Thursday 27 February 2014

सम्लेंगिक विवाह कितना जरूरी-आर्टिकल ??//

हाल ही मैं हमारी सर्वोच्च न्यायालय ने ये फैसला सुनाया कि सम्लेंगिक शादी अवैध है और यदि कोई सम्लेंगिक शादी करता है तो उसके खिलाफ कारवाही कि जा सकती है, दुनिया भर के साथ ही भारत में भी इस फैसले के खिलाफ गेय/लेस्बियन  (सम्लेंगिक )समुदाय ने इसका विरोध किया।


पर सवाल ये उठता है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय का ये फैसला सही है, अदालत उन्हें क्या समझती और किस नज़रिये से देखती है, गेय/ लेस्बियन (सम्लेंगिक ) कोई दुसरे ग्रह के प्राणी नहीं है आखिर ये हमारे ही मानव समुदाये का ही एक अंग है फिर अदालत उन्हें किस नज़रिये से देखती है,


सम्लेंगिकता ये कोई मानवीय  बिमारी नहीं है और न ही किसी के साथ कि गयी कोई जोर-जबर्दस्ती है, ये वो लोग है जिनमे जन्म से पूर्व ये फिर जन्म के बाद भी किसी वज़ह से शारीरिक कमी अथवा हार्मोन परिवर्तन कि वज़ह से ऐसे बदलाव होते है जो इन्हे वक्त के साथ अपने विपरीत नहीं अपितु समलिंग के तरफ आकर्षित करते हैं, किन्तु दुःख कि वज़ह ये है कि इन परिवर्तन कि वज़ह को रोका नहीं जा सकता और न ही हमारा विज्ञान अभी तक इसकी रोक का कोई इलाज़  ही ढून्ढ पाया है,


किन्तु इसका आशय ये तो नहीं कि इन्हे हम मानव न समझे, इन्हे इनकी इच्छा अनुसार जीने का अवसर प्रदान न करे, आखिर किस आधार पर हम इन्हे रोकते हैं सिर्फ इस पर कि ये सम्लेंगिक है और अपने सामान लिंग वाले व्यक्ति कि तरफ आकर्षित होते हैं, इनकी अगर शादी होती है तो प्रकृति का नियम बिगड़ जायगा क्योंकि संतान उत्पन्न न होगी किन्तु क्या अदालत और समलेंगिकता का विरोध करने वालों ने सोचा है कि अगर उनका विवाह ऐसे व्यक्ति से हो जाए जो सम्लेंगिक हो और विवाह के बाद उन्हें पता चले इस बात का तो क्या वो ऐसे व्यक्ति के साथ ज़िन्दगी बिताना पसंद करेंगे, भले ही ऐसी शादी के बाद उनकी संतान का जन्म हो जाए और परिवार बाद जाए पर सच जान्ने के बाद क्या वो ऐसे व्यक्ति के साथ ताउम्र एक खुशहाल शादीशुदा ज़िन्दगी जे पाएंगे,


जाहिर सी बात है नहीं, ये जानने के बाद कि उनका जीवनसाथी सम्लेंगिक है वो उसके साथ खुशहाल शादीशुदा ज़िनदगी नहीं जी सकेंगे और फ़ौरन रिश्ता तोड़ देंगे और यदि उन्होंने किसी वज़ह से रिश्ता न भी तोडा तब भी उनका ये रिश्ता सिर्फ एक ओपचारिकता से अधिक और कुछ भी नहीं बन कर रह सकेगा,और इस विवाह से न सिर्फ उन दोनों कि अपितु उनके बच्चो कि भी ज़िन्दगी ख़राब हो जायगी, ऐसी शादी में या तो सम्लेंगिक को उम्र भर झूठ के सहारे एक घुटन भरी ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ेगी या फिर सच जानने के बाद उनके साथी को अथवा दोनों को ही,


सच तो ये है कि हम मानव में हुए इन बदलावों को ठीक करने में अभी तक असमर्थ है,  जब तक हम इन बदलावों को ठीक करने में असमर्थ है हमे सम्लेंगिक शादी को मंज़ूरी देनी चाहिए, आखिर इस आधार पर मंज़ूरी न  देना कि ये प्रकृति के खिलाफ होगा और भविष्य में ऐसे शादीशुदा जोड़े का परिवार भी नहीं आगे बड़ सकेगा  ये वज़ह देना उचित नहीं है आखिर जब ऐसे विपरीत लिंगी व्यक्तियों को शादी का अधिकार है जो किसी वज़ह से माता-पिता नहीं बन सकते तो गेय/ लेस्बियन को शादी का अधिकार क्यों नहीं है,
 

क्या किसी के सम्लेंगिक होने से उसके समस्त मानव अधिकार समाप्त हो जाते है सिर्फ इसलिए कि वो सम्लेंगिक है, क्या हमारा समाज हमारी सरकार और हमारा न्यायलय केवल लिंग के आधार पर ही अधिकार देता है, क्या सम्लेंगिक होना अपराध है और यदि है तो किस श्रेढ़ी का अपराध है, किसी से जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाने कि श्रेडी में ये आता है या किसी के शारीरिक शोषण में ये आता है, सच तो ये है कि गेय/ लेस्बियन भी अगर किसी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते है तो दोनों कि मर्ज़ी से, किसी एक कि मर्ज़ी के खिलाब ऐसा करना एक अपराध है ये वो भी जानते हैं, गलत और सही का उन्हें भी पता है, सोचने समझने और बोलने का ज्ञान भी उन्हें है केवल किन्ही वज़हों और हार्मोनल बदलाओ के कारण वो लोग विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित नहीं हो पाते और उनके साथ खुद को सहज नहीं महसूस कर पाते, पर इसका अर्थ ये तो नहीं कि वो मानव नहीं है और उन्हें अन्य विपरीत लिंगी लोगों कि  भाति  जीवन जीने का अधिकार नहीं है,



बदलते सामाजिक मूल्यो के आधार पर हमे भी इस विषय में अब आधुनिक होने कि आवश्यकता है और आधुनिक तरीके से सोचने कि हमे आवश्यकता है, हमारे समाज , सरकार और न्यायलय  को ये समझना  चाहिए  और पिछड़ी हुई सोच को त्याग कर इस विषय पर अन्य बातों कि ही तरह  आधुनिक सोच और समझ से काम लेना चाहिए, गेय/ लेस्बियन विवाह के मुद्दे को महज़ एक साधारण सा मुद्दा समझ कर कोई भी तानाशाही फरमान लागू करने से पहले उन लोगों के आगामी भविष्य को ध्यान में रख ही कोई फैसला सुनना चाहिए, कोई भी व्यक्ति भला कैसे खुश रह सकता है जब उसे पता चले कि उसका साथी सम्लेंगिक है और उसी प्रकार एक सम्लेंगिक व्यक्ति ताउम्र घुट-घुट कर जीता रहेगा यदि उसका विवाह एक विपरीत लिंगी व्यक्ति से हो, किसी का जीवन बर्बाद न हो एवं झूठ के आधार पर किसी का इस प्रकार विवाह ना हो उससे तो अच्छा ये होगा कि गेय/लेस्बियन शादी को मंज़ूरी दी जाए ताकि ऐसे व्यक्ति अपने ही सम्प्रदाये में विवाह कर सुखी एवं सामान्य  जीवन  यापन करे इसके साथ ही उन्हें समस्त मानव अधिकार दिए जाए,



भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में इसकी अति आवश्यकता है, ये माना यहाँ के काफी लोग इसके धर्म-शास्त्र के खिलाफ कहेंगे किन्तु सरकार को अपनी सूझ-बूझ से काम लेना होगा और समझना होगा कानून, धर्म-शास्त्र मानव कल्याण के लिए है न कि मानव इनके कल्याण के लिए और बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में मानव एवं समाज के कल्याण हेतु हमे इन्हे बदलना ही होगा, जिस दिन हम इसे समझ जायेंगे और भारत में सम्लेंगिक विवाह को मंजूरी के साथ ही समलैंगिकों को समस्त अधिकार प्राप्त हो जायंगे उस दिन  भारत सच में एक बड़ा लोकतान्त्रिक देश बन कर दुनिया के सामने उभरेगा और समस्त विकाशील देशो और समलैंगिको के विरुद्ध खड़े देशों के समझ एक मिशाल बन कर खड़ा होगा… 








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