ही  ममता और छाया  हूँ, लिया जन्म ईश्वर ने जिससे मैं ही जगत जननी महा
तारी
हूँ,
बस एक नारी हूँ मैं-४ "

Friday 31 October 2014

ईश्वर वाणी-61

ईश्वर कहते हैं: उन्होंने इस धरा पर मनुष्य को केवल यहाँ के एक सेवक के रूप में भेजा है जो इस धरा और  समस्त प्राणियों की प्रकृति की देखभाल कर सके और इसीलिए उन्होंने मनुष्य को अन्य प्राणियों से अधिक मष्तिष्क और शक्ति प्रदान की ताकि वो इन्हे प्रकृति एवं प्राणियों की उचित ढंग से हिफाजत कर सके किन्तु मानव ने समय के साथ इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया, प्रकृति एवं प्राणियों का शोषण एवं दोहन शुरू कर दिया,



ईश्वर कहते हैं मनुष्य की  इसी प्रवत्ति के कारण आज मनुष्य-मनुष्य का दुश्मन बना हुआ है, मनुष्य- मनुष्य का शोषण और अब दोहन कर रहा है, ईश्वर कहते हैं मनुष्य की यही प्रवत्ति उसे विनास की और ले जा रही है,


ईश्वर कहते हैं यदि मनुष्य अब भी नहीं रुका तो बहुत ही शीघ्र उसका विनास होगा और इसका जिम्मेदार खुद मनुष्य ही होगा … 




ईश्वर वाणी -60

ईश्वर कहते हैं हमें सदा दूसरों के साथ नेकी करनी चाहिए यघपि जिसके साथ हम नेकी कर रहे हैं वो हमारे विषय में कुछ भी सोचे, ईश्वर कहते हैं भले जिसके साथ हम नेकी कर रहे हैं वो इसकी अहमियत न समझता हो, यघपि वो हमारी आवश्यकता के समय हमरे साथ नेकी न करे किन्तु उसकी आवश्यकता के समय हमें उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए और इसके साथ यदि हम नेकी करते हैं तब बदले में उस मनुष्य से हमें इसके बदले नेकी ही मिलेगी ऐसी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए किन्तु इसे ईश्वर का आदेश मान कर करना चाहिए, क्योंकि भले ही किसी के साथ अच्छा और बुरे वक्त में सहायता करने का अहसान एक मनुष्य समय निकलने के बाद अवश्य भूल जाए किन्तु ईश्वर नहीं भूलता, ईश्वर प्रतेक प्राणी को उसके कर्मो अनुसार ही फल देता  है, जिसने किसी के साथ नेकी की है उसके अनुरूप उसे फल मिलेगा और और जो किसी की सहायता को भूल जाए और अपने स्वार्थ में लीन हो उस सहायता देने वाले मनुष्य को भूल जाए उसे उसके अनुरूप ही ईश्वर फल देते हैं,



ईश्वर कहते हैं जब फल देने वाला मैं हूँ तब तुम अपने अच्छे और बुरे कर्मो के फलों की आशा मानव से क्यों करते हो, निरंतर कर्म करते रहो, और जो तुम्हारे कार्मोनुसार सही होगा उसी  अनुसार मैं तुम्हे फल दूंगा।



ईश्वर वाणी -59

"ईश्वर कहते हैं मैं जल से भी अधिक निर्मल हूँ, वायु से भी अधिक पारदर्शी हूँ, पर्वत से भी अधिक कठोर हूँ, कली से भी अधिक कोमल हूँ, बादल से भी अधिक हल्का हूँ, यधपी मैने ही खुदसे समस्त श्रष्टी को ढक रखा है इसलिए मैं कन-कन में हूँ किंतु यदि तुम्हे मुझे प्राप्त करना है मेरी कृपा को पाना है तो मैं तुम्हारी सच्ची उन प्राथनाओं  में हूँ"