Saturday 8 February 2014

चलते चलते कदम अचानक मेरे ..............


चलते चलते कदम अचानक मेरे रुक क्यों गए, झूमते झूमते खुशी में अचानक ये अश्क मेरी आँखों से झलक क्यों गए, रह रह कर ये टीस मेरे दिल में अचानक क्यों उठने लगी, है नहीं कही चोट इस ज़िस्म में फिर भी जाने क्यों ये दर्द भरी आहे मेरे मन से आने लगी,


क्यों मेरा ये दिल अचानक दुनिया कि सोचने लगा, क्यों मेरे इस दिल में दूसरों का  अचानक ख्याल आने लगा, लोग तो है वो ही पुराने और ख्यालात भी है उनके पुराने फिर क्यों जाने अचानक मेरे मन में एक क्रांति का अंकुर फूटने लगा,


देख लोगों का दोहरा चेहरा मेरा ये मन जाने क्यों अचानक जलने लगा, झूठ-फरेब और साज़िशों का जाल आज हर कोई जाने क्यों बुनने लगा, प्रेम और भाई चारे का व्यवहार आज हर शख्स है क्यों भूलने लगा,


असल सूरत को मुखोटो में छिपाते है लोग क्यों, बनावटी मुस्कान दिखा कर हाथ मिलते है लोग क्यों बस रह रह कर इस दिल में ये ख्याल मुझे सताने लगा,


दिल में है कुछ और बताते है कुछ जाने क्यों ये लोग मेरे मन में ये सवाल अब बार बार उठने लगा, है बुराई दिल में जब उनके लिए फिर भी क्यों झूठी मित्रता दिखाते है लोग मन में मेरे ये सवाल अचानक ही उठने लगा,


देख दुनिया कि धोखे बाजिया मन में मेरे भी अब क्रांति का स्वर है  गूंजने लगा, देख सबकी चालबाज़िया दिल मेरा ये कहने लगा नहीं है इस दुनिया में कोई ऐसा  जिसे तुम कह सको नेक और सच्चा , झूठ और फरेब कि इस दुनिया में मित्रता के नाम पर सौदागर हज़ार है,

अपनों के नाम पर सबके चेहरों पर मुखोटे हज़ार है, कहते है जिसको अपना वो ही देते धोखे हज़ार है, ख़ुशी के नाम पर गम मिलते लोगों से हज़ार हैं,देख दुनिया कि रुस्वाई मन में मेरे ये बात आयी है अपनों से भली तो  है  ये  तन्हाई,

फिर आया ख्याल ये दिल में मेरे कि है गर दुनिया से मिटाना झूठ और फरेब का ये दोस्ताना  तो या उनके जैसे है हमे बन जाना या फिर तोड़ कर हर रिश्ता उस इंसान से है बिलकुल अनजान  हो जाना,

जो रखते है चहरे पर चम पर रखते है दिल में कपट हो चाहे वो हमारे कितने भी निकट तोड़ कर हर रिश्ता उनसे है दूर कही चले जाना, चाहे रहना पड़े अकेले या  तन्हाइयो में गुज़रे ये  शाम और सवेरे चाहे चलते-चलते राहो में लगती रहे ये ठोकरे, चाहे गिरते रहे फिर उठते रहे सितम ज़िनदगी के हम सहते रहे पर इन  दोरुपियों से है बहुत दूर रहना ,

चाहे आंधी रोके रास्ता चाहे तूफ़ान मोड़े  रास्ता, नदिया भी चाहे अब सुनाये बाड़ और तबाही का फैसला, चलते चलते राह में कांटे भी अब छील कर पावों  को कर दे घायल पर  इन राहो  में नहीं कोई रोक सकेगा अब मेरे ये  कदम, बढ़ते रहेंगे अब  ये हरदम,


चलते-चलते राहों में बहुत रुक चुके मेरे कदम, झूमते-झूमते ख़ुशी में बहुत झलक चुके मेरे ये अश्क, जो उठी थी टीस इस दिल में उसी कि चिंगारी इस दिल में है अब चलने लगी, दर्द से निकलती थी आह मेरे दिल से उसी दर्द से ही मैंने है ये दवा ही बना  ली, दोहरा रूप धरने वालों से है मैंने तो अब दूरी बना ली, झूठी मित्रता करने वालों से मैंने तो अब दुश्मनी बना ली, इन फरेबी लोगों से मैंने तो दूरी बना ली, जो रखते हैं दिल में छल और कपट, जो दिखा कर झूठी मित्रता करके फरेब उसी का दुखाते है दिल किसी का  मैंने तो ऐसो से अब है दूरी बड़ा ली  हाँ अब  सबसे मैंने ये दूरी बना ली.... 





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