Saturday 11 November 2017

वो मज़बूर हैं और हम (एक सच्ची कहानी)

नोट-ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है जो भारत के ही किसी जंगल में घटी थी, कहाँनी के अनुरूप कुछ परिवर्तन अवश्य यहाँ किये गए है किंतु इससे कहानी के मूल तत्व में कोई परिवर्तन नही हुआ है साथ ही ये सोचने पर मज़बूर करता है मासाहारी जानवर मज़बूर है मासाहार और जीव की हत्या के लिये क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नही है लेकिन इंसान जो केवल जीभ के स्वाद के लिए किसी की हत्या करता है उसे क्या सचमुच इंसान कहना चाहिये, सोचिये और सम्भव हो तो कहानी पड़ने के बाद अपने कमेंट जरूरलिखे।




Sat, Nov 11, 2017 at 4:31 PM


दो दिन शिकार की तलाश करने पर भी तगड़ा सिंह तेंदुए को कोई शिकार नहीं
मिला, वही भूख से बेचारे तगड़ा सिंह की जान निकली जा रही थी, वो सोच रहा
था जंगल के सभी जानवर कहाँ है, क्या सभी को मुझ जैसे ही किसी मासाहारी
जानवर ने खा लिया या इंसानी शिकारियों के हाथो सब मारे गए, इससे पहले तो
ऐसा ना था, जब भी भूख लगती कोई ना कोई जानवर भोजन हेतु मिल ही जाता था
किंतु आज दो दिन से कोई नही मिला।

इसी विचार में बेचारा तगड़ा सिंह तेंदुआ नदी तट की और चल पड़ा, नदी के पास
एक पेड़ की शाखा के नीचे वो जो देखता है उसकी आखो में चमक आ जाती है, वो
देखता है नीनू बंदरिया अपने नन्हे से बच्चे जुगनू के साथ खेल रही है, खेल
में इतनी वो खोई है की भूखे तेंदुए की आहट तक उसने नही सुनी, तगड़ा सिंह
कुछ पल उन्हें देखता है फिर नीनू बंदरिया पर हमला कर देता है, नीनू
बंदरिया सम्भल नहीं पाती इस अचानक हुए हमले से और अपने नन्हे से बच्चे
जुगनू के सामने ही तड़प तड़प के मर जाती है।

अपने शिकार को हासिल कर तगड़ा सिंह तेंदुआ बड़ा हर्षित होता है और सोचता है
अब दो दिन बाद भर पेट भोजन करूँगा, ये सोच कर वो बंदरिया के शव को अपने
दांतो से दबा कर अपनी गुफा की ओर घसीट कर ले जाने लगता है, किंतु कुछ छड़
बाद वो जब पीछे मुड़ कर देखता है तो अवाक रह जाता है क्योंकि उस बंदरिया
का नन्हा सा बच्चा डरा सहमा अभी भी अपनी माँ के साथ ही चल रहा होता है,
तेंदुआ जहाँ और जिस और भी जाता है बच्चा वही उसी तरफ चलने लगता है, वो
मासूम अपनी माँ को नही छोड़ता ये जानकार भी जिसने उसकी माँ की हत्या की
उसके सामने वो नन्ही सी जान तो कुछ भी नही।

इस घटना के बाद तगड़ा सिंह आत्म ग्लानि में डूब जाता है, अपने शिकार को
वही रख सोचता है "हे ईश्वर ये कैसी विडंबना है, मेरी भूख की आग के कारण इस
मासूम नन्ही सी जान को आज अनाथ होना पड़ा, मैं तो मज़बूर हूँ, मासाहार ही
केवल एक भोजन है मेरा, प्रकति ने मुझे ऐसा ही बनाया है, जाने कितनो की
मैं जान ले चुका हूँ,कितने ही बच्चों को मैं अनाथ कर चुका हूँ, पर मेरी
रचना ही ऐसी हुई है की अपनी भावनाओ को नियंत्रित करना पड़ता है अन्यथा हम
मासाहारी जीव नहीं जी सकते, हे परमेश्वर इस अपराध के लिए मुझे माफ़ कर और
इस नन्ही सी जान की रक्षा करने की शक्ति मुझे दे"।

इतना विचार कर ह्रदय में तगड़ा सिंह तेंदुआ अपनी भूख को दरकिनार कर अपने
शिकार को एक तरफ रख नन्हे जुगनू बन्दर के पास जा कर उसे दुलारने लगता है
और ह्रदय में ही विचार करता है "आज से मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा
तुम्हारी माँ बन कर तुम निश्चिन्त रहो नन्हे बच्चे", इसके बाद तेंदुआ उस
नन्हे से बन्दर से खेलने और उसका दिल बहलाने लगता है साथ ही उसे अपनी
गुफा में साथ ले जाता है।"

Thursday 9 November 2017

गीत-हाँ सुन

सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन
मेरी पायल कहती है क्या सुन
सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन-२

खन खन खनकती मेरी चूड़िया
सुन क्या कहती है
तू भी तो आज सुन हाँ-२

मेरी बिंदिया दमकती है
क्या कहती है
इसकी भी तो सुन हाँ सुन-२

लबो की लाली है निराली
पुकारे तुझको ही हरदम
सुन इसकी भी तो सुन
ऐ हमदम इसकी भी तू सुन

ये कजरा ये गज़रा बुलाये तुझको
ऐ मेरे दिलबर सुन इनकी जरा सुन

सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन-२

धड़कन मेरी दिलसे मिलकर
कुछ कहती है
आ कर पास मेरे बात इसकी
धीरे से तू भी आज सुन हाँ सुन

सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन-२

मेरी साँसों में मेरे जज़्बातों में

इन इरादों में रहता है जो
सुन इनकी येही धुन 
तू भी तो आज सुन


प्यार में घायल है आज ये 'मीठी'

पुकार 'ख़ुशी' की जानेमन तू सुन


सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन
मेरी पायल कहती है क्या सुन
सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन--४

Wednesday 8 November 2017

कविता-पास हो कर भी


पास हो कर भी कितना दूर है मेरा दिलबर मेरा सनम
मोहब्बत की सज़ा मिल रही है हमे हर पल हर कदम

नदिया के दो किनारे हुये हम,एक पर रहते हो तुम
दूसरे से तुम्हे हम देखते हैं ,करीब हो कर भी दूर है हम


इश्क की आग में जल रहे मोहब्बत करने वाले
आग की भेट कभी चढ़ रहे तुम, और मर रहे हम

कभी अपने कहने वाले होते थे कितने यहाँ
अब छोड़ तनहा हमे सब चले गये कहाँ

इंसानो की इस दिवार में कितने आशिक चिने
इश्क की आवाज़ को सदियो से वो कर रहे हैं बंद

मोहब्बत पर तो है बस मज़हब का पाबन्द
आशिक की लाशो को रोज़ गिनने लोग आते है

मोहब्बत करने वालो से लोग हमदर्दी दिखाते है
हुये जो सितम ये सबको सुनाये जाते है

देख 'मीठी' कैसे इश्क पर लोग पहरा लागए बैठे है
आशिकों के गम में 'ख़ुशी' अपनी छिपाये बैठे है

वादा कर और ना सहेगी 'मीठी' मोहब्बत में ये सितम
'खुशी' के लिये अब मर मिटेंगे ऐ ज़िन्दगी अब हम


पास हो कर भी कितना दूर है मेरा दिलबर मेरा सनम
मोहब्बत की सज़ा मिल रही है हमे हर पल हर कदम-२

ईश्वर वाणी-२२५, आत्माये धरती से ऊपर रहती है


ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम ये सब जानते हो की आत्मा जब देह त्याग जाती है तब भी इस संसार में उसका अस्तित्व रहता है, आत्मा एक ऊर्जा एक शक्ति के रूप में उस वक्त तक अपने इस सूक्ष्म शरीर में रहती है जब तक उसे दूसरी देह अथवा मोक्ष न मिल जाये।

हे मनुष्यो ये तुमने सुना होगा की आत्मा कभी ज़मीन पर नही चलती अर्थात भूमि से कुछ ऊपर ही रहती है, जिससे पता चलता है जीवित और मृत प्राणी का अर्थात कभी कभी मृत प्राणी बिलकुल जीवित जैसा ही रूप धारण कर अपने निम्न उद्देश्यों की पूर्ती हेतु जीवित व्यक्तियो में आ जाते है ऐसे में ये देख कर उन्हें पहचाना जा सकता है की उनके पाँव भूमि से टकराते है या नही, कभी कभी आत्माये इतना मामूली अंतर रखती है ज़मीन से अपनी ऊचाई का की आँखों से देखने पर पता ही नही चलता, ऐसे में रेत अथवा रेतीली भूमि पर उनके पैरो के चिन्नो से पता चल सकता है की फला व्यक्ति जीवित है या मृत, जीवित व्यक्ति के पेरो के निशान भूमि पर बन जायंगे किन्तु मृत व्यक्ति के निशाँ उस रेत या रेती भूमि पर नही बनेंगे, यदि रेतीली भूमि या रेत न मिले तो गीली मिटटी से भी ये प्रयोग कर उक्त व्यक्ति के विषय में जाना जा सकता है।

हे मनुष्यो यद्दपि साधारण आत्मा ही नही मेरे द्वारा भेजे दूत (मेरे ही अंश जो भौतिक देह प्राप्त कर जन्म लेते है अपने भौतिक माता पिता द्वारा)जब वह देह त्याग चुके होते है वह भी पृथ्वी भ्रमण के दौरान भूमि से कुछ ऊपर ही रहते है, इसका एक कारण ये ही है धरती सहित सभी गृह, नक्षस्त्र, ब्राह्मण सब भौतिक है इसलिए नाशवान है किन्तु ये आत्मा परमात्मा अर्थात मुझसे निकलने के कारण अमर है, आत्मा ही प्रत्येक जीवन का आदि तत्व है किंतु ये नाशवान नहीं है यद्दपि भौतिक देह के सभी अंग मानव देख सकता है, छू सकता है किंतु आत्मा जो प्रत्येक जीव का आदि और प्रमुख अंग है इसे ना तो भौतिक में कहाँ स्थित है ये देखा जा सकता और ना ही छुआ जा सकता किंतु इसके बिना भौतिक देह मिटटी की काया एक बेज़ान वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी नही है।

हे मनुष्यों यद्दपि तुम सोचोगे की कुछ असमान्य गतिविधिया जिन्हें कहा जाता है की अलौकिक शक्तिया करती  कही जाती है, वस्तुए अचानक गायब हो जाना फिल मिल जाना या किसी की देह में किसी भूत आदि प्रवेश हो जाना, तब तो आत्मा इन वस्तुओं को छूती है जोकि भौतिक और नाशवान है फिर धरती पर उनके निशाँ का ना मिलना अर्थात पृत्वी से कुछ ऊँचा उनका होना सिर्फ इसलिये की वो भौतिक है इसलिये इस पर उनके कदम नही पड़ते सही जान नहीं पड़ता।

हे मनुष्यों तुम्हे उसका ही उत्तर बताता हूँ, यद्दपि आत्मा चाहे वो भूत प्रेत योनि में भटक रही है होती है किंतु वो तुम्हे बिना छुये तुम्हारे मस्तिक को भ्रमित कर देती जिससे तुम्हें कभी किसी वस्तु के अपने स्थान से गायब होने का अहसास होता है, साथ ही तुम्हे बताता हूँ आत्मा जब खुद भी भौतिक देह के साथ जन्म लेती है तब भी वह पृथ्वी से नही छिलती अपितु ये देह पृथ्वी को छूती है और यही कारण है जब आत्मा किसी की देह पर भूत बन कर कब्ज़ा करती है तब भी धरती से नही छिलती, छिलता केवल भौतिक शरीर है यद्दपि आत्मा भौतिक शरीर में उस अंग से उसके शरीर में प्रवेश करती है जो आत्मा द्वारा छुये नही जा सकते किंतु  वहा से भूत बनने वाली आत्मा पहले से रहने वाली आत्मा पर कब्ज़ा कर लेती है।

हे मनुष्यों ये आत्माये समस्त ब्रह्मांड की आदि शक्तियो में से एक है और जीवन का प्रमुख तत्व है, बिना आत्मा के सृष्टि के किसी भी जीव के जीवन की कल्पना सम्भव नही है।

उम्मीद है तुम्हे आत्मा की विषय में एक नवीन ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी


कल्याण हो"

Saturday 4 November 2017

कविता-तुम हो

"दिल की गहराई में तुम हो
इस तन्हाई में तुम हो

तुम्हें क्या कहु ऐ हमनसिं
मेरे इश्क की सच्चाई में तुम हो

मैं हूँ पागल इश्क में तेरे
मोहब्बत में हरजाई तुम हो

मैंने तो निभाई प्रीत वफ़ा की
आशिकी की बेवफाई में तुम हो

किया ऐतबार हर मोड़ मैंने तेरा
 मोहब्बत की जगहँसाई में तुम हो

मैंने तो नाम कर दी 'मीठी' हर 'ख़ुशी'
पर इस ज़िंदगी की रुलाई में तुम हो

पुकारता है दिल तुझे आज भी
बेवफा है तू मेरी वफाई में तुम हो

दिल की गहराई में तुम हो
इस तन्हाई में तुम हो-३"





Sunday 22 October 2017

कविता-है कुछ मुझे कहना

"आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२

ना जाना दूर कभी यु मुझसे मेरे दिलबर
बन कर मेरी ज़िन्दगी सनम तुम्ही रहना

तुम्ही हो मेरी बन्दगी ऐ मेरे हमनशीं
तुम्ही तो हो मेरी खुशियो का गहना

मैं हूँ एक नदिया की धारा तुम सागर मेरे
जनम जनम तक साथ तेरे है मुझको बहना

तुमसे ही जोड़ा दिलका एक ये रिश्ता मैंने
इन धड़कनो में सनम तुम्ही अब बस रहना

बहुत रह चुके अकेले इन तन्हाइयो में हम
दर्द जुदाई का और नहीं हमे अब सहना

आ जाओ बाहों में 'मीठी' तुम्हे पुकारे
'ख़ुशी' की साँसों में तुमही  पिया रहना


आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२"



Thursday 12 October 2017

जब तुम मेरे साथ थे

"ज़िन्दगी का वो वक्त कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे
हर एक वो लम्हा कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

ज़िन्दगी लगती थी खूबसूरत मुझे साथ तुम्हारे 'मीठी'
'ख़ुशी' का वो पल कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

वादे इरादे वही है आज भी वफ़ा के अपने 'ख़ुशी' पर
वो मौसम कितना हँसी था जब तुम मेरे साथ थे

ख्वाब देखा था 'मीठी-ख़ुशी' साथ उमर भर का
वो साथ भी कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

दुनिया से छिपाये मेरे अश्क तुम कैसे भाप थे लेते 
'ख़ुशी' का प्यार कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

'मीठी' लगने लगी थी मुझे ज़िन्दगी की ये कड़वाई
दिलका अहसास कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

वक्त का है सितम तभी न तुम हो बेवफा न है हम
मिलन का आभास कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

ज़िन्दगी का वो वक्त कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे
हर एक वो लम्हा कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे-२"