Tuesday 25 February 2014

ऐतबार

जिस पर भी हमने ऐतबार किया उसी ने मेरे भरोसे को तार-तार किया, खता उनकी नहीं शायद मेरी ही थी ,शायद मैंने ही उन्हें अपने करीब कुछ ज्यादा ही समझा, भुला बैठे हम कि उनकी ज़िन्दगी में है और भी लोग जो है हमसे भी ज्यादा करीब उनके और है जो उनके हमदम, भुला बैठे हम अपनी औकात को और उनकी हर कही बात पर विश्वास हमने जो किया, बस ये है एक वज़ह जिस पर भी हमने ऐतबार किया उसीने मेरे भरोसे को तार-तार किया।

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