Friday 31 May 2019

ईश्वर वाणी-274, आखिर क्यों स्त्रीया हनुमान जी की पूजा नही कर सकती व खास दिनों में निम्न नियमो का पालन करना चाहिए


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि ये एक अपवाद का विषय रहा है कि स्त्रियां निम्न धार्मिक स्थल पर नही जा सकती अथवा निम्न मेरे स्वरूप का पूजन नही कर सकती, किँतु आज कुछ तथ्य व सत्य तुम्हें बताता हूँ।

यद्धपि मृत्यु लोक में कुछ धार्मिक स्थान ऐसे हैं जहाँ स्त्रियों का जाना मना है व निम्न रूपो में स्त्री द्वारा मेरी स्तुति मना है, यद्धपि कुछ ऐसे नियम मनुष्य द्वारा स्त्री को नीचा दिखाने व पुरुष सत्ता को श्रेष्ठ व उच्च दिखाने के लिए बनाई गई है, किंतु कुछ कथाएं अति प्राचीन सत्य कथाएं है जिनमे स्त्रियों को निम्न धर्मिके स्थल व मेरे ही निम्न रूपमे पूजा के लिए मनाही है लेकिन ऐसा स्त्रियों को नीचा व दोयम दिखाने व पुरुष को श्रेष्ठ दिखाने के लिए नही अपितु स्त्री के अति उच्च व सम्मान के भाव के कारण है।

हे मनुष्यों में आदि तत्व परमात्मा हूँ अर्थात परम+आत्मा। आत्मा एक स्त्री तत्व है, ये ऐसा तत्व है जिसके बिना में भी अपूर्ण हूँ, आत्मा अर्थात शक्ति अथवा जीवन, मुझे परम में यदि आत्मा रूपी शक्ति ना हो तो मैं भी परमात्मा अर्थात प्रथम इस श्रष्टि का व आत्माओ का महासागर कैसे बन सकता हूँ, बिन आत्मा के मैं भी अपूर्ण हूँ जैसे भू लोक के किसी भी जीव की देह बिन आत्मा के कुछ भी नही अपितु मिट्टी के पुतले के समान है।

हे मनुष्यों ये न भूलो की तुम सबके भौतिक स्वरूप व तुम्हारी आत्मा के रूप में प्रत्येक पुरुष के अंदर स्त्री तत्व विधमान है, यदि वो स्त्री तत्व हटा दिया जाए तो पुरुश का अस्तित्व ही भू लोक से मिट जायेगा, इसलिए स्त्री का जो स्थान है वो श्रष्टि में सबसे उच्च है।
यद्धपि मनुष्यों आत्मा जब भौतिक देह में नही होती तब उसे न पुरुष कहते हैं न स्त्री व अन्य जीव जंतु, किंतु आत्मा निराकार स्वरूप में हो कर भी एक शक्ति व ऊर्जा है, यही ऊर्जा व शक्ति रूपी तत्व ही स्त्री तत्व है जो मुझ परम् के साथ जुड़ कर परमात्मा कहलाता है व जीव के साथ जुड़ कर जीवात्मा कहलाता है।

हे मनुष्यों आज तुम्हे बताता हूँ कि हनुमानजी व निम्न धार्मिक स्थल पर स्त्री पूजा क्यों नही कर सकती अपितु पुरुष ही पूजन कर सकते हैं।
आत्मा खुद एक शक्ति व ऊर्जा है, वो खुद भी एक स्त्री तत्व है, जब एक स्त्री तत्व भौतिक स्वरूप में भी स्त्री तत्व में आ जाती है तब वो खुद इतनी पूजनीय हो जाती है कि देवता जो मेरे ही निम्न रूपो से उतपन्न हुए है उसकी पूजा स्वीकार नही कर सकते अपितु वो खुद उस शक्ति की उपासना करते हैं तो ऐसे में वो अपने से उच्च पद प्राप्त व्यक्ति की पूजा कैसे ले सकते हैं, इसको इस तरह समझ सकते हो जैसे तुम कही नॉकरी करते हो और तुम्हारा मालिक अथवा तुमसे उच्च पद प्राप्त व्यक्ति से क्या तुम आदेश दे कर कोई कार्य करा सकते हो, नही न, तो ऐसे में जब जीवात्मा स्त्री शरीर मे होती है तब वो खुद अति पूजनीय होती है जिसके समक्ष मेरे निम्न रूप तक नतमस्तक है, तभी हनुमानजी प्रत्येक स्त्री को "माता" पुकारते हैं क्योंकि "माता" का स्थान संसार मे सबसे ऊँचा है तभी स्त्रियां हनुमानजी की पूजा नही करती किँतु हनुमानजी माता स्वरूप में स्त्रियों की रक्षा अवश्य करते हैं, तभी कहा जाता है भगवान राम व माता सीता की उपासना जो करता है उसकी रक्षा भगवान हनुमान करते हैं।

हे मनुष्यों किँतु अब तुम सोचोगे की यदि स्त्री इतनी पूजनीय है तो उसको पूजन की आवश्यकता ही क्या है, तो तुमको मैं बताता हूँ मेरे जिन स्वरूप की स्त्री पूजा करती है तो केवल मेरे उस रूप के लिए वो केवल एक जीवात्मा है और मेरे परमात्मा स्वरूप की स्त्री पूजा कर सकती है अथवा करती है जिसका उसको फल प्राप्त होता है किँतु माह के कुछ विशेष दिन समस्त स्त्रियों के लिए निषेध है पूजा के लिए, इसलिए नही की मैं स्त्रियों को नीचा व दोयम दिखा कर पुरुषसत्ता को बढ़ावा दे रहा हूँ अपितु इसलिए निषेध है क्योंकि स्त्री उन दिनों में अति श्रेष्ठ व उच्च हो जाती है, और अपने से उच्च व श्रेष्ठ की पूजा स्वीकार्य नही होती क्योंकि वो तो खुद मेरी पूजनीय होती है, अर्थात जो मे्रे से भी उच्च पद पर आसीन है उसकी पूजा मैं अर्थात परमात्मा भी नही लेता।

हे मनुष्यों संसार मे समस्त रूपों में स्त्री का स्वरूप ही आती श्रेष्ठ है तभी उसको जगत जननी भी कहा जाता है, किँतु मूर्ख पुरुषों द्वारा एक भ्राति फैलाई गई है कि रजस्वला स्त्री अशुद्ध होती है, इससे दूर रहो, पुरुषों व खुद स्त्रियों द्वारा उसका अपमान किया जाता है जोकि पूरी तरह अनुचित है।
पृथ्वी भी एक स्त्री है, जो कि रजस्वला होती है, ये तब रजस्वला होती है जब जवालामुखी फटता है, हालांकि उस प्रकिया के दौरान जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसका सर्वनाश हो जाता है किँतु बाद में उसमे ही जीवन पनपता है व जीवनयोपगी वातावरण व भोज्य सामग्री खेती आदि हेतु भूमि का निर्माण होता है।
हे मनुष्यों क्या तुम उस ज्वालामुखी विस्फोट को धरती का अपवित्र होना कह सकते हो??नही??
 
यदि धरती रजस्वला होने पर अशुद्ध व अपवित्र नही तो बाकी स्त्रियां क्यों अपवित्र हुई। हाँ ये सत्य है उस अवस्था मे स्त्री के शरीर से ऐसी ऊर्जा आवश्यक निकलती है जिसके ताप को सहना हर किसी बस में नही तभी ये नियम बनाये गए कि स्त्री पेड़ पौधों मे जल न दे क्योंकि वो सूख सकते हैं, वो स्त्री का ताप शायद न सह सकें, रसोई में भोजन इसलिए नही बनाने की अनुमति है कि स्त्री खुद अभी पूर्ण स्त्री ताप पर है ऐसे में अग्नि का ताप स्त्री को हानि पहुँचा सकता है अथवा स्त्री के शरीर को बाद में नुकसान न हो कोई इसलिए अग्नि के पास जाने की मनाही है, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट हुआ और वही कोई आग लगाने का प्रयास करे अथवा लगा दे तब क्या अनिष्ट होगा, इसीलिए खट्टी वस्तुओं के सेवन की मनाही है क्योंकि स्त्री खुद शक्ति स्वरूप में होती है और जैसे भगवती दुर्गा को उनकी पूजा में खट्टा नही देते तो साक्षात शक्ति स्वरूपनी स्त्रीको भी इसके सेवन से बचना चाहिए।

हे मनुष्यों संसार के श्रेष्ठ जन्मों में से श्रेष्ठ जन्म स्त्री का है, स्त्री पूजनीय है, वो संसार के प्रत्येक जीव व समस्त ब्रह्मांड में है, उसके बिना कुछ सम्भव नही, जो स्त्रियों को गाली देते व अपमानित करते है, उनके साथ निन्म गलत कार्य करते हैं, वो निश्चित ही नरक की अग्नि में अनन्त वर्षो तक जलते हैं।

हे मनुष्यों ये न भूलो की स्त्री इतनी पवन व पूजनीय है तभी मेरे निम्न स्वरूप उससे पूजा नही लेते अपितु खुद उसकी पूजा करते हैं, और रजस्वला होने पर मेरे कोई भी स्वरूप उसकी पूजा नही लेते क्योंकि वो खुद अति पूजनीय है, उसका तपोबल इतना अधिक बढ़ जाता है जिसका सामना न मैं न मेरा कोई स्वरूप कर सकता है इसलिए स्त्री को उस समय केवल शांत हो कर विश्राम करना चाहिए।

हे मनुष्यों आशा है स्त्रियों व पूजा से सम्बंधित आशंका तुम्हारे हृदय से निकल गयी होगी और तुम्हे नवीन ज्ञान की प्राप्ति के साथ नारी जाति के प्रति सम्मान का भाव जागा होगा।"

कल्याण हो

Wednesday 22 May 2019

ईश्वर वाणी- 273 सब कुछ पहले ही लिखा जा चुका है


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम भले मुझे और मेरा अस्त्तित्व नकार दो, तुम भले अपने कर्मो को ही श्रेष्ठ कहो किंतु जो भी तुम करते हो सोचते हो, जो भी अच्छा या बुरा तुम्हारे साथ होता है वो सब पहले ही श्रष्टि निर्माण के समय ही लिखा जा चुका है।

प्रत्येक जीव आत्मा कितने समय तक अपने भौतिक रूप में रहेगी, कितने समय सूक्ष्म शरीर मे रहेगी कितने समय स्वर्ग भोगेगी अथवा निम्न नरको में निवास करेगी, किसके कर्म क्या होंगे और उनको क्या दंड मिलेगा ये सब लिखा जा चुका है और सब कुछ उसके ही अनुसार हो रहा है।

निम्न धार्मिक ग्रंथो की कथाओं को देखो उनमे जो लिखा था वो जैसे सत्य हुआ, मेरे निम्न रूपो में मेरे अंशो का आगमन व उनका जीवन व देह त्याग कर मुझमे फिर मिलन, जैसे उनका तय था व तय है वैसे ही तुम्हारा तय है।

इसलिए शोक न कर और मेरी शरण मे आ,मैं तेरे आँसू पोंछउँगा, तेरे दुख को कम करूँगा, तू मुझमे विश्वाश रख, यद्धपि तुझे बहकाने वाले तेरे पास ही है, तुझे मुझसे दूर करने वाले तेरे पास ही है, तू इसको अपनी एक परीक्षा मान और मुझमे विश्वास पैदा कर, मै तुझे वो सब दूँगा जो इस संसार मे भी उपलब्ध नही है, तू बस सांसारिक बातों और रिश्तों के मोह से दूर होकर मेरी शरण मे आ, तेरा वास्तविक संसार और परिवार तो मैं हूँ, तू मेरी सुन और नेकी कर, भले तेरे प्रारब्ध में बुरा लिखा हो लेकिन तू नेकी कर निश्चय ही तू मुझे पायेगा और असीम सुख को प्राप्त करेगा।"

कल्याण हो

Sunday 5 May 2019

पुरुषवादी सोच और स्त्री

अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक उम्र दराज़ महिला कम कपड़े पहने हुए युवतियों के लिए बोल रही थी कि इनका बलात्कार होना चाहिए क्योंकि इन्होंने ऐसे कपड़े पहने हैं साथ ही वहाँ मौजूद युवकों को भी उनका रेप करने के लिए उकसा रही है।
अब इसको क्या कहे एक छोटी और विछिप्त सोच या पुरुषवादी सोच जो हर स्त्री को बचपन से ही विरासत में मिली है, बचपन से ही हर लड़की को (कुछ उच्च वर्ग/उच्च मध्य वर्ग को छोड़कर) उसके घर वाले खासकर माँ व अन्य महिलाएं यही बोलती हैं कि ऐसे कपड़े मत पहनो, इतने बजे तक रात को बाहर न रहो, ये न करो वो न करो, तमाम तरह की बंदिशें बचपन से ही लगा दी जाती हैं और बंदिशें आगे की पीढ़ी को एक के बाद एक फिर अवतरित होती जाती है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ पुरुषवादी सोच के कारण है, महिलाएं ही अपने बेटों की बोलती है तुम लड़के हो तुम कुछ भी करो तुम्हारा कुछ नही बिगडेंगा वही लड़कियों पर बंदिशें । ऐसा इसलिए क्योंई कि सदियों पहले ही ऐसा माहौल दे दिया गया है कि पुरुष अगर किसी महिला/युवती/बालिका का रेप करे तो पुरुष का कुछ नही जाएगा वो पवित्र रहेगा लेकिन स्त्री चुकी उसकी पवित्रता उसके निज़ी अंगों में ही है उसकी गलती न होने पर भी उसका ही सब कुछ जाता है, एक बलात्कारी पुरुष या एसिड अटैक किसी लड़की पर करने वाला पुरुष उसकी शादी बड़ी आसानी से हो जाती है लेकिन जिसके साथ ऐसा होता है उसका हाथ थामने वाला कोई नही होता कारण पुरुषवादी सोच।
सदियों पहले हिंदू धर्म मे 'कन्यादान' रूपी कुरीति बनी जिसका आज तक पालन हो रहा है, 'कन्यादान' मतलब कन्या का दान जो विवाह में होता है अनिवार्य जो लड़की के घरवाले करते हैं, लेकिन कन्या का दान ही क्यों पुरुषदान क्यो नही होता, आखिर शादी तो दोनों की ही होती है, अथवा कन्या यानी लड़की कोई वस्तु अथवा पशु है जिसका दान किया जाता है।
मैंने कई धार्मिक धारावाहिक देखे जिनमे स्त्रीया पुरुषों को स्वामी कहती हैं (पति को), स्वामी मतलब मालिक, फिर स्त्री की स्थिति क्या हुई यदि पुरुष स्वामी है तो, पुरुष स्त्री को स्वामिनी नही कहते किंतु स्त्री पति को स्वामी कहती है, तभी पुरुष चाहे जितनी भी शादी कर ले मान्य है किंतु स्त्री के मन में ख्याल भी परपुरुष का न आये।

28 फरबरी 2019 को मेरे सबसे बड़े भाई की अचानक मौत हो गई, मेरी माँ दिन रात उसके लिए आँसू बहाती है, मुझे पता है उसकी जगज अगर मेरी मौत होती तो अब तक सबकी ज़िन्दगी पहले की तरह नॉर्मल हो चुकी होती पर चूँकि भाई की मृत्यु हुई है इसलिए मा का कष्ट अधिक बड़ा है ।

ये बात युही नही कहि मैंने, बरसो पहले मेरे भाई के दोस्त की बहन की एक हादसे में मौत हुई थी, तब मेरी माँ ने कहा था "किस्मत वालो की बेटी मरती है", और भाई की मौत के बाद भी यही कहा "बेटी तो किस्मत वालो की मरती है, बेटा बदनसीब का का मरता है, हमारा मरा भी तो बेटा", इसको क्या कहेंगे पिछड़ी वही पुरुषवादी सोच जो मेरी माँ को उनकी माँ से पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती रही है।

किसी से मुझे कोई शिकायत नही है क्योंकि हम किसी की सोच नही बदल सकते लेकिन खुद को बदल सकते हैं, मेरी अपनी कोई बेटी होती तो उसको वो सब मिलता जिसके लिए मुझे रोका टोका गया, अपमानित किया गया, मुझे एहसास कराया गया चूँकि मै एक लड़की हूँ ये ही मेरा एक अपराध है, लेकिन मेरी अपनी बेटी होती तो ऐसा उसके साथ मैंने कभी न किया होता।
खेर मुझे लगता है आज की पीढ़ी को पुराने पुरुषवादी और नारी विरोधी हर रिवाज़ को तोड़ना चाहिए, साथ ही हर स्त्री को अपने अधिकारों के प्रति आवाज़ उठानी चाहिए, इसके साथ ही जो स्त्री को स्त्री से ही जो ईर्ष्या का भाव है चाहे मा-बेटी, सास-बहू या सहेली इस भाव को खत्म करना चाहिए क्योंकि नारी नारी की यही शत्रुता पुरुसगवादी सोच को बढ़ावा देती है।


Sunday 28 April 2019

ईश्वर वाणी-272, सूक्ष्म देह का महत्व


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने  आत्मा व सूक्ष्म शरीर के विषय मे अवश्य सुना होगा, किंतु ये नही पता होगा कि आखिर ये सूक्ष्म शरीर व आत्मा तुम्हारे भौतिक शरीर मे रहती कहाँ है??किंतु आज तुम्हे इसके विषय मे बताता हूँ।
तुम्हारी भौतिक देह के ऊपर एक पारदर्शी परत होती है जो तुम्हारी भौतिक देह को ढक कर रखती है, तथा तुम्हारी आत्मा इस पारदर्शी देह को पार कर तुम्हारे मष्तिष्क व वायु स्थान में रहती है, आत्मा का अपना कोई रूप व आकर नही होता, वो तो वायु व ऊर्जा है, जैसे न वायु दिखती है न ऊर्जा किंतु इनके बिना तुम जीवित नही रह सकते, संसार की कोई भी मशीन इसको नही पकड़ सकती किँतु इस तथ्य को ठुकराना ही मिथ्या है।
जब प्राणी की आत्मा उसकी देह छोड़ कर जाती है तब आत्मा के साथ व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर भी आत्मा के साथ भौतिक देह का त्याग कर देता है, आत्मा भौतिक देह से निकल कर और सूक्ष्म देह में निवास करती है जब तक कि उसका उसकी इच्छा से अथवा परमात्मा अर्थात मेरी इच्छा से इस जीवनकाल का समय पूरा नही होता।
यद्धपि जैसे संसार के कई सूक्ष्म जीव जिन्हें व्यक्ति आपनी भौतिक आँखों से नही देख सकते, तथा उन्हें देखने के लिए निम्न यन्त्र की आवश्यकता होती है वैसे ही ,मृत व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर को देखने के लिए आध्यात्म अथवा उस व्यक्ति की खुद की इच्छा होना आवश्यक है अन्यथा सूक्ष्म शरीर को देखना असम्भव है,
हे मनुष्यों यद्दपि तुमने सुना होगा जिन लोगो को मृत व्यक्तियों के दर्शन हुए है हकीकत में उन्हें वो उसी कपड़े में दिखाई दिए जो मौत के समय पहने थे, इसका कारण भी यही है व्यक्ति के उपरी हिस्से में उपस्थित उसके सूक्ष्म शरीर मे उन्हें कपड़ो के सूक्ष्म कण आ गए जो व्यक्ति ने मौत के वक्त पहने थे तभी जिन्होंने मृत परिजन व जानकर को देखने का दावा किया है वो उन्हें उन्ही कपड़े पहने दिखे जो म्रत्यु के समय पहने थे।
संसार की प्रत्येक वस्तु की तरह ये भौतिक शरीर भी निम्न अणुओ की देन है, और सूक्ष्म शरीर उन अणुओ की रक्षा करता है किंतु मृत्यु के उपरांत उसको भी इसे छोडना होता है तभी ये भौतिक देह अपने पतन की और अग्रसर होती है।"

कल्याण हो 

Thursday 4 April 2019

ईश्वर वाणी-271, मृत्यु परम् सुखदायनी

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों ये तो सब जानते हैं कि मृत्यु एक अटल सत्य है,
जो इस भौतिक स्वरूप में आया है उसको एक दिन अपना ये स्वरूप त्यागना ही पड़ता है।
देश काल परिस्तिथि के अनुरूप मेरे अनेज अंशो ने भी इस भौतिक शरीर मे जन्म लिया
और अंततः उन्हें भी ये देह त्यागनी पड़ी।
म्रत्यु एक अटल सत्य है फिर भी व्यक्ति घबरा जाता है इसका नाम सुन कर, पापी
इसलिए घबरा जाता  है क्योंकि जानता है कि उसने अनेक पाप किये हैं और मृत्यु
उपरांत उसको कठोर दंड भोगने होंगे, किन्तु कुछ लोग मोहवश इससे डरते है, अपनो
से बिछड़ने का भय उन्हें डराता है, यद्धपि सच्चाई से अवगत सब है कि एक दिन ये
देह उन्हें त्यागनी ही होगी और संसार की हर वस्तु के साथ ही ये भौतिक देह भी
छोड़ एक नई यात्रा पर जाना ही होगा।

किँतु आज बताता हूँ मृत्यु जितनी कठोर और निर्मम तुम समझते हो ये वैसी नही
अपितु परमसुदायी है, जैसे दिन भर कार्य करके तुम्हारा शरीर तक जाता है और रात
में निद्रा प्राप्त कर पुनः नई ऊर्जा प्राप्त कर फिर निम्न कार्यो में लग जाता
है, वैसे ही आत्मा भी इस जीवन रूपी कार्यो से अपने निम्न कर्तव्यों के
निर्वाहो से थक कर विश्राम चाहती है, इसी को इस देह की मृत्यु कहते हैं जबकि
आत्मा की मृत्यु नही होती, वो तो फिर एक नए रिश्ते और नए लक्ष्य की पूर्ति
हेतु चल देती है।
किँतु जो जीव शोक करता है वो भौतिक देह का करता है  क्योंकि  वो उसको देख कर
सच मानता रहा है जैसे संसार मे कई व्यक्ति ईश्वर अर्थात मेरे ही अस्तित्व पर
सवाल करते हैं कि मैं हूँ तो दिखता क्यों नही,क्योंकि वो इन भौतिक आंखों
द्वारा देखी जाने वाली भौतिक वस्तुओं को ही सत्य समझते है, किँतु जो भौतिक नही
है वो ही सच है जिसे सांसारिक जीव आत्मा नही समझती और मृत्यु से भय खा कर उसको
कठोर कहती हैं।
सच तो ये है आत्मा की आवश्यकता के अनुरूप उसके लिए भौतिक देह का त्यागना बहुत
जरूरी है, हालांकि जरिया कुछ भी हो सकता है किंतु मृत्यु कठोर नही लेकिन
प्रक्रिया कठोर व दर्दनाक अवश्य हो सकती है क्योंकि ये सब पिछले जन्मों के
कर्मो से तय होता है साथ ही कितना समय उसको प्रेत योनि में काटना है और क्यों
फिर कुछ पल के लिए सुकून हेतु स्वर्ग पाना है या फिर नई जीवन यात्रा आरम्भ
करनी है ये सब भौतिक जीवन के कर्म व प्रेत जीवन के कर्म तय करते हैं।

कल्यान हो

Wednesday 3 April 2019

ईश्वर वाणी-270....भौतिक देह व सूक्ष्म देह के वास्स्तिविक अस्तितिव को जानो

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे इस पृथ्वी पर मैंने समस्त ब्रह्मांड के प्रतीक दिए हुए हैं ठीक वैसे ही तुम्हारी अपनी देह और उसका जन्म व अंत भी वैसे ही होता है जैसे किसी ग्रह-नक्षत्र का अंतरिक्ष में होता है।
अतः अंतरिक्ष में जा कर वहाँ के रहस्य जो तुम खोजते हो यदि तुम अपनी भौतिक देह व सूक्ष्म देह के विषय ठीक प्रकार जान व समझ लोगे तब यू नही भटकोगे, 

हे मनुष्यों इसलिए तुमसे कहता हूँ पहले खुद को जानो, अपने महत्व व कार्यो को जानो, उद्देश्यों को जानो, अपनी भौतिक देह ही नही अपितु अपनी सूक्ष्म देह के विषय मे जानो।

क्या तुम्हारा जन्म उद्देश्य केवल भौतिक संसाधनों के पीछे भागने का ही था, केवल घर गृहस्थी मेरा परिवार मेरे बच्चे मेरा धन बस मेरा या मेरे करने का ही था।

यदि नही तो क्या था जो पाया नही अब तक, जानो उसे और हासिल करने का प्रयास करो क्योंकि ये मानव देह इसीलिए मिली है न कि मेरा या मेरे करने हेतु क्योंकि जिन भौतिक सुखों के पीछे तुम भागते हो वो दुख ही देता है और उसको हासिल करने के चक्कर मे परम् सुख को प्राप्त करने का अवसर खो देते हो।

कल्याण हो 

Thursday 14 March 2019

ईश्वर वाणी-269, नरक जिसे जीवित रहते भी देखा जा सकता है


ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्दपि तुमने निम्न धार्मिक पुष्तक, धर्म शास्त्र व ज्ञानी व्यक्तियों द्वारा तुमने  स्वर्ग व नरक का वर्णन सुना होगा, किन्तु आज तुम्हे बताता हूँ स्वर्ग व परमधाम प्राप्त करने से पूर्व नरक जो हर पापी जीवात्मा को सहना ही पड़ता है, हालांकि उस यातना के बाद भी बचा हुआ दंड जीवात्मा को नए जीवन मे दुख और सुख रोग व अन्य शारीरिक या मानसिक विकार के रूप में भोगना पड़ता है किंतु इससे पूर्व भी हर पापी जीवात्मा नरक अवश्य भोगती है और उस नरक को तुम भी अपनी इन्ही आंखों से देख सकते हो।

हे मनुष्यों जैसे आत्मा बिना शरीर सिर्फ एक मिट्टी के पुतले के समान है, किन्तु आत्मा को तुम नही देख सकते केवल इस पुतले को ही देखते हो, वैसे ही नरक को तुम अपनी आँखों से देख तो सकते हो लेकिन वहाँ दण्ड पाने वाली आत्माओ को नही देख सकते।
 हे मनुष्यों ये तो तुम जानते ही हो पृथ्वी ही इस ब्रह्मांड में एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन है, किंतु क्या तुमने सोचा है फिर इस ब्रह्मांड में अनन्त ग्रह नक्षत्र व आकाशगंगाओ की आवश्यकता ही क्यों है, किंतु आज तुमको बताता हूँ सच सच जो तुम ये ग्रह नक्षत्र व आकाशगंगाये तुम देखते हो ये सब ही उस नरक का द्वार है जहाँ प्रत्येक जीवात्मा प्रवेश करती है और यातना सहती है, तभी तुमने देखा और सुना होगा कोई ग्रह बहुत गर्म तो कोई बहुत ठंडा तो कोई अन्य तरह के गैस व तेज़ वायु वेग से भरा हुआ है, कही निरंतर ज्वालामुखी फटते रहते हैं जिनसे भयानक लावा नदी व महासागर के रूप में बहता रहता है तो कही तपती रेत है तो कही अत्यंत गर्म क्षेत्र जो पल भर में इस भैतिक देह को पिघला दे।
हे मनुष्यों तुम्हारा सूक्ष शरीर जिसे तुम आत्मा कहते हो वो कर्म के अनुसार इन क्षेत्रों में विचरण करती है,  काले व गहरे गड्ढे (black wholes) जहाँ सूर्य की रोशनी तक नही जाती तो कही इतनी रोशनी की आंखे तक चौंधिया जाए, तुमने वैतरणी नदी का नाम अवश्य सुना होगा जो आकाश में बहती है, जिस पर से हर जीवात्मा को जाना ही पड़ता है, पापी जीवात्मा को ये भयानक पीड़ा देने वाली और पुण्यात्मा को आनन्द देने वाली होती है, ये नदी हड्डियों के दोनों तरफ के किनारो से भरी होती है, जिसे मनुष्य अपनी आधुनिक तकनीक से देख सकता है, आकाश में विचरण करने वाले ये अनन्त उल्का पिंड उसी नदी के सहारे और किनारे बहने वाली वो हड्डियां है, इसे इस प्रकार समझ तुम समझ सकते हो ‘जैसे कोई अति प्राचीन शव को तुम देखते हो तो वो तुम्हे पत्थर की आकृति ही लगता है’, ठीक वैसे ही आकाश में बहने वाले ये अनन्त उल्का पिंड भी ऐसे ही उसी का रूप है।

हे मनुष्यो संसार मे वो सत्य नही जो तुम देखते हो, बल्कि जो तुम नही देख पाते वही सत्य है, आत्मा एक सत्य है, व कर्म अनुसार दंड व सुख को प्राप्त करती है किंतु तुम केवल भौतिक देह को देखते हो, आत्मा के कष्ट व सुख को नही देख पाते, ऐसा इसलिए क्योंकि तुम इसे ही सत्य मानते व समझते हो।
हे मनुष्यों ईसी प्रकार जैसे नरक तुम अपनी इन आँखों से आधुनिक तकनीक के माध्यम से देख सकते हो वैसे ही इन सबके बाद मेरे परमधाम व स्वर्ग का रास्ता नज़र आता है किंतु उसे तुम आध्यात्मिक शक्ति से ही देख सकते हो।

हे मनुष्यों यद्दपि तुमने ब्लैक होल के विषय मे सुना है वैसे वाइट होल है जिससे हो कर जीवात्मा मुझ तक अथवा स्वर्ग तक जाती है।

हे मनुष्यों य न भूलो की में आत्माओ का महासागर हूँ, श्रष्टि का पहला तत्व हूँ, मै ही शुरुआत व अंत हूँ, जिसे तुम शुरुआत व अंत कहते हो वो तो मात्र वैसी ही प्रक्रिया है जैसे तुम रोज रात को सोते और सुबह उठ कर पूरे दिन नित्य कार्य कर के पुनः सो जाते हो और पुनः फिर प्रातः उठ कर निम्न कार्य करते हो, और ये जीवन चक्र चलाते हो।

हे मनुष्यों यद्दपि ये तुम सबके लिए कठिन है किँतु निरन्तर अभ्यास व प्रयास  से ये सम्भव है, यदि इस ज्ञान को तुम दैनिक जीवन मे उतार सके तो निश्चित ही अनन्त दुखो से मुक्त हो कर परम् सुख को प्राप्त होंगे।

कल्याण हो