Thursday 6 July 2017

कविता-ज़िन्दगी मेंरी ठहर सी गयी

"ठहरे हुए पानी की तरह, ज़िन्दगी मेरी ठहर सी गयी
अतीत में खोया है आज, कैसे इश्क में ज़हर पीती गयी

करती हूँ याद आज भी, जो गुज़ारी थी शामें इंतज़ार में
सोचती हूँ आज मैं, कैसे इतनी बड़ी भूल में करती गयी

इश्क की रंगीनियों को, बस झरोखो से ही देखती थी
मोहब्बत को जींदगी, और उसे खुदा मैं समझती गयी

आदत डाल कर अपनी, मुझे ठुकराने लगा वो हर पल
प्यार उसका समझ कर, अश्क अपने मैं बस पीती गयी

एक दिन अहसास, शायद तुझे होगा मेरी आशिकी का
हर दिन ये ही सोच कर, मर मर कर मैं बस जीती गयी

ठहरे हुए पानी की तरह, ज़िन्दगी मेरी ठहर सी गयी
अतीत में खोया है आज, कैसे इश्क में ज़हर पीती गयी-२"

Sunday 2 July 2017

कविता-न तन्हाई जाये

करके वफा तुझसे, नसीब में मेरे तो बेवफाई आये
कर हर खुशी नाम तेरे, ज़िन्दगी से न तन्हाई जाये

'मीठी' सी चाहत का, एक ख्वाब देखा था बस मैंने
तोड़ कर हर ख्वाब, 'ख़ुशी' क्यों हर बार रुलाई जाये

तेरे ही इश्क में 'मीठी', भुलाई है मैंने दुनिया सारी
तुझसे क्यों न 'ख़ुशी' से, दुनिया ये भुलाई जाये

याद में तेरी, कितना तड़पती है 'मीठी' पल पल
'ख़ुशी' इन लबो पर, तुझसे आखिर न लायी जाये

'मीठी' बातो से दिल, चुराने वाले ए मेरे हमनसिं
'ख़ुशी' की कोई बात, तुझसे न कभी बताई जाये

मेरी मोहब्बत को, कर दिया बदनाम तुमने जग में
फिर भी मिलाते हो आँखे मुझसे, ये न छिपाई जाये

की है आशिकी यहाँ, तुमने भी कभी किसी से तो
क्यों आखिर, तुमसे ये अब न किसिसे जताई जाये

कमी क्या लगी, तुम्हे मेरी मोहब्बत में ऐ मेरे हमदम
कुछ आज तुम मेरी सुनो, कुछ तुम्हारी सुनाई जाये

न बैठो अब और खामोश तुम, बोलो न मुह फेरो तुम
गुमसुम बहुत रह लिये, आज कुछ अपनी बताई जाये

करके वफा तुझसे, नसीब में मेरे तो बेवफाई आये
कर हर खुशी नाम तेरे, ज़िन्दगी से न तन्हाई जाये-2

 कॉपीराइट@मीठी-ख़ुशी(अर्चना मिश्रा)

Saturday 1 July 2017

मुक्तक

"खोया था कभी दिल मेरा भी इन वादियो में
पाया था मैंने भी उन्हें ही इन वादियो में
मोहब्बत के सौदागर निकले वो मेरे हमदम
मिले थे कभी हम उनसे भी इन वादियो में"

"रह रह कर मुझे तेरी याद आती है
पल पल मुझे ये कितना सताती है
दूर जा कर मुझसे खुश है कितना तू
याद तेरी इन आँखों पर अश्क लाती है"

"दिल तोड़ कर मेरा चला गया हरजाई
 वफ़ा के बदले उसने दी बस बेवफाई
 मैंने तो जान भी कर दी थी हवाले उनके
 मेरी मोहब्बत पर उसने दया भी न दिखाई"

Tuesday 27 June 2017

मुक्तक

"जाने कैसे सबको उनका प्यार मिल जाता है
जाने कैसे सबको उनका यार मिल जाता है
हमको तो मिलते है मोहब्बत में ठग हर मोड़ पर
जाने कैसे सबको उनका संसार मिल जाता है"

Monday 26 June 2017

ईद मुबारक

"ऐ खुदा कुछ ऐसी रहमत कर दे
 इस ईद पर गरीब का पेट तो भर दे
 रोये न भूख से बिलखकर कोई फिर
खुदा करिश्मा तू आज ऐसा कर दे"

Sunday 25 June 2017

लेख--हिन्दू धर्म नही बल्कि एक प्राचीन सभ्यता

"मैंने एक रिसर्च की और पाया की जो लोग 'हिन्दू' को धर्म कहते है वो
अज्ञानी है, क्योंकि सच्चाई ये ही है हिन्दू कोई धर्मं नहीं, तभी
शास्त्रों और ग्रंथों में कही भी हिन्दू धर्म और हिंदुत्व का जिक्र नहीं
नहीं है।
अब लोग कहेंगे हिन्दू धर्म नहीं तो क्या है? क्या मुझे हिंदुत्व से
दिक्कत है?? तो उन्हें मैं बता दू हिंदुत्व से मुझे दिक्कत नही, पर
हिन्दू एक धर्म भी नही ये सत्य है, 'हिन्दू' एक सभ्यता है, विश्व की अनेक
प्राचीन सभ्यताओ में से अभी तक जीवित बची सबसे विकसित प्राचीन सभ्यता जो
प्राचीन काल से अब तक अपना अस्तित्व बचा कर रख पायी है, हालांकि अब इसमें
बहुत बदलाव आधुनिकता के आधार पर आ चूका है फिर भी मूल तत्व अपने साथ लिए
ये आज भी जीवित है।
'हिमालय पर्वत श्रंखलाओ से हो कर अनेक नदियो के किनारे' एक विशाल विकसित
सभ्यता का विकास हुआ, हिन्दू का 'हि' शब्द उसी हिमालय के समीप व् 'न्द'
शब्द नदी किनारे बसी उसी सभ्यता के विषय में जानकारी देता है, यहाँ पर
रहने वालो को ही हिन्दू कहा जाने लगा।
विश्व की सबसे प्राचीन और विकसित सभ्यता के नाम पर ही उसके समीप बहते
विशाल सागर को ही हिन्द महा सागर कहा गया, याद रखने योग्य ये है अभी तक
किसी धर्म के नाम पर किसी नदी या सागर का नाम नही रखा गया है, केवल हिन्द
महा सागर नाम क्यों ?? क्योंकि ये धर्म नही बल्कि प्राचीन विकसित और अब
तक जीवित इकलौती सभ्यता है।
तभी सभी हिन्दुओ के नाम, भाषा, रीती रिवाज़,त्योहार सब अलग है, कारण केवल
हिमालय तथा उससे निकलने वाली नदियो के किनारे बसे लोग, सभी ने अपने
अनुसार भाषा बोली, रीती रिवाज़ और त्योहार मनाये, तभी एक ही नाम की
धार्मिक पुस्तक 'रामायण' दक्षिण में अलग और उत्तर भारत में अलग
तथामलेसिया व् इंडोनेशिया में अलग है।
यदि ये धर्म होता तो मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध आदि धर्मो के सामान
इसके मानने वाले एक ही त्योहार करते, रीती रिवाज़ एक होती, एक भाषा मुख्य
होती, किंतु ऐसा नही है।
अब सवाल उठता है विश्व की सबसे प्राचीन विकसित सभ्यता आज इतनी कम क्यों रह गयी?
इसका उत्तर है समय के साथ इसमें आई बुराई, और उन बुराइयों को दूर करने के लिए आने
अनेक मतानुयायी आये, जिन्होंने उसकी बुराई दूर करने के लिये उपदेश दिए,
जिन्होंने उन उपदेशो को माना वो उसी मत अर्थात धर्म को मानने वाले होते
गए, बाद में कुछ शाशको ने बलपूर्वक या लालच दे कर इस सभ्यता के लोगो को
बहका कर किसी दूसरे मत अपने
अनुसार किया, फलस्वरूप आज ये सभ्यता विश्व
में इतनी ही बची है।
किंतु उम्मीद है दुनिया का हर देश आज इस अत्यंत प्राचीन सभ्यता का शोषण
और खत्म करने की अपेक्षा बचा कर रखेगा, यही सभ्यता है अब बची है जब मानव
इतिहास की पूर्ण व्याख्या करती है।
--
Thanks and Regards
*****Archu*****
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Saturday 24 June 2017

कविता-मुझे मिटाया

"दुनिया में जब जब मैंने दिल लगाया
धोखा ही हर उस शख्स से पाया
कसूर फिर भी किसी का नही शायद
किस्मत ने उन्हें आखिर मुझसे मिलाया

ख़ुशी की चाहत दिखा सभी ने रुलाया
इश्क के नाम पर सभी ने सताया
मीठी बाते बना सदा बहलाते रहे मुझे
पर वफा का वादा न किसीने निभाया

दिलके रिश्ते बना दिलसे से ठुकराया
अपना बना कर भी न अपना बनाया
एक मोहब्बत की ही चाहत की थी
ज़िन्दगी बता अपनी ज़िन्दगी से हटाया

फिर भी साथ रखा तेरी बेवफाई का साया
तूने भुला दिया मुझे पर न मैंने तुझे भुलाया
ज़िन्दगी के आखिर तक एक साथ चाहा था
पर तूने तो ज़िन्दगी से ही मुझे मिटाया"