Monday 20 March 2017

ईश्वर वाणी-२०२, ईश्वर का रूप

ईश्वर कहते है, ''हे मनुष्यों यु तो अधिकतर मनुष्य मेरे रूप मेरे रंग मेरे आकर मेरे प्रकार के विषय में बाते करते है, वो सोचते है ईश्वर शायद ऐसा दीखता होगा या शायद वैसा।

किंतु वह अज्ञानी नहीं जानते मैं तो निराकार हूँ, आकर तो उसका होता है जो जन्म लेता है पर मैं तो अजन्मा हूँ, जो भौतिक है जो नाशवान जो जन्म लेने वाला जन्मा है उसी को इन भौतिक आँखों से देखा जा सकता है।

मैं तो शून्य हूँ अर्थात कुछ नहीं, पर इस कुछ नहीं से सब कुछ, सृष्टि का निर्माण मैंने इसी शून्य से किया है और अंत में सृष्टि इसी शून्य में समासमा जायगी अर्थात जो है आज वो कुछ नही होगा जैसे इससे पूर्व भी नही था, मेरे निराकार स्वरुप का भी वही तातपर्य है, परम सत्य यही है शून्य, तुम्हारी अथवा समस्त आत्मा भी शून्य हो कर ही पुनः जीवन पाती है, समस्त गृह नक्षत्र भी शून्य धारण करे हुए है उन्हें पता है सृष्टि का सत्य यही है।

पृथ्वी पर भी शक्ति पीठ एवं समस्त प्राचीन धार्मिक स्थानों पर मैं इसी शून्य अवस्था में ही विराजित हूँ, शून्य जो कुछ न हो कर भी सब कुछ है, जैसे तुम्हारी आत्मा दिखती नही, उसका रूप रंग आकर तुम नही जानते न देख सकते हो किन्तु  उसके जाने के बाद तुम्हारा शरीर बेजान पुतला मात्र है।

वैसे ही मैं जगत की आत्मा होने के कारन जगत पिता जगत माता व आत्माओ में परम होने के कारण परमात्माँ हूँ, किन्तु हे शैतान के वशिभुत मानवों तुम सिर्फ भौतिकता पर विश्वाश करते हो, भौतिक रिश्ते, भौतिक साधन, भौतिक सुख सुविधा, इसी कारण तुम मेरे वास्तविक रूप को सहर्ष स्वीकार नही करते, मेरी बनायीं व्यवस्था को भी ठुकरा शैतान की राह पर चलते हो।

तुम्हे इश्वरिये मार्ग और जिस कार्य के लिये ये जन्म तुम्हे मिला है ये बताने के लिये ही मैं देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप जगत व प्राणी जाती के कल्याण हेतु अपने ही एक अंश धरती पर भेजता हूँ ताकि वो तुम्हे मुझमे विश्वाश दिलाये और शैतान की कैद से तुम्हे मुक्त कर तुम्हारे मानव जीवन को मोक्ष प्रदान करे।

हे मनुष्यों मेरा ही एक अंश तुम्ही में से किसी के यहाँ जन्म लेता है, तुम्हारे जैसा ही रूप बनाता है, तुम्हारी सोच को बदलने के लिए तुम्हारी ही भाषा शेली का उपयोग करता है, ईश्वर के तुम्हे करीब लाने का प्रयास करता है, फिर वो मुझमे एक दिन मिल कर मैं बन जाता हूँ, अजन्मा अविनाशी परमेश्वर।

हे मनुष्यों मेरा रूप तो निराकार है शून्य है जैसे ब्रह्माण्ड, इसका न आदि न अंत है वही और वैसा ही मेरा रूप है, तुम्हारे जन्म से पूर्व और मोक्ष पायी आत्मा का जो रूप है वही मेरा रूप है।

हे मनुष्यों अब ये मत कहना क्या तुमने ईश्वर को देखा है अथवा ईश्वर कैसा दिखता है क्योंकि दिखती तो तुम्हारी आत्मा भी नहीं है पर वो है।"


कल्याण हो

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