Sunday 10 November 2019

चन्द अल्फ़ाज़

"हर पल क्यों ये अहसास तुम्हारा है
लगता है जैसे तुमने हमे पुकारा है
पता है हमें मोहब्बत नही तुम्हे हमसे
फिरभी क्यों इस दिलमे नाम तुम्हारा है"🙏🙏🙏🙏
"हे ईश्वर मुझे हर उस चीज़ से दूर रखना जो मुझे आपसे दूर करती है"
मेरे दिलमे रहना धड़कन बन कर
ज़िस्म में रहना रूह बन कर

न मुझे खुद से कभी जुदा करना
सदा रहना मीरा के श्याम बन कर"

क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं-कविता

"क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं
लगता है किसी की यादों में खोने लगे हैं

ये असर शायद मोहब्बत का ही है
लगता है जैसे किसीकेअब होने लगे हैं

खुश रहते हैं अब तो साथ तेरे ही हम
बिन तेरे बस अकेले में हम रोने लगे हैं

ख्याल ज़हन से जाता नही अब 'खुशी' का
'मीठी' बातों से इश्क के बीज बोने लगे हैं

दिल में थे जो छिपे अरमान जुबा आ
रुक-रुक कर बस कुछ यही कहने लगे है

भूल जाये दुनिया दारी सारी आज बस
क्योंकि ऐ हमनशीं अब तेरे हम होने लगे हैं"


🙏🙏🙏🙏

ये कैसा काफिला है-कविता

"ये कैसा काफिला है

छाई खामोशी है

ठंडी है ये राते

कैसी ये मदहोशी है


रूह की पुकार है

लबों पर खामोशी है

ये काफिला है इश्क का

मोहब्बत की मदहोशी है


जुनून है तुझे पाने का

पर तेरी रज़ा पर खामोशी है

है अब हर मौसम रंगीन सनम

तेरे ऐतबार की मदहोशी है"

 शुभ रात्रि🙏🙏

कविता-कहते कहते हम रुकने लगे हैं

"कहते कहते हम रुकने लगे हैं

शायद रास्ते से भटकने लगे हैं

मंज़िल क्या थी हमारी यारो

 इन गलियो में उन्हें ढूंढने लगे हैं


ढूंढते हैं तेरे ही निशाँ यहाँ हम

देख तू बिन तेरे हम रोने लगे हैं

ठुकराया तूने हमे दिल खोलकर

पर दिलसे तेरे ही हम होने लगे हैं


सुना है अब वो बदलने लगे हैं

कहते कुछ करने कुछ और लगे हैं

शायद कसूर उनके मिज़ाज का है

छीन कर चेन कैसे वो सोने लगे हैं


हम तो याद में उनकी जागने लगे हैं

पर अब हमसे दूर वो भागने लगे हैं

है पता हज़ारो है उनके चाहने वाले

फिर भी करीब उनके जाने लगे हैं


वो दूरिया उतनी ही अब बनाने लगे हैं

हर दिन फिर नए बहाने बनाने लगे हैं

मासूम चेहरा दिखा कर फिर रूठते है

इन्ही अदाओ से तो हमे लुभाने लगे हैं"

Sunday 3 November 2019

हिंदू क्या है, सचमुच क्या हिंदू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है-लेख

आज कल जब देखें लोग ‘हिंदू हिंदू’ का राग अलापते रहते हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदू धर्म बस इन्होंने ही बचा रखा, ऐसे लोगो को हिंदू का मतलब बस चंद मन्दिर व मूर्ति पूजा के अतिरिक्त कुछ नज़र नही आता। इन लोगो को नही पता वाकई में हिंदू है क्या??

‘हिन्दू’ शब्द मुस्लिम शाशकों से भारतीयों को मिला, उन्होंने ही यहाँ के लोगों को हिंदु बोलना शुरू किया और आज के समय मे ये इतना प्रचलित हो चुका है कि हर गैर मुस्लिम व गैर मूर्ति पूजक खुद को हिन्दू कहता है।

हिन्दू शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ये हमने अपने आद्यातमिक लेख विस्तार से लिखा है लेकिन आज इसकी जगह हम बताना चाहेंगे और लोगों गुज़ारिश करेंगे कि थोड़ा अतीत में जाये और इतिहास पर भी गौर फरमाएं।

प्राचीन भारत मे सभी लोग एक ही धर्म के अनुयायी थे वो था मानव धर्म, कुछ लोग कहते हैं ये सनातन धर्म था जो अति प्राचीन है, लेकिन ये सत्य नही है, यदि आप युग व्यवस्था में यकीन करते हैं तब आपको सतयुग में यकीन करना होगा क्योंकि उस समय न कोई मन्दिर होते थे न कोई पुजारी, समाज की व्यवस्था पूरी तरह परमात्मा के अनुसार चल रही थी, उस समय कोई सनातन धर्मी नही थाहाँ मानव धर्म अवश्य था जो प्रेम, सदाचार, दया, शांति, संतुष्टि, सदभाव के साथ ही उस निराकार परमात्मा पर यकीन करती थी साथ ही अपने परिवार पड़ोस आदि को भी ईश्वर तुल्य समझ सभी एक दूसरे के लिए पूजनीय थे तभी वो युग सतयुग था, सतयुग अर्थात सत्य का युग, एक ऐसा युग जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक नवजात शिशु के समान निश्छल था साथ ही उस समय पुरी पृथ्वी अर्थात भूमि यू अलग अलग दीप व महादीप में बटी नही थी, इसलिए ये भी कहना गलत होगा कि ये सब भारत मे था क्योंकि उस समय न कोई देश था न ही कोई राज्य और जीवो को एक दूसरे की भावना और ज़ज़्बातों को पहचानने के लिए भाषा की जरूरत भी नही होती थी, लोग स्वतः ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे, इसलिये वो युग सतयुग था और कहते ईश्वर उस समय यहाँ रहते थे, उस समय के व्यक्तियों में उनके सात्विक तत्व जाग्रत रहते थे और उनमें शैतानी तत्व नही थे।

लेकिन समय के साथ व जलवायु परिवर्तन के साथ जैसे जैसे दीप और महदीपो का निर्माण होने लगा उसमे कई मनुष्य व जीव जंतु मारे जाने लगे, और लोग दीपो व महदीपो के निर्मान के अनुसार पूरी दुनिया मे बिखर कर फैल गए, समय के साथ लोगो ने अपने अनुसार अपनी शक्ति के माध्यम से देवी देवताओं की कल्पना कर उनकी उपासना शुरू कर दी, और उनकी जो पीढ़ी तैयार होती गयी वो अपने अंदर ईश्वरीय तत्व को भूल अपने परिजनों द्वारा बताए निम्न देवी देवताओं किहि उपासना करने लगी, लोगों ने कुछ बाते अपने पुस्तको में लिख दी जो दैवीय शक्ति द्वारा कुछ उन्हें बताई गई तो कुछ उनकी कल्पना मात्र थी, हालांकि उनकी भक्ति व शक्ति के आधार पर उस निराकार ईश्वर को मनुष्य की कल्पना हेतु देश, काल और परिस्तिथि के अनुसार जन्म भी लेना हुआ और इस तरह विश्व के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई।

अब हिन्दू वादी ये कहे कि संसार का पहला धर्म हिंदू या सनातन था गलत है, हिन्दू धर्म नही बल्कि संस्कृति है, धर्म एक मत पर और एक किताब पर चलता है, संसार मे जितने उसके मानने वाले है सबका एक ही त्योहार होता है, भाषा भी मुख्य वही होती है जिसके वो अनुयायी है, लेकिन यहाँ हिन्दुओ की बात की जाए तो हर एक क्षेत्र में लोगो के रीति रिवाज यहाँ तक कि धार्मिक ग्रंथों में भी अंतर मिल जाता है, आज भी प्राचीन काल की तरह ही उत्तर भारत के लोग खुद को श्रेष्ठ समझते हैं वही दक्षिण भारत के खुद को, भाषा, खानपान, रीति रिवाज आदि के अनुसार पूरा हिंदू समुदाय बिखरा पड़ा है, ऐसा इसलिए क्योंकि हिन्दू धर्म नही संस्क्रति है, इतना भेद सिर्फ संस्कृतियों में ही हो सकता है, पर यहाँ ये बात जरूर महत्वपूर्ण है कि विश्व की लगभग लुप्त हो चुकी संस्कृतियो में ये आज भी अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं,  जैसे प्राचीन रोमन सभ्यता व संस्कृति जो अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है वही आज भी सनातन संस्कृति अपना वजूद कायम करे हुए हैं, इसका कारण ये भी एक है कि इतनी भिन्नता के बाद भी ये समय के साथ खुद को परिवर्तित करती रही साथ ही प्राचीन तत्वों को भी साथ ले कर चलती रही और आखिर मुस्लिम व विदेशी शाशको ने इसको एक कर एक धर्म बना दिया जिसे आज हम और आप हिंदू कहते हैं।

हम अपने वेदों पर बहुत नाज़ करते हैं और धर्म ग्रंथो पर बहुत नाज़ करते हैं और करना भी चाहिए क्योंकि इसलिए नही की ये ही सत्य है इसकी बात ही सत्य है, इसके अनुसार जो ईश्वर के जन्म व लीलाये हुई वोही सत्य है बल्कि इसलिए नाज़ करना चाहिए क्योंकि विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में ये आज भी जीवित है, संसार के परिवर्तन के बाद भी ये अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं इसलिए ये कीमती है, अन्यथा ईश्वर ने मानव कल्पना अनुसार हर उस स्थान पर लीलाये की व धर्म ग्रंथ लिखे गए जहाँ-जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण मनुष्य दीपो और महदीपो की सुनामी में बह कर दुनिया के कोने कोने में फैल गया था।
यहाँ ये भी जानने योग्य बात है कि आदि सतयुग व सतयुग में कोई भी धर्म ग्रंथ वेद पुराण नही लिखे गए थे, इनकी जरूरत तब पड़ी जब सतयुग समाप्ति पर था, जलवायु परिवर्तन जोरो पर हो रहा था, एक ही धरती जब टूट कर अनेक दीपो व महदीपो में बदल रही थी, मनुष्य व जीव मर रहे थे, तब समस्त जीवों की इच्छा शक्ति से उस निराकार ईश्वर द्वारा मार्ग पूछने पर इनकी रचना हुई, और और उस दैवीय निराकार शक्ति को साकार रूप ले कर जीव जाती की रक्षा हेतु आना पड़ा किंतु ये भारत की भूमि में ही हुआ ये गलत धारणा है ये हर उस भूमि में हुआ जहाँ मनुष्य व जीव जीवित बचे और उन्होंने उस परमात्मा से अपनी रक्षा हेतु पुकार लगाई, तभी आप देखना प्राचीन यूरोपीयन ईतिहास वहाँ भी सूर्य पूजा, अग्नि पूजा, पशु पूजा, इंद्रा पूजा आदि होती थी, कई देवी देवताओं की पूजा होती थी, ऐसा संसार के हर दीप समूहों में रहने वाले मनुष्य करते थे, मूर्ति पूजा का विधान पूरी दुनिया मे प्रचलित था, यहां तक कि मुस्लिम देश जो आजके है वहाँ भी मूर्ति पूजा होती थी।
विश्व के कोने कोने में देश, काल और परिस्तिथि अनुसार परमात्मा ने लीलाये की व धर्म ग्रंथो की रचनाएं हुई और सभी सत्य है, इसलिए हिन्दू खुद को सबसे पहली संस्क्रति व प्राचीन व प्रथम धर्म कहना बन्द करे हाँ गर्व जरूर करे क्योंकी वो उस संस्कृति का हिस्सा है जो सदियों से कायम है और हम सबके नेक प्रयासों से कायम रहेगी किंतु साथ ही जो नवीन मतानुयायी है उनका भी सम्मान करें क्योंकि सबका सम्मान करना है यही सनातन सभ्यता व संस्क्रति का एक हिस्सा है।।

Tuesday 29 October 2019

ईश्वर वाणी-280, खुद को खुद से जोड़ने की विद्या ही आध्यात्म है


आध्यात्म एक ऐसा विषय जिसके बारे में हम सभी ने सुना है, बहुत से लोग धार्मिक किताबों को पढ़ना, अपने धार्मिक स्थानों पर भ्रमण करना, अपने रीति-रिवाज़ों को मानना ही आध्यात्म समझते व कहते हैं किंतु आध्यात्म है क्या वास्तव में ये कोई नही बता सकता सिर्फ एक योग्य आध्यत्मिक गुरु के, लेकिन वो गुरु सिर्फ एक ही मत को सर्वश्रेष्ठ व उसका ही अनुसरण करने पर जोर देने वाला नही होना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति एक ही धर्म, जाती, भाषा, वेश-भूषा रीति-रिवाज़ को ही श्रेष्ठ बताते हुए अन्य की निंदा करते हैं वो कभी आध्यात्मिक हो ही नही सकते क्योंकि आध्यात्म जोड़ता है न कि तोड़ता है।
एक योग्य आध्यात्मिक गुरु ही हमे आत्म मन्थन की विद्या देता है, ये तो सभी ने सुना है कि हर जीव के अंदर ही ईश्वर रहते हैं, अपने अंदर छिपी दिव्य शक्तियों को पहचान कर उनका प्रयोग जगत के कल्याण में करने हेतु यही कार्य है आध्यात्म का जो पहले खुद को खुद से जोड़ता है।

हर जीवात्मा व मनुष्य में अलौकिक शक्तियां होती है जो एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में जाग्रत हो सकती है, जिससे हम मानुष को पता चलेगा कि उसका ये जीवन इस धरती पर क्यो है, उसका उद्देश्य वास्तव में क्या है, वो जो गलत व्यवहार,गलत चाल चलन, झूठ फरेब व्याभिचार आदि गलत कार्य कर रहा था क्या वो इसके लिए आया है।

लेकिन दुविधा इस बात की है कि आखिर ऐसा गुरु कहाँ ढूंढे, गुरु वो नही जो कोई धार्मिक पुस्तक का पाठ अथवा कथा सुनादे या रटे रटाये मन्त्र बड़बड़ा दे अथवा 4/6 प्रवचन सुनादे, एक सही गुरु इन सबसे ऊपर तुम्हे तुम्हारे समुचित व्यक्त्वि व आने वाले जीवन का साथ ही वर्तमान जीवन को सवार सकता है, और इसके लिए जरूरत है पहले खुद को जानना, खुद के अंदर छिपी शक्तियों को जानना,अपने उद्देश्यों को जानना।

यदि किसी को ऐसा योग्य व्यक्ति गुरु के रूप में नही मिला है तब भी वो एक योग्य गुरु बना सकता है और वो है उसके अपने इष्ट देव जिन पर उसकी आस्था है, व्यक्ति को उन्हें ही गुरु की उपाधि दे कर प्रार्थना करनी चाहिए कि मुझे वो ज्ञान दे जो परम् सत्य है, मुझे मेरी शक्तियों का बोध कराए, मेरे जीवन मे उद्देश्य बताये, मेरे यहाँ होने का कारण बताए, मुझे मुझसे मिलाएं साथ ही उस परम को हर स्थान पर महसूस करे, निःसंदेह एक समय बाद जब तुम्हारा तपोबल बड़ जागेगा और तुम्हारे इस जन्म व पिछले जन्म के पाप जैसे जैसे कम होते जाएंगे तुम्हें आध्यात्म का बोध होता जाएगा क्योंकि तुम खुदको खुदसे ढूंढ लोगे जोकि न किसी सत्संग न प्रवचन और न धार्मिक पुस्तक से हासिल कर सकते हो।

जय माता दी
जय गुरु जी

ईश्वर वाणी-279,जीवन मे आध्यात्म की आवश्यकता

ईश्वर वाणी
हर जीव के अंदर ईश्वर विद्यमान है, किंतु मनुष्य ऐसा एक मात्र जीव है इसमें ईश्वर के साथ शैतान भी विधमान है, मनुष्य को अपने भीतर के राक्षश अथवा शैतान को जाग्रत करने की आवश्यकता नही होती क्योंकि ये तो उसके जन्म के साथ उमर बढ़ने पर खुद ब खुद जाग्रत होने लगता है जबकि उसके अंदर का ईश्वर जो केवल शेशवस्था तक रहता है किंतु शैतानी अथवा राक्षशी तत्व उम्र के साथ और भी अधिक बढ़ता जाता है।

आखिर क्या है इंसानी शैतानी तत्व अथवा राक्षश?? झूठ, फरेब, धोखा, निंदा, व्यभिचार, खून, रक्तपात, धूम्रपान, मदिरापान, मांसाहार, अपनी मर्यादा का उल्लंघन, ईश्वरीय व्यवस्था का उलंघन, भौतिक सुखों में लिप्त रहना, दुसरो को दुखी देख कर खुश होना, सदा अपनी बड़ाई करना, दुसरो को नीचा दिखाना, सदा भौतिक वादी बने रहना, धर्मिक व्यक्ति अथवा धार्मिक स्थान को नुकसान पहुचना, किसी भी धार्मिक ग्रंथ अथवा पुस्तक को नुकसान पहुचाना, इंसान का इंसान से भेदभाव का व्यवहार करना, किसी को बेवजह दुख देना इत्यादि लक्षण है जो इंसान में समय के साथ विकसित खुद ब खुद होते जाते हैं और इस तरह उनके अंदर का ईश्वर उनके शैतानी स्वरूप के समक्ष दब कर रह जाता है।

किंतु आद्यात्म एक एक रास्ता है जिस पर चल कर मनुष्य अपने अंदर के शैतान को मारता है और अपने अंदर के ईश्वर को जगाता जो समय के साथ व्यक्ति की बुराई के आगे मन की गहराई में कही दब कर रह जाते है।

एक योग्य गुरु जो खुद आध्यात्म में पारंगत हो वोही किसी व्यक्ति को उस ओर ले सकता है जो उसका न सिर्फ ये जीवन अपितु अनन्त जीवन सवारने की काबिलियत रखता है, आध्यात्म एक लड़ाई है खुद की खुद से, अर्थात अपनी ही बुराइयों की अपनी ही अच्छाइयों से और इसमें जीत एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही मिल सकती है।

लेकिन केवल सत्संग करने वाला, एक धर्म अथवा मत को सर्वश्रेष्ठ कहने वाला, एकेश्वरवाद का अनुशरण कर केवल अपने ही ईस्ट को श्रेष्ठ बता अन्य को नीचा बताने वाला, निंदा करने वाला, केवल रटे रटाये कुछ धार्मिक पुस्तकों के पाठ कहने वाला कभी आध्यात्म से जुड़ा नही हो सकता अपितु भ्रमित करने वाला जरूर हो सकता है।

 इसलिए योग्य श्रेष्ठ गुरु को ही ढूंढो और अपने अंदर के राक्षस को मार कर अपने अंदर के ईश्वर को जगाओ ताकि कलियुग भी उत्तम सतयुग के समान बन सके।

कल्याण हो