Tuesday 5 May 2020

रोमांटिक शायरी

"मुझमें ऐसे बस गए हो तुम
रूहसे साँसों में उतर गए हो तुम
अब मुझमें 'मैं' कहाँ हूँ भला
मुझमें कुछ ऐसे यु समा गए हो तुम"

हिंदी रोमांटिक शायरी

"सुना था नाम मोहब्बत का 
पर होती है क्या मालूम न था
पर तुम जो मिले मेरा हर लम्हा 
ही मोहब्बत बन गया"

Romantic hindi shayri

"कल भीड़ में हम तुम्हें न दिखे
कल महफ़िल में हम तुम्हें न मिले
प्यार तो हमेशा रहेगा दिलमे हमारे
चाहें कल दुनियां में हम रहे न रहें"

तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए -कविता

तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए
तेरे बिन हम गुनगुना भूल गए
तुम थे साथ जो मेरे 'खशी' थी संग
'मीठी' बात अब बनाना भूल गए

गिर कर फिर सम्भलना भूल गए
इन राहों पर भी चलना भूल गए
काटे भी फूल लगते थे कभी मुझे
फूलोंकी कोमलता भी अब भूल गए

दर्द इतना मिला कि सुकून भूल गए
ज़ख़्म पर मरहम लगाना भी भूल गए
चोट लगने पर भी मुस्कुराते थे कभी
तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए



ईश्वर वाणी-285, ईश्वर की सच्चाई

ईश्वर कहते हैं, "संसार का सत्य तो यही है कि मै निराकार हूँ, शून्य हूँ, में ही आदि और अंत हूँ, अनन्त ब्रह्मांड में ही हूँ, मुझे जितना जानने की चेष्टा करोगे उतने उलझते जाओगे क्योंकि में अथाह और अपार हूँ।

हे मनुष्यों पल पल तुम्हे अपनी निम्न लीलाओ के माध्यम से अपने निराकार रूप के विषय मे बताता रहता हूं किँतु तुमतो केवल भौतिक देह पर ही विश्वास कर उसको ही सत्य मानते हो।

ये सत्य है मैं ही देश काल परिस्तिथि के अनुसार अपने ही अंशो को धरती पर भेजता हूँ जीवो के कल्याण होतु, मेरे अंश ही में स्वयं हूँ जो भौतिक देह प्राप्त कर इस धरती पर जन्म लेता हूँ किंतु अज्ञान के अंधकार में डूबे मनुष्य ये नही जानते और जाति व धर्म के नाम पर लड़ते रहते हैं।

भगवान शिव के शिव लिंग और सालिकराम के मेरे स्वरूप को देख कर तुम अंदाजा नही लगा सकते कि कौन सा शिवलिंग है और कौन सा सालिकराम, उसी प्रकार शक्तिपीठो में मेरे निराकार स्वरूप के ही दर्शन तुम पाते हो, ऐसा इसलिए क्योंकि मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की मुझे इन भौतिक स्वरूपों से मत आंको जो तुम्हारी कल्पना ने ही मुझे स्वरूप दिया है बल्कि मेरे वास्तविक रूप से जानो जो स्वयं मेरा व तुम्हारी आत्मा का है।
मैंने प्रथम तुम्हारी आत्मा को खुद से बनाया उसके भौतिक क्या बना उसको देह रूपी घर दे कर्म करने हेतु संसार मे भेजा, जिसमे अपनी भौतिक क्या के अनुरूप जो कर्म करे उसका वैसा फल मिला।
लेकिन मनुष्य मुझे अपने अज्ञान के अंधकार के तले ऐसे भुला बैठा की जैसे संसार के अन्य जीवों के साथ वो भेदभाव करता है मेरे साथ करने लगा और मेरी बनाई रचना को छती पहुचाने लगा।
उसके इस अपराध का बोध करने व दण्ड अधिकारी होने पर मुझे भी भौतिक देह ले कर अपने अंशो के रूप में जन्म लेना पड़ता है व जीव जाती की रक्षा करनी पड़ती है, यही युगों युगों का चक्र है।"

कल्याण हो

कविता-खुशबू तुम्हारी होती है

 ये हवा यु बहती है

धीरेसे मुझसे कुछ कहती है

छूती ये बदन को मेरे

जिसमे खुशबू तुम्हारी होती है


दिलमे याद तुम्हारी रहती है

हर पल बात तुम्हारी होती है

कैसे मजबूर है आज यहाँ हम

धड़कन दिलसे यही कहती है

ईश्वर वाणी-284,जन्म जन्मों का सत्य

 हैं, "हे मनुष्यों जैसे मैं ही साकार रूप में जीव जाती की रक्षा हेतु देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप जन्म लेता हूँ वैसे ही संसार के प्रत्येक जीव भी मुझसे ही निकले और इस पृथ्वी पर जन्म ले कर अपने कर्म कर रहे हैं।
अच्छे अथवा बुरे कर्म, सुख अथवा दुःख, ज्ञानी अथवा अज्ञान, धनी अथवा निर्धन, सत्य व असत्य जो भी ये कर्म कर रहे वो सब पहले ही उनके आने से पूर्व ही तय हो चुका है।
कौन कितनी बार क्या जन्म लेगा और कितनी बार और कब तक स्वर्ग, नरक अथवा ईश्वरीय लोक को भोगेगा ये सब पहले ही तय हो चुका है, यहाँ तक कि जो आत्माएं अभी जन्म भी ले पायी हैं उनके विषय में भी सब तय हो चुका है, उनके कर्म तय हो चुके हैं।

प्रत्येक जीव संसार मे मेरी आज्ञा अनुसार ही मेरे अनुरूप ही लीला करने आया है और करता है, प्रत्येक जीव स्वर्ग, नरक अथवा मेरे लोक से हो कर ही जन्म लेती है और उसमें मेरे अनुरूप ही आत्मिक शक्ति होती है किंतु उसके कर्म उसकी शक्ति को छिपा देते हैं और उसके मष्तिष्क को अपने अंदर छिपी ये शक्ति याद नही रहती क्योंकि यदि याद रहती तो जीव मुख्यतः मानव इनका दुरुपयोग अवश्य करता।

इसलिए हे खुद के अंदर छिपी शक्ति को जानो, मुझसे जुडो और मेरे बताये नियमो का पालन करो, निश्चित ही तुम मेरे जितने ही शक्तिशाली बनोगे, ये न भूलो हर जीव चाहे स्वर्ग, नरक अथवा ईश्वसरिये लोक से आया हो सब मुझसे ही मेरे ही लोक से मेरे इच्छा अनुसार ही लीला करने आया है क्योंकि ये संसार ही मेरी एक लीला मात्र है"।।

कल्याण होहता