Wednesday 9 October 2019

ईश्वर वाणी-278 वास्तविक पूँजी



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम इन भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते हो, इस भौतिक काया को ही सत्य मानते हो, और इसलिए तुम उस वस्तु को ठुकरा देते हो जो बहुमूल्य है और वो है नेकी।

यद्धपि तुम में से बहुत से व्यक्ति कहेंगे कि हम इतना दान पुण्य करते हैं तो यही तो नेकी है, लेकिन हे मनुष्यों मेरी दृष्टि में ये ही सिर्फ नेकी नही है, सबसे बड़ी नेकी तो वो है जब तुम अपने अहंकार का त्याग कर सबको समान समझो, इन भौतिक वस्तुओं का मोह न कर केवल अपने व्यवहार और वाणी पर संयम रख कोई ऐसी बात न करो जिससे किसी निरीह, दुःखी, , गरीब, बेसहारा अथवा पिछड़ा व्यक्ति और दुःखी हो, 
  हे मनुष्यों तुम तो कह कर बहुत कुछ चले जाते हो, तुम अपने भौतिक संसाधनों व भौतिक वस्तुओं के घमंड में आ कर और उक्त व्यक्ति भी दुःखी हो कर आगे की ज़िंदगी जी ही लेता है लेकिन तुम जो बहुमूल्य वस्तु को अपने व्यवहार और वाणी के माध्यम से खोते हो वो तुम नही जानते।
  श्मशान अथवा कब्रिस्तान ऐसी जगह है जो इस भौतिक देह की एक मात्र मंज़िल है, भले तुमने जीते जी बहुत पैसा कमाया और अपनी स्तिथि वाले लोगों को ही मित्र व संबंधी बनाया, लेकिन जब इस भौतिक शरीर की वास्तविक मंज़िल आयी तो तो कौन तुम्हारे साथ आया,  आये तो तुम उसी मरघट पर जहाँ एक भिखारी भी आया जब उसकी भौतिक देह की मंज़िल आयी, एक संत भी आया जो उम्र भर मेरी आराधना करता रहा, राजा और ज़मीदार भी आया जो उमर भर भौतिक संसाधनों का सुख भोगते रहे, और यहाँ तुम भी आये जब तुम्हारे भैतिक देह अपनी वास्तविक मंज़िल की तलाश में चली।

  ऐसे में तुम्हारी आत्मा पूछेगी की आखिर मैं उमर भर किसका घमंड करता रहा जो मेरा था ही नहीं, ये भौतिक संसाधन जिनके लिए ये ज़िन्दगी गुज़र दी आज मेरे घर वाले और सम्बन्धी इसका उपभोग कर रहे हैं, ये भौतिक देह इसका घमंड था ये आज बेबस इस भूमि में पड़ी हुई है, और मेरे साथ क्या है??  मैंने जो अपनी वाणी और कर्मो से दूसरों का दिल दुखाया उनके आँसू और बददुआ है, मेरे जाने अनजाने में किये मेरे कर्म मेरे साथ है, अगली यात्रा मेरी कैसी होगी अब मुझे नही पता लेकिन अच्छा व्यवहार रखा होता मैंने और भौतिकता का घमंड नही किया होता तो आज मैं उस सुख से वंचित न होता जो इस भौतिक देह को त्याग कर प्राप्त होता है, साथ ही श्रेष्ठ जीवन व परम् सुख से वंचित न होता।
हे मनुष्यों ये न भूलो ये भौतिक जीवन बहुत ही छोटा है, ये तुम्हारे विद्यालय की उस परीक्षा के समान है जिसको उत्तीर्ण करने पर तुम अगली कक्षा में प्रवेश करते हो, और यदि एक ही कक्षा में बार बार अनुतीर्ण होते हो तो परीक्षा से व कक्षा से बाहर निकाल दिए जाते हो, और यदि उत्तीर्ण भी होते हैं परीक्षा में तो तुम्हारे नंबर निश्चय करते हैं कि अगली कक्षा में क्या स्थान होगा।

  यही जीवन-मृत्यु की यात्रा है, इसलिए जैसे विद्यालय की परीक्षा की तैयारी तुम करते हो वैसे ही अपने भौतिक स्वरूप,भौतिक संसाधन,भौतिक संबंधों का मोह न कर केवल मेरा मोह करो,घमंड करना है तो मेरे स्वरूप का करो,ताकि तुम अपनी अगली यात्रा को बेहतर कर उस सुख को प्राप्त कर सको जो परम है और यही आत्मा की वास्तविक पूँजी है न कि ये भौतिकता।“

कल्याण हो

Thursday 3 October 2019

आज की देशभक्ति-एक लेख


आजकल भारत पाकिस्तान का मसला मीडिया पर खूब छाया हुआ है, इस साल 14 फरबरी 2019 में जब हमारे वीर सेनिको पर आतंकवादियों ने हमला कर मौत की नींद सुला दिया था तब भारत के लोगों में यकायक देश भक्ति देखने को मिली, ठीक वैसा ही मैंने महसूस किया जैसे 16 दिसम्बर 2012 को निर्भया गैंगरेप के बाद अचानक लोगों का ज़मीर जाग उठा था कि अब ये और नही, लेकिन हुआ क्या?? हालत आज भी वैसे ही है जैसे पहले थे, वही हाल मैंने ऐसे देश भक्तो का देखा।
भारत हो या पाकिस्तान जब भी इन देशों में बात एक दूसरे की आती है तो हर तरफ देशभक्ति देखने को मिलती जैसे सिर्फ इसी नामसे लोगो का ज़मीर जागता है बाकी तो सोता रहता है, इसी का फायदा हमारे राजनीतिक लोग 70 साल से फायदा लेते आये हैं और कोई शक नही लेते रहेंगे, लेकिन आज बात राजनीतिक लोगो की नही हमारे देशभक्त लोगो की है और जो भारत-पाकिस्तान दोनों के नागरिकों के लिए बराबर है।
मेरी एक मित्र है पाकिस्तानी, जब 14 फरबरी 2019 को आतंकियों द्वारा वीर सेनिको को शहीद कर दिया तो मेरी एक हिंदुस्तानी मित्र ने कहा कि किसी पाकिस्तानी से कोई रिश्ता नही रखना है, अपने पाकिस्तानी मित्र का फोन नंबर ब्लॉक कर दो, मैंने उसको कहा कि मुझे ये पता ही मुझे क्या करना है और किसी की सलाह नही चाहिये, करने वाले गलत काम तो दूसरे है इसमें सभी को एक सी नज़रो से नही देखना चाहिए, इस पे मेरी भारतीय मित्र ने मुझे गद्दार बोल कर ब्लॉक कर दिया व्हाट्सएप पर, फिर 28 फरबरी 2019 को मेरे बड़े भाई की अचानक मौत हो गयी, मैंने अपनी इसी हिंदुस्तानी मित्र को फ़ोन करके बताया,मेरे घर पर मेरे अतिरिक्त कोई नही था, माता-पिता और छोटा भाई अस्पताल में थे बड़े भाई साहब के पास, तब मेरी इस हिंदुस्तानी हिन्दू मित्र जिसका नाम "रजनी मुंद्रा" है इसने कहा कि अब पता चला?? मुझे हैरानी हुई ये सुन कर और मतलब क्या था इस शब्द का आप खुद सोच सकते हैं, ये वही महिला है जिसके परिवार ने इसका साथ नही दिया था जब इसको उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी क्योंकि इसने घर वालो के खिलाफ जा कर आशीष मुंद्रा से शादी की थी, और वो शख्स भी शादी के बाद इसको टॉर्चर करता था, मेरे भाई ने कहा था जिसकी मौत हुई कि मैं उसको अपने घर ले आऊंगा क्योंकि वो मेरी बहन है अगर उसके ससुराल वालो ने टॉर्चर जारी रखा तो, साथही जब वो माँ बनी एक लड़के की तब भी मेरे माता पिता ने उसके माता बन कर सारी रस्मे निभाई जबकि उसके सगे माता पिता आये तक नही।
मुझे याद है जब मेरी उससे दोस्ती हुई थी तब उसके पास खाने को भी नही होता था,न ठीक से पहनने को कपड़े थे, और हमारे पास सब कुछ था, बावजूद इसके सिर्फ इंसानियत के आधार पर बिना भौतिक वस्तुओं को तवज़्ज़ो देते हुए उससे दोस्ती निभाई, लेकिन आखिर में उसके शब्दो ने दिल पर उस बम से भी ज्यादा घाव दिए जिसमे बेगुनाह लोग मर जाते हैं।
वही मेरी पाकिस्तान की मित्र जिन्होंने सुबह से मेरा साथ दिया जबसे भाई की हालत नाजुक की खबर उन्हें दी, फिर भाई साहब की मौत की खबर उन्हें दी,उन्होंने ही मुझे बताया कि सफेद कपड़े बिछा के रखो आँगन में, घर की साफ सफाई कर लोगो बैठने शोंक दिखाने की जगह बनाओ, फिर मैंने वही किया, मुझे घर पर कोई कुछ बताने वाला नही था कि क्या करना है लेकिन पाकिस्तानी मित्र मुझे फ़ोन पर सब बताती रही साथ ही हौसला देती रही।
इसके साथ ही मैंने अपने सभी मित्रों को ये खबर दी और वक्त के साथ समझ आया न तो दोस्त होते हैं दुनिया मे न दोस्ती, सब मतलब के लोग हैं, और जो खुद को देशभक्त कहते हैं दरअसल ये देश के तो क्या इंसानियत के दुश्मन है, मैंने महसूस किया कि जो लोग सेनिको की सहादत पर हाय तौबा मचाते है वो कितना डोनेट करते हैं किसी सैनिक के परिवार को उसकी सहादत पर?? क्या किसी शहीद सैनिक के बच्चे की पढ़ाई का खर्चा उठाया है इन्होंने जो बात करते हैं देश भक्ति की।
देश केवल सीमाओं से नही लोगो से बनता है अन्यथा ये सिर्फ एक ज़मीन का टुकड़ा है, कितने लोग हैं जो खुद को देश भक्त कहते हैं और जब किसी को मुश्किल में देखते हैं तब चाहे कितने ही व्यस्त क्यो न हो मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं, कहते हैं लोग की देश पहले है और बाकी सब बाद में, लेकिन मेरा सवाल है बिना इंसानों के कौन सा देश होता है, जब तुम इंसान की और अपने देश मे रहने वालों की कद्र नही करोगे, उनके दुख सुख में काम नही आओगे तो कैसा देश कैसी देधभक्ति, असल मे खुद को देशभक्त कहने वाले सब के सब गद्दार है देश के और इंसानियत के।
आज जब भी कोई मुझे देशभक्ति की बात कहता है तो हँसी आती है, मन बस यही सवाल करता है कि देशभक्ति है कहाँ??एक कवि की कविता में ही देशभक्ति है, एक लेखक की कहानी में ही देशभक्ति है, सिर्फ किस्से कहानियों में देशभक्ति है, कल्पना में देशभक्ति है, बाकी तो लोग खुद को ही धोखा देते हैं देशभक्त बोल कर, क्योंकि देश सिर्फ एक ज़मीन का टुकड़ा नही है, देश बना है मुझसे तुमसे हम सबसे, और अगर तुम मेरे काम नही आ सकते, मेरे आंसू नही पोछ सकते तो तुम सब देशद्रोही हो अथवा देश नही सिर्फ उस जमीन के टुकड़े के भूखे हो जहाँ भारतीय सभ्यता जो प्रेम पर आधारित थी इसका जन्म हुआ था
जय भारत
Archana Mishra

Sunday 4 August 2019

मेरी कलम से

"**कहने को तो यहाँ बहुत मेरे हमसाये है
कहते हैं बड़ी किस्मत तुम्हें हम पाए है
पर जब मुड़ कर देखते हैं ए ज़िन्दगी तुझे
दोस्त की जगह यहाँ दुश्मन ही हम पाए है**"


"+*+*दोस्त तो होता है वो जो दोस्ती के लिए कुछ कर गुज़र जाए,
जो गिर जाए एक तो दूजा संभाले उसे या खुद गिर जाए
बस खुद को दोस्त कहने से नही कोई दोस्त हो जाता यहाँ
दोस्त वो है जिसके आने से ज़िन्दगी के हर रिश्ते बदल जाये*+*+"

मेरी कलम से "दोस्ती"

 

           सुना है दोस्ती बहुत खूबसूरत रिश्ता है, ये वो रिश्ता है जिसे इंसान खुद बनाता है क्योंकि कुछ रिश्ते हर मनुष्य को जन्म के साथ मिलते हैं लेकिन दोस्ती ही ऐसा रिश्ता है जिसे इंसान खुद बनाता है, चूँकि इंसान एक सामाजिक प्राणी है इसलिए दोस्ती का रिश्ता बनाना हर किसी के लिए आवश्यक है।

कहते हैं जब अपने साथ छोड़ देते हैं तब दोस्त काम आते हैं, लेकिन आधुनिक समय मे क्या ये बात सत्य है, मुझे लगता है नही, समय के साथ दोस्ती के मायने भी बदल गए हैं, आज दोस्त कृष्ण सुदामा अथवा कर्ण दुर्योधन जैसे नही रहे जो अपने मित्र के लिए किसी भी हद तक जा सके, मित्रता चाहे पुरुषो की की पुरुषो से हो अथवा महिला की महिला से अथवा पुरुष व महिला की, आज मित्रता केवल स्वार्थ पर निर्भर है, आज दोस्ती व्यक्ति उसी से करता है जिससे उसको कोई लाभ मिलता है ये लाभ कैसा भी हो सकता है जैसे-पैसों का, ताकत का, अपना रुतबा दिखाने का इत्यादि इत्यादि।
आज के लोग बात बात में 'मेरे दोस्त'  'मेरे भाई' 'मेरी बहन' जैसे शब्द का उपयोग तो कर देते हैं पर सच मे उस रिश्ते की अहमियत भी पता है, जाहिर सी बात है नही क्योंकि हमें किसी रिश्ते की गहराई से मतलब नही मतलब तो है सिर्फ अपने स्वार्थ से।

अगर मैं अपनी ही बात करु तो कुछ महीने पहले मुझे ये गलतफहमी थी कि मेरे काफी अच्छे मित्र हैं जो मेरे दुःख-सुख में मेरे साथ रहते हैं, यद्धपि मैंने उनके साथ मित्रता काफी अच्छे से निभाई, और अगर मेरे मन मे उनके लिए सच बोलू तो बोरियत हुई भी तो मेरे भाइयों ने मेरी माँ ने रिश्तों की अहमियत का हवाला देते हुए दोस्ती निभवाई लेकिन जब मेरे मित्रों की बारी आई कि वो दोस्ती निभाये तो सब पीछे हट गए।

खेर मुझे तो ईश्वर ने आध्यात्मिकता से जोड़ा हुआ है, इसलिए कोई शिकवा नही किसी से क्योंकि ये सब माया है, सब माया के जाल में फसे है, सब सिर्फ इस भोतिकता को ही सच मानते हैं और इसी के अनुसार व्यवहार करते हैं, ये दुनिया भी कर्मप्रधान ही है इसलिए सब अपना कर्म करते हैं चाहै अच्छा हो या बुरा।

लेकिन ज़िन्दगी के अनुभव और कर्म प्रधान इस समाज को देख के मैंने जाना है इस दुनिया मे कोई भी रिश्ता सच्चा नही है, सब रिश्ते नाते झूठे है और आपकी कामयाबी के साथ ही खड़े हैं, अगर कही भी आप असफल होते हैं तो जो खुद को कितना अज़ीज़ बोले, करीबी लोग ही ऐसे आपसे दूर जाते हैं जैसे जहाज डूबता है तो चूहे भागते हैं पहले वैसे ही।

अगर बात की जाए एक सच्चे मित्र की जो हर पल आपके साथ चलता है तो वो है सिर्फ ईश्वर, वो कल भी था वो आज भी है और कलभी रहेगा जबकि न ये इंसानी रिश्ते पहले थे आज भी कब पीछे छूट जाए कुछ पता नही और आने वाले वक्त में तो होंगे ही नही,इसलिए मुझे अब किसी इंसान की मित्रता में कोई रुचि नही रही, सभी रिश्ते सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ की डोर से बंधे है।।

Archana Mishra

Friday 19 July 2019

मेरी कलम से


"मुझे ये समझ नही आता जो लोग खुद को ईश्वर, अल्लाह, गॉड का परम भक्त कहते हैं वो ईश्वर में भेदभाव कैसे कर सकते है और ईश्वर के भक्त अल्लाह कहने वाले को नीचा दिखाते हैं, गॉड कहने वाले अल्लाह और ईश्वर कहने वाले को नीचा दिखाते हैं।
कोई रामायण पर यकीन करता है वेदों पर करता है तो कुरान और बाइबिल को गलत ठहरता है, मुझे ये बताये क्या किसी वैदिक ग्रंथ में ये लिखा है कि बाइबिल गलत है अथवा कुरान गलत है।
यद्धपि कुरान और बाइबिल में निराकार ईश्वर की उपासना को श्रेष्ठ बताया गया है लेकिन वैदिक वेदों में भी निराकार ईश्वर की उपासना को ही श्रेष्ठ बताया गया है, कई हिन्दू पूजा साधना आराधना में यंत्र का उपयोग होता है ईश्वर के, ये यन्त्र भी तो निराकार ईश को ही दर्शाते हैं।
ये न नही भूलना चाहिए जो नवीन धर्म/मज़हब है (जो मेरी दृष्टि में मज़हब नही सिर्फ एक पंथ निराकार/साकार ईश को मानने वाले, ईश्वर ने एक धर्म बनाया है वो ही मानव धर्म मानव के लिए, बाकी तो पन्थ है उन्हें पाने के लिए जैसे साधनाये 3 तरह की होती है 1-सात्विक, 2-राजसिक, 3-तामसिक, लेकिन तीनो ही तरीके ईश्वर की ओर ले जाते हैं, अपनी अपनी इच्छा और सामर्थ के अनुसार व्यक्ति निम्न भक्ति मार्ग को चुनता है)  सिर्फ प्राचीन ज्ञान का सार मात्र है।
आप लोगो मे बहुत से माता रानी के भक्त होंगे, कई लोग दुर्गा शप्तशती का पाठ करते होंगे लेकिन जो लोग पूरा पाठ नही कर सकते उनके लिए "सिद्ध कुंजिकास्तोत्र" का पाठ करना ही उत्तम व दुर्गा सप्तशती जितना ही फलदायी माना गया है, ठीक वैसे ही प्राचीन वैदिक ग्रंथो व रीति रिवाज़ों के लिए कलियुग में अभाव हेतु नवीन निम्न विचारधाये जन्मी व धीरे धीरे विश्व मे फेल गयी और धीरे धीरे लोग प्राचीन वैदिक बातो को भूल गए और शीघ्र फलदायी ईश्वर की निम्न उपासना व सार को ही सत्य मानने लगे क्योंकि हर कोई शीघ्र परिणाम चाहता है इसलिए।
और ऐसा नही है कि प्राचीन वैदिक ज्ञान केवल भारत का ही सही है क्योंकि ईश्वर ने भारत ने पूरी पृथ्वी बनाई है, इसलिए भारत के वैदिक ज्ञान के साथ पूरे विश्व के प्राचीन ज्ञान को समझना होगा यकीन करना होगा।
साथ ही लोग जो धर्म व ईश्वर अल्लाह गॉड के नाम पे लड़ते हैं वो सब अनाड़ी अथवा मूर्ख अथवा अज्ञानी है क्योंकि जिस व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान होगा वो गॉड में अल्लाह ईश्वर में गॉड और अल्लाह में ईश्वर को देखेगा न कि उनकी आलोचना करेगा व धर्मिक पुष्तक व अराधनलयो को नुकसान पहुचायेगा ।
यहाँ एक बात और जानने योग्य है कि जो नवीन पन्थ के अनुयायी है व नवीन धार्मिक पुष्तक है उनकी जो बातें हैं वो उस समय व आज के समय को कुछ हद तक ध्यान में रख कर कुछ नवीन बाते बोली गयी है जो उस स्थान जहाँ ये ग्रंथ लिखे व उतपन्न हुए वहाँ के हालातों को ध्यान में रख कर लिखे गए, इसलिए किसी धार्मिक ग्रंथ की आलोचना व्यर्थ है किँतु उनके सार को देखे जो एक है जो परम् सत्य है जो ईश्वर से जोड़ता है।।"
जय माता दी
Archana Mishra

ईश्वर वानी-276, ईश्वर को जानना



ईश्वर कहते हैं, " यद्धपि तुम मुझे यहाँ वहाँ ढूंढते हो, लेकिन तुम मुझ परमात्मा का एक अंश हो इसलिए मैं तुम्हारे अंदर ही हूँ, तुम केवल भौतिकता को देखते और सत्य मानते हो किंतु जो भौतिक है वो सत्य नही।


ये न भूलो जो भौतिक है भले ये असीम ब्रह्मांड ही सही सब नाशवान है किँतु जो दिखता नही वही सत्य है जैसे तुम्हारी आत्मा दिखती नही किंतु वही सत्य है,
जैसे धरती पर प्राणवान वायु दिखती नही किन्तु उसके बिना जीवन संभव नही जैसे तुम्हारे शरीर की शक्ति दिखती नही किंतु यदि न हो तुम्हारे अंदर तो तुम हिल तक न सकोगे।


हे मनुष्यों यद्धपि देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप मेरे ही अंशो ने धरतीपर जन्म लिया और मानवता की पुनः नीव रखी जब जब मानवता का ह्रास का हुआ।


यद्धपि मेरे ही अंशो द्वारा तुम्हें निम्न ज्ञान दिया हो किंतु प्राचीन ज्ञान का सार मात्र है ये नवीन ज्ञान किंतु यदि तुम मेरे और अपने विषय मे और अधिक जानना चाहते हो तो आध्यात्म के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व के समस्त नवीन व प्राचीन घ्यान व धार्मिक पुस्तकों को का अध्ययन करो व विश्वास करो न कि सिर्फ उस एक पुष्तक का जिसके तुम अनुयायी हो क्योंकि मैं इतना छोटा नही कि अपनी बातें सिर्फ एक दो तीन पुष्टको में सिमट के रह जाऊ ।


हे मनुष्यों इस तरह तुम कुछ हद तक मेरे विषय मे जान सकते हो, ये न भूलो संसार का कोई भी ज्ञान असत्य नही और न ही नवीन न ही प्राचीन।।"


कल्याण हो


Archana Mishra

ईश्वर वाणी-275,जीवन मृत्यु की सच्चाई.

ईश्वर वाणी-जीवन मृत्यु की सच्चाई..                               ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मृत्यु लोक के विषय मे सुना होगा, अधिकतर मनुष्य इस धरती को ही मृत्यु लोक समझते हैं, किंतु आज तुम्हे कुछ विशेष बात बताता हूँ, मृत्यु कई प्रकार की व मृत्यु लोक भी कई प्रकार के होते हैं।

यद्धपि मनुष्य समझते हैं पृथ्वी ही मृत्यु लोक है किँतु पृथ्वी ही नही अपितु समस्त ब्रह्मांड ही भौतिक काया का मृत्यु लोक है, क्या तुम सोच सकते हो ब्रह्मांड के किसी छोर पर जा कर तुम अमर हो सकते हो अपनी भौतिक काया के साथ अथवा कोई ग्रह नक्षत्र तुमने ढूंढ लिया है जिसपे रह कर तुम अमर हो सकते हो यद्धपि तुम ब्रह्मांड की गहराई व अनेक ग्रह नक्षत्र पर भ्रमड भले कर लो किंतु अमर कही नही और एक दिन मृत्यु तुमको आनी ही आनी है,
इसलिए तुम इस धरती को ही नही अपितु पूरे ब्रह्मांड को ही इस भोतिकता के लिए मृत्यु लोक समझो क्योकि जी दिखता है वो भौतिक ही है और जो नही दिखता वो अभौतिक है, जो भौतिक है वो नाशवान अवश्य है।
हे मनुष्यों तुम्हे मैंने अनेक प्रकार की मृत्यु के विषय मे ऊपर बताया, प्रथम प्रकार की मृत्यु तो तो तुम्हे ऊपर पता चल ही गयी, किंतु संछिप्त में अन्य मृत्यु के बारे में बताता हूँ 
यद्धपि कर्मानुसार हर जीवात्मा जन्म लेती है, साथ ही अनेक कर्म अनुसार हर जीवात्मा स्वर्ग, नरक व ईश्वसरिये लोक को प्राप्त करती है भौतिक देह के नष्ट होने अथवा त्यागने के बाद,
किँतु हर जीवात्मा जब भी कोई नया जीवन लेती है तो उसको अपना निम्न स्थान त्यागना होता है, इस प्रकार उसके पुराने कर्मो के अनुसार उसका समयफल पूर्ण हुआ और इस तरह नए भौतिक जीवन व अन्य लोक में किसी और स्थान की प्राप्ति हेतु तुम्हे जाना पड़ा तब तुम्हारी इस अवस्था मे पहली अवस्था का तुम्हारे द्वारा त्यागना ही तुम्हारी मृत्यु हुई, इस तरह भौतिक देह के त्यागने के बाद भी तुम मृत्यु को भोगते रहते हो, जन्म लेते रहते हो और मृत्यु प्राप्त करते रहते हो।

हे मनुष्यों ये पूर्ण सत्य है कि इस भौतिक संसार से परे एक पारलौकिक संसार है, ये इतना विशाल है कि तुम कल्पना तक नही कर सकते, तुम्हारी भौतिक काया के त्यागने के बाद तुम इसमे प्रवेश करते हो व नया जीवन पाते हो लेकिन हर जीवन से पहले मृत्यु आवश्यक है ठीक वैसे ही जैसे किसी पद की प्राप्ति हेतु पुराना पद त्यागना पड़ता है वैसे ही नए जीवन मे आने से पहले पुराने को छोड़ना पड़ता है, यही सच्चाई है संछिप्त में जीवन और मृत्यु की, उम्मीद है तुम्हे समझ आयी होगी।"

कल्याण हो

Archana Mishra